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सन्देशकाग्य]
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[सन्देशकाव्य
नवगुप्त-ए हिस्टोरिकल एण्ड फिलोस्फिकल स्टसी पृ० ६५ ] । सन्देशकाव्य का परवर्ती विकास अधिकांशतः मेघदूत के ही आधार पर हुआ और उसमें 'घटकपरकाव्य' का भी महत्त्वपूर्ण योग रहा । कृष्णाचार्य का 'मेघसन्देशविमर्श', रामचन्द्र लिखित 'धनवृत्तम्', कृष्णमूर्तिकत 'यज्ञोल्लास', रामशास्त्री रचित 'मेघप्रतिसन्देश' तथा मैथिल कवि म. म. परमेश्वर क्षा प्रणीत 'यक्षसमागत' आदि काव्य उपर्युक्त ग्रन्थों से प्रभावित होकर ही लिखे गए हैं । सन्देशकाव्य की रचना में जैन कवियों का महत्वपूर्ण योग है। जिनसेन जैन तीर्थंकर पाश्वनाथ के जीवनचरित को 'पाश्र्वाभ्युदय' काव्य में चार सौ में वर्णित किया गया है। इसमें ३६४ पद्य हैं जिनमें १२० श्लोक मेघदूत के हैं। इनका समय ८१४ ई. है। विक्रम कवि (१५ वीं शती) ने 'नेमिदूत' की रचना की है जिसमें स्वामी नेमिनाथ के जीवन का वर्णन है। अन्य जैनकवियों की रचनायें हैं'शोलदूत' (सुन्दरगणिरचित ) चेतोदूत' ( अज्ञातनामा कवि ) तथा 'चन्द्रदूत' (विमल. कीति, १७ वीं शती)। - सन्देशकाव्यों की प्रौढ़ परम्परा १३ वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुई। १२ वीं शताब्दी के धोई कवि विरचित 'पवनदूत' एक उत्कृष्ट रचना है। १३ वीं शताब्दी के अवधूतरामयोगी ने १३. श्लोकों में 'सिद्धदूत' नामक सन्देशकाव्य की रचना की। १५ वीं शताब्दी के विष्णुदास कवि कृत 'मनोदूत' तथा रामशर्मा का 'मनोदूत', माधव कवीन्द्रभट्टाचार्यकृत 'उद्धवदूत' (१६ वीं शताब्दी), रूपगोस्वामी का 'उद्धवसन्देश' (१७ वीं शताब्दी ) आदि इस परम्परा की उत्कृष्ट रचनाएं हैं। १७ वीं शताब्दी में रुद्रन्याय वाचस्पतिकृत 'पिकदूत', वादिराजकृत 'पवनदूत', श्रीकृष्ण सार्वभौम रचित 'पादांकदूत', लम्बोदरवैद्य का 'गोपीदूत' तथा त्रिलोचन का 'तुलसीदूत' आदि सन्देशकाव्य लिखे गए। राम-कथा को आधार बना कर अनेक दूतकाव्य लिखे गए हैं जिनके नाम हैंवेदान्तदेशिककृत 'हंससन्देश', रुद्रवाचस्पति का 'भ्रमरदूत, वेंकटाचार्य का 'कोकिलसन्देश' तथा योधपुर के नित्यानन्द शास्त्री (२० वीं शती) रचित 'हनुमदूत'। ___ संस्कृत में दूतकाव्यों की रचना २० वीं शताब्दी तक होती रही है। म० म०पं० रामावतार शर्मा ने 'मुद्गलदूत' नामक व्यंग्यकाव्य की रचना की थी। लगभग ७४ सन्देशकाव्यों का पता चल चुका है जिनमें ३४ प्रकाशित हो चुके हैं। यह विचित्र संयोग है कि अधिकांश दूतकाव्य बंगाल में ही लिखे गए। डॉ. परमानन्द शास्त्री ने संदेशकाम्य-विषयक अपने अध्ययन का निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए पांच तत्त्वों का आकलन किया है-१. दूतकाव्य की परम्परा में मुख्यतः कालिदास का ही अनुकरण हुआ और भाषाशैली, छन्द तथा भाव की दृष्टि से मौलिकता का अंश अल्प रहा । २. दूतकाव्यों में शृङ्गार के अतिरिक्त भक्ति एवं दर्शन से सम्बद्ध भावों की भी अभिव्यक्ति हुई । ३. ऐतिहासिक और पौराणिक व्यक्तियों तथा गाथाओं के आधार पर भी दूतकाव्य रचे गए किन्तु अधिकतर उनकी कथावस्तु कल्पित ही रही। ४. समस्यापूत्ति की कला के विकास को इस परम्परा से बड़ा भारी बल मिला और मेघदूत की प्रत्येक पंक्ति को समस्या मानकर कई दूतकाव्य रचे गए। ५. मुक्तक काव्य की भांति रूढ़िपालन के