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________________ उत्तररामचरित ] ( ६४ ) [ उत्तररामचरित ~ हैं। राजा जनक भी मिथिला जा रहे हैं और उनके विछोह में सीता उद्विग्न हैं । राम उन्हें प्रसन्न करने एवं नाना प्रकार से उनका मनोविनोद करने का प्रयत्न करते हैं । यह भी ज्ञात होता है कि महर्षि वसिष्ट के साथ उनकी माताएं अरुन्धती को लेकर ऋष्यशृङ्ग के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए जा रही हैं । तदनन्तर लक्ष्मण का प्रवेश होता है। और वे खिन्नमना गर्भिणी सीता को प्रसन्न करने के लिए रामचन्द्र के विगत जीवन की घटना को चित्रपट में दिखाते हैं । चित्रपट में गंगा एवं वनस्थली का दृश्य देखकर सीता राम से उन स्थलों को देखने की इच्छा प्रकट करती हैं । राम सीता की इच्छापूर्ति का भार लक्ष्मण के ऊपर देते हैं और सीता विश्राम करने लगती हैं । इसी बीच दुर्मुख नामक गुप्तचर के द्वारा सीताविषयक लोकापवाद की सूचना राम को प्राप्त होती है और वे जनभावना का आदर करते हुए लक्ष्मण को सीता निर्वासन का आदेश देते हैं । पहले तो यह समाचार पाकर राम बेहोश हो जाते हैं पर उनके स्वस्थ होने पर सीता का निर्वासन हो जाता है । लक्ष्मण उन्हें रथ पर बैठाकर वन की ओर प्रस्थान करते हैं । द्वितीय अंक में बारह वर्ष के पश्चात् की घटनाओं का प्रदर्शन किया गया है । विष्कम्भक में इस बात की सूचना प्राप्त होती है कि सीता को लव-कुश उत्पन्न हुए हैं और वे ऋषि वाल्मीकि के पास विद्याध्ययन कर रहे हैं । नामक दो पुत्र इसी अंक में यह भी सूचना प्राप्त होती है कि शम्बूक नामक शूद्रमुनि का वध करने के लिए राम इसी वन में आए हैं और उन्होंने उसका वध किया है । कवि ने इस अंक में शम्बूक के मुख से जनस्थान ( दण्डकारण्य ) का अत्यन्त मनोरम वर्णन किया है । प्राकृतिक दृश्यों के मोहक वर्णन की दृष्टि से यह अंक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, पर इसका नाटकीय व्यापार अवरुद्ध हो गया है । तृतीय अंक में तमसा एवं मुरला नामक दो नदियों के माध्यम से सीता के जीवन का विवरण प्राप्त होता है । जब लक्ष्मण सीता को अरक्षित छोड़कर चले गए तो वे अपमानवश गंगा में कूद पड़ीं और वहीं उनके दो पुत्र उत्पन्न हुए । पुनः उन्हें वाल्मीकि ऋषि ने अपने आश्रम में स्थान दिया । उन नदियों के वार्तालाप से यह भी ज्ञात होता है कि लव-कुश की बारहवीं वर्षगाँठ के अवसर पर गंगा ने सीता को सूर्य की अर्चना करने को कहा है। यह वार्त्तालाप विष्कम्भक में होता है । विष्कम्भक के अनन्तर पुष्पक विमान से उतर कर रामचन्द्र जनस्थान में प्रवेश करते दिखाई पड़ते हैं और वनदेवी वासन्ती द्वारा उनका स्वागत किया जाता है। वहीं पर छिपी हुई सीता रामचन्द्र के विरहजन्य कृशशरीर को देखती हैं और मूच्छित हो जाती हैं। सीता के साथ बिताये गए स्थानों को देखकर राम का दुःख उमड़ पड़ता है और वे सीता की स्मृति में व्यथित होकर तड़पने लगते हैं। रामचंद्र के रुदन से दण्डकारण्य के पत्थर भी पिघलने लगते हैं। राम मूच्छित हो जाते हैं और उनकी यह दशा देख कर सीता भी 1 मूच्छित हो जाती हैं । वे सीता के अदृश्य स्पशं से पुनः संज्ञायुक्त तथा राम में वार्तालाप होता है और वे अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं । होते हैं । वासन्ती
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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