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माणिक्यदेव सूरि]
(७०१)
[ मेघव्रत आचार्य
काण्डम् , गीताविज्ञानभाष्यस्य तृतीयाचार्यकाण्डम् , गीताविज्ञानभाष्यस्य चतुर्थहृदयकाण्डम् , शारीरिकविज्ञानभाष्यस्य प्रथमभागः, शारीरिकविज्ञानभाष्यस्य द्वितीयभागः, ब्रह्मविज्ञानप्रवेशिका, ब्रह्मविज्ञानम्, पुराणोत्पत्तिप्रसङ्ग, पुराणनिर्माणाधिकरणम्, कादम्बिनी. जगद्गुरुवैभवम्, वेदार्थभ्रमनिवारणम्, सदसद्वाद, व्योमवाद, कालवाद, आवरणवाद, अम्भोवाद, अहोरात्रवादः, ब्रह्मसमन्वय, वेदधर्मव्याख्यानम्, वैदिककोष, महर्षिकुलवैभव, रजोवादः, देववादः, सिद्धान्तवादः आदि ।
माणिक्यदेव सूरि-संस्कृत के प्रसिद्ध जैन महाकाव्यकार । इनका विशेष परिचय प्राप्त नहीं होता। कवि का रचनाकाल सं० १३२७ से १३७५ के मध्य है। इन्होंने 'नलायनम्' 'अनुभवसारविधि', 'मुनिचरित', 'मनोहरचरित', 'पंचनाटक' तथा 'यशोधरचरित्र' नामक ग्रन्थों का प्रणयन किया था जिनमें 'नलायनम्' प्रमुख है। 'नलायनम्' पौराणिक शैली का महाकाव्य है जिसमें सौ सगं एवं दस स्कंध हैं । इसमें कवि ने राजा नल एवं दमयन्ती के प्राचीन आख्यान का वर्णन किया है । राजा नल की कथा जन्म से मृत्यु पर्यन्त वर्णित है । कथा का विभाजन स्कन्धों एवं सर्गों में हुआ है और श्लोकों की संख्या ४०५० है। प्रथम में १५ सर्ग, द्वितीय में १६, तृतीय में ९, चतुर्थ में १३, पंचम में २१, षष्ठ में ७, सप्तम में ७, अष्टम में ४, नवम में ४ एवं दशम स्कंध में ४ सगं हैं। इसमें महाभारत में उपलब्ध नल की कया में अनेक परिवर्तन किये गए हैं और जन-परम्परागत नलचरित की कथा को ग्रहण किया गया है। इसके अनेक स्थल पर नैषध की छाप दृष्टिगोचर होती है । अनेक स्थलों पर सन्दक्रीड़ा एवं पाण्डित्यदर्शन में कवि चित्रकाव्य की योजना कर भाषा के सहज स्वारस्य को नष्ट कर गलता है । पर सर्वत्र भाषा में सरलता विद्यमान है। तदेतत् तिलकं भाले बालारुणसमप्रभम् । विभावरीव विक्षिप्ता कबरी यस्य सनिधी ॥ २।९।२ ।
मेघव्रत आचार्य-बीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध आर्यसमाजी विद्वान् एवं प्रतिभाशाली कवि । इनका जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले के येवला नामक ग्राम में ७ जनवरी १८९५ ई० को हुआ। इनकी निधन तिथि २१ नवम्बर १९६४ ई० है। इनके पिता का नाम श्री जगजीवन एवं माता का नाम सरस्वती देवी था। इनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। इन्होंने.महाकाव्य, खण्डकाव्य, गीतिकाव्य, स्तोत्रकाव्य, उपन्यास तथा नाटक साहित्य की विविध विधाओं को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया । इनके ग्रन्थों में 'दयानन्ददिग्विजय' ( महाकाव्य ) एवं 'कुमुदिनीचन्द्र' (उपन्यास) अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं । मेघवताचार्य रचित अन्य ग्रन्थ हैं-ब्रह्मर्षि विरजानन्द चरितइसमें स्वामी दयानन्द के शिक्षा-गुरु स्वामी विरजानन्द का चरित १० सों में वर्णित है जिसमें कुल ४२४ श्लोक हैं । अन्य का रचनाकाल आश्विन २००९ संवत् है । प्रकाशनकाल २०१२, गुरुकुल झज्जर । नारायणस्वामिचरित ( महात्ममहिममणि-मंजूषा)इस काव्य में आर्यसमाज के संन्यासी महात्मा नारायण स्वामी का परित १२ अलंकारों (सौ ) में वर्णित है। इसमें ३०० श्लोक हैं। गुरुकुलशतक-इसमें ११६ श्लोकों में गुरुकुल के आदर्श का वर्णन हैं । द्रयानन्दलहरी-गंगालहरी के अनुकरण पर ५२ श्लोकों