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________________ नेमिचन्द्र शास्त्री ( ६९६ ) [ नेमिचन्द्र शास्त्री विरत करने का वर्णन है। 'विवाह-वर्णन' नामक पंद्रहवें सगं में स्वयं बलराम सुभद्रा एवं अर्जुन का विवाह कराते हैं । इसके अन्तिम सर्ग में कवि वंश वर्णन है। चरित्रचित्रण, प्रकृति-वर्णन, सौन्दर्य-चित्रण, रसपरिपाक, पांडित्यप्रदर्शन, अलंकार विधान, छन्दयोजना, भाषाशैली एवं शब्दक्रीड़ा की दृष्टि से यह महाकाव्य शिशुपालवध के समकक्ष है । प्रातःकाल की प्रकृति का सुरुचिपूर्ण चित्र देखने योग्य है-स्वप्ने निरीक्ष्य चरणप्रणतं युवानं सद्यः प्रसादरभसादुषसि प्रबुदा। अभ्यागतं चकितमेव चिराय काचिदाश्चर्यमममनयत्परिरभ्य तल्पे ॥ ९।४ । नेमिचन्द्र शास्त्री-पौष कृष्ण द्वादशी संवत् १९७९ में बसई धियाराम ग्राम धौलपुर (राजस्थान ) में जन्म । पिता का नाम बलवीर जी। जैनधर्मावलम्बी। न्यायतीर्थ, काव्यतीर्थ, ज्योतिषतीर्थ, ज्योतिषाचार्य प्रभृति उपाधियाँ । एम० ए० (संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत एवं जैनोलॉजी) पी-एच० डी०, डी० लिट् । सम्प्रति एच० डी० जैन कॉलेज, आरा ( मगधविश्वविद्यालय ) में संस्कृत-प्राकृत विभाग के अध्यक्ष । हिन्दी, संस्कृत और अंगरेजी तीनों भाषाओं में रचना । 'संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान' विषय पर मगधविश्वविद्यालय से डी० लिट् । [ भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से उक्त पुस्तक का प्रकाशन १९७१ ई.]। संस्कृत भाषा में 'संस्कृतगीतिकाव्यानुचिन्तनम्' तथा 'वाणशब्दानुशीलनम्' नामक आलोचनात्मक ग्रन्थों की रचना । प्रथम ग्रन्थ पर गंगानाथ झा पुरस्कार हिन्दी समिति ) प्राप्त । 'संस्कृतगीतिकाव्यानुचिन्तनम्' में पांच अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में पाश्चात्य विचारकों द्वारा अभिमत गीतिकाव्य की परिभाषाओं की समीक्षा तथा भारतीय आचार्यों द्वारा प्रतिपादित गीति तत्त्वों का निर्देश । द्वितीय अध्याय में संस्कृत गीतिकाव्यों की उत्पत्ति तथा विकासक्रम में ऋग्वेद, रामायण, महाभारत, पुराण आदि में समाहित गीतिकाव्यों के विश्लेषण के अनन्तर ऋतुसंहार, घटकपर, पवनदूत, नेमिदूत, शतकत्रय, शृङ्गारतिलक, अमरुकशतक, पञ्चाशिका, आर्यासप्तशती, गीतगोविन्द के गीतितत्वों का विश्लेषण और विवेचन । तृतीय अध्याय में संस्कृत नाटकों में समाहित गीतियों के विवेचन के पश्चात् स्तोत्रगीतिकाव्य, मेघदूत, पार्वाभ्युदय, अमरुक, गीतगोविन्द के गीति एवं काव्यमूल्यों के विवेचन के पश्चात् अनेक नवीन ग्रन्थों के गीतितत्त्वों का मूल्यांकन । चतुर्थ अध्याय में संस्कृत गीतिकाव्यों के आदान-प्रदान पर विचार करते हुए थेरी गाथाएँ तथा गाथा सप्तशती के अभाव का विश्लेषणं किया गया है। पंचम अध्याय में संस्कृत गीतिकाव्यों का सांस्कृतिक दृष्टि से अध्ययन किया गया है । सुशीला प्रकाशन, धौलपुर, १९७० ई० । शास्त्री जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं। इन्होंने गद्य के अतिरिक्त संस्कृत में श्लोकों की भी रचना की है। बापू शीर्षक कविता की कुछ पंक्तियाँ-न वाहानां व्यूहः श्रयति न च सैन्यं करिघटा, न यानं शास्त्राणामपि न च समीपे परिकरः । अहिंसाव्याख्यानैः सकलमरिलोकं विघटयन् अपूर्वः कोऽप्येवं समरभुवि वीरो विजयते ॥ आपने व्रततिथिनिर्णय, केवल ज्ञानप्रश्नचूड़ामणि, भद्रबाहुसंहिता, मुहूर्तदर्पण, रिटुसमुच्चय (प्राकृत ) रत्नाकरशतक (दो भाग ) तथा धर्मामृत का हिन्दी में अनुवाद कर इनका
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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