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________________ बालचन्दसूरि] ( ६९८ ) [बालचन्दसूरि के निदेशक । १९७० में अवकाश प्राप्त । हिन्दी में संस्कृत साहित्य, भारतीय दर्शन तथा भारतीय साहित्य पर दो दर्जन पुस्तकों का लेखन । 'भारतीयदर्शन' नामक पुस्तक पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त तथा 'बौददर्शन' पर डालमियाँ पुरस्कार । 'भारतीयदशम' एवं 'आचार्य शंकर' नामक पुस्तकों का कन्नड में अनुवाद हुआ । बरमी और सिंहली भाषा में 'बौद्ध दर्शन-मीमांसा' नामक पुस्तक का अनुवाद प्रकाशित । 'नाट्यशास्त्र', भामह कृत 'काव्यालंकार' 'नागानन्द' नाटक, 'शंकर दिग्विजय', 'प्राकृत. प्रकाश', 'वेदभाष्यभूमिकासंग्रह', 'अमिपुराण', 'कालिकापुराण' एवं 'भक्तिचन्द्रिका' का सम्पादन । संस्कृत में 'देवभाषानिबन्धावली' नामक आलोचनात्मक ग्रन्थ की रचना । 'वेदभाष्यसंग्रह' एवं 'भक्तिचन्द्रिका' की संस्कृत में विस्तृत भूमिका-लेखन । संस्कृत में श्लोक-रचना-दिनकरतनयातीरे प्रतिफलितात्मरूप इव नीरे। जयति हरन् भवतापंकोऽपि तमालश्चिदेकडमूलः ।। यमुना के तौर पर अपने रूप के प्रतिविम्बित होने से नील रंग के जल में चैतन्यरूपी दृढ मूलवाला कोई तमाल वृक्ष खिला हुआ है । संसार के सन्ताप को दूर करनेवाले इस वृक्ष की जय हो। विशिष्ट संस्कृत सेवा के लिए 'राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित' । सम्प्रति 'विद्याविलास', रवीन्द्रपुरी, दुर्गाकुण्ड, वाराणसी में स्वतन्त्र साहित्यसेवा। बालचन्दसूरि-संस्कृत के प्रसिद्ध जैन महाकाव्यकार । इन्होंने 'वसन्तविलास' नामक ऐतिहासिक महाकाव्य का प्रणयन किया है जिसमें धौलका के (गुजरात) राजा वीरधवल के अमात्य वस्तुपाल (प्रसिद्ध कवि ) की जीवनगाथा वर्णित है [दे० वस्तुपाल ] । कवि का रचनाकाल वि० सं० १२९६-१३३४ के मध्य तक है। इनके पिता का नाम धरादेव एवं माता का नाम विद्युतगर्भ था। कवि के पिता गुजरात के मोढेरक ग्राम के निवासी थे। प्रारम्भ में कवि का नाम मुंजाल था, पर हरिभद्रसूरि से दीक्षित होने के उपरान्त इसका नाम बालचन्द रखा गया। 'वसन्तबिलास' के अतिरिक्त बालचन्दसूरि ने 'करुणाववायुध' नामक ५ अंकों के एक नाटक की भी रचना की है। 'वसन्तविलास' के प्रथम सर्ग में कवि ने अपना वृत्तान्त प्रस्तुत किया है। बालचन्द ने आसड कविरचित विवेकमंजरी' तथा 'उपदेशकंदली' नामक ग्रन्थों की टीका भी लिखी है । वसन्तविलास की रचना १४ सगों एवं १५१६ छन्दों में हुई है । वस्तुपाल का अन्य नाम वसन्तपाल भी था अतः चरितनायक के नाम पर ही इस महाकाव्य की संज्ञा 'वसन्तविलास' है । इसमें अहिलपत्तन नामक राजधानी के दुर्ग तथा दुलंभराजनिर्मित सरोवर का वर्णन कर मूलराज से लेकर भीमदेव द्वितीय तक गुजरात के राजाओं का वर्णन है ( सगं २-३)। पुनः वस्तुपाल के मन्त्रिगुणवर्णन के पश्चात् वीरधवल द्वारा वस्तुपाल की मन्त्रिपद पर निमुक्ति का उल्लेख किया गया है । वीरधवल का वस्तुपाल को खम्भात का शासक नियुक्त करना तथा वस्तुपाल द्वारा मारवाड़ नरेश को पराजित करने का वर्णन है (सर्ग ४-५ )। तदनन्तर परम्परागत ऋतुवर्णन, पुष्पावचयदोलाजलकेंलिवर्णन, सन्ध्या, चन्द्रोदय एवं सूर्योदय वर्णन के उपरान्त वस्तुपाल के स्वप्नदर्शन का उल्लेख है जिसमें धर्म कलियुग में एक पाद
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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