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________________ स्फोटायन] (६६९ ) [स्मृति धर्मशान "शिवताण्डवस्तोत्र' आदि। इनके लेखकों का पता नहीं चलता है, पर इनकी लोकप्रियता अधिक है। अधिकांश स्तोत्रग्रन्थों में शृङ्गारिकता, शब्दजाल एवं श्लेष तपा यमक के प्रति आकर्षण दिखाई पड़ता है। स्तोत्र-साहित्य के अनुशीलन से यह ज्ञात होता है कि इस पर कामशास्त्र का भी प्रभूत प्रभाव पड़ा और नखशिख की परिपाटी का समावेश हुआ। उत्तरकालीन ग्रन्थों में पाण्डित्य-प्रदर्शन, चमत्कार-सृष्टि, शब्दचमत्कार एवं उक्तिवैचित्र्य की प्रधानता दिखाई पड़ी। इस पर तन्त्रशास्त्र का भी प्रभाव पड़ा। __आधारगन्थ-१. संस्कृत साहित्य का इतिहास-श्री कीथ (हिन्दी अनुवाद)। २. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत क्लासिकल लिटरेचर-डॉ० दास गुप्त एवं है। ३. संस्कृत साहित्य का इतिहास-पं० बलदेव उपाध्याय । ४. संस्कृत साहित्य का नूतन इतिहास श्रीकृष्ण चैतन्य । ५. संस्कृत साहित्य का इतिहास-श्री गैरोला। स्फोटायन-पाणिनि के पूर्ववर्ती संस्कृत वैयाकरण जिनका समय मीमांसकजी के अनुसार २९५० वि० पू० है । इनके वास्तविक नाम का पता नहीं चलता। पाणिनि ने 'अष्टाध्यायी' के एक स्थान पर इनके मत को उद्धृत किया है। अवङ् स्फोटायनस्य । ६।१।१२३ । पदमन्जरीकार हरिदत्त ने 'काशिका' में इस सूत्र की व्याख्या करते हुए बताया है कि स्फोटायन स्फोटवाद के प्रवर्तक आचार्य हैं। भारद्वाज के 'वैमानिकशास्त्र' में स्फोटायन विमानशास्त्र के भी विशेषज्ञ माने गए हैं-वृहदविमानशा पृ० ७४ । इनके सम्बन्ध में अन्य विवरण प्राप्त नहीं होते। स्फोटवाद (व्याकरणशास्त्र का.) अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त है। इसका प्रवर्तक होने के कारण इनका महत्व असंदिग्ध है। आधारग्रन्थ-संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास-भाग १-५० युधिष्ठिर मीमांसक। स्मृति (धर्मशाल)-स्मृतियों का निर्माण हिन्दू-धर्म की व्यापकता एवं चरम विकास का द्योतक है । 'स्मृति' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में होता था जिसके अन्तर्गत षड्वेदांग, धर्मशास्त्र, इतिहास, पुराण, अर्थशास्त्र तथा नीतिशास्त्र सभी विषयों का समावेश हो जाता है। कालान्तर में स्मृति का प्रयोग संकीणं अपं में, धर्मशास्त्र के लिए होने लगा जिसकी पुष्टि मनु के कथन से भी होती है-श्रुतिस्तु वेदो विशेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृतिः । मनुस्मृति २०१० । 'तैत्तिरीय आरण्यक (१२) में भी स्मृति शन्द का उल्लेख है और गौतम ( ११२) तथा वसिष्ठ (१।४) मी स्मृति को धर्म का उपादान मानते हैं। प्रारम्भ में स्मृतिग्रन्थों की संख्या कम थी, किन्तु आगे चलकर पुराणों की भांति इनकी भी संख्या १८ हो गयी। गौतम ने ( ११११९) मनु के अतिरिक्त किसी भी स्मृतिकार का उल्लेख नहीं किया है। बोधायन ने अपने को छोड़कर जिन सात धर्मशास्त्रकारों के नाम लिये हैं, वे हैं-औपजेषनि, कात्य, काश्यप, गौतम, प्रजापति, मौदगल्य तथा हारीत । वसिष्ठ ने केवल पांच नामों की परिगणना की हैगौतम, प्रजापति, मनु, यम तथा हारीत । मनु ने ६ स्मृतिकारों का उल्लेख किया है
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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