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________________ उत्तररामचरित] [उत्तररामचरित ससकी सहृदयता, भावुकता तथा कलात्मक नैपुण्य का परिचय प्राप्त होता है। इस दृश्य के द्वारा सीता विरह को तीव्र बनाने के लिए सुन्दर पीठिका प्रस्तुत की गयी है तथा इसमें भारी पटनाओं के 'बीजाकुरों का आभास भी दिखाया गया है । चित्रदर्शन के पश्चात् परिश्रान्ता सीता के शयन करने पर राग के इस कथन में भावी वियोग की सूचना है--किमस्या न प्रेयो यदि परमसह्यस्तु विरहः । ११३८ . . . द्वितीय अंक में शम्बूक की घटना के द्वारा दण्डकारण्य का मनोरम चित्र उपस्थित किया है। तृतीय अंक में बाह्य घटनाओं एवं व्यापारों का अभाव है। छाया सीता की उपस्थिति इस माटक की महत्त्वपूर्ण कल्पना है। राम के विरह का वर्णन कर कधि ने अपने हृदय की विमलित करुण-धारा को प्रवाहित किया है। राम की करुण दशा को देखकर सीता का अनुताप मिट जाता है और राम के प्रति उनका प्रेम और भी हद हो जाता है। सप्तम बंकाके : वीक के अन्सयंत एक अन्य नाटक की योजना कवि की सर्वथा मौलिक देन है। इसके द्वारा रामायण की दुःखान्त कथा को सुखान्त बनाया गया है तथा लव-कुश को उनकी वास्तविक स्थिति का परिज्ञान कराया गया है। इस नाटक की योजना का दूसरा उद्देश्य है नाटकीय वातावरण के माध्यम से जनता के समक्ष सीता के चरित्र को पवित्र करना। 'इस प्रकार कवि आरम्भ से ही कथानक को चामत्कारिक किन्तु स्वाभाविक मोड़ देता हुआ, उसकी गति में काव्यजनित शैथिल्य और नाव्यजनित क्षिप्तता लाता हुआ आमम्द के वातावरण में समाप्त करके सुखान्त बना देता है तथा नाटक की शास्त्रीय मर्यादा की रक्षा करता है। र संस्कृत नाटक-समीक्षा, पृ० २२६ चरित्र-चित्रण-'उत्तररामचरित' नाटक में पात्रों के शील-निरूपण में अत्यन्त कौशल प्रदर्शित हुआ है। राम-इस नाटक के नायक श्रीरामचन्द्र हैं। वे सूर्यवंश के रत्न तथा धीरोदात नायक के सभी गुणों से विभूषित हैं। सद्यः राज्याभिषिक्त राजा होते हुए भी उन्हें प्रजापालन एवं लोकानुरंजन का अत्यधिक ध्यान है। वे राजा के कर्तव्य के प्रति पूर्ण सचेष्ट हैं । अष्टावक्र द्वारा वसिष्ट का सन्देश प्राप्त कर वे कहते हैं 'स्नेहं दयां च सौख्यं च यदि वा जानकीमपि । __ आराधनाय लोकस्य मुल्चतो नास्ति मे व्यथा ॥ १।११ लोकानुरंजन के लिए वे प्रेस, दया, सुख और यहां तक कि जानकी को भी त्याग सकते हैं। सीताविषयक लोकापवाद के श्रवणमात्र से ही उन्होंने उनका निर्वासन कर दिया। यह कार्य उनके दृष्ट निश्चय एवं लोकानुरंजन का परिचायक है। प्रकृतिरंजन को वे राजा का प्रधान कर्तव्यः मानते हैं--राजा प्रकृतिरन्जनात् । पत्नी के प्रति स्वामाविक स्नेह होने लथा उनके मर्भवती होने पर भी वे लोकानुरंजन के लिए सीता का परित्याग कर देते हैं। राम एक आदर्श पति के रूप में प्रदर्शित किये गए हैं। उनके जीवन का लक्ष्यः एकपत्नीव्रत है। सीता के प्रति उनकी धारणा स्थिर एवं
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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