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________________ संस्कृत साहित्य] ( ६३५.) [संस्कृत साहित्य का भी प्रभाव है। श्रीहर्ष पर शांकरवेदान्त के अतिरिक्त न्याय-वैशेषिक एवं लोकायत मत का प्रभाव है । अश्वघोष आदि कवियों ने बौर-दर्शन की मान्यताओं का अवलम्ब लिया है तथा काव्य के माध्यम से दार्शनिक विचारों की अभिव्यक्ति की है। (४) विभिन्न कवियों की कलात्मक मान्यताओं में अन्तर पड़ता है। कालिदास ने भावपक्ष की समृद्धि पर बल दिया है तो परवर्ती कवियों की दृष्टि कलात्मक वैभव की ओर लगी है, फलतः संस्कृत में प्रभूत मात्रा में व्यर्थक, अनेकार्थक एवं चित्रकाव्यों की रचना हुई है। (५) संस्कृत की पांचवीं विशेषता है उसकी सांगीतिकता। संस्कृत काव्य का संगीततत्त्व अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया है तथा प्रत्येक कवि का संगीत व्यक्तिगत विशेषता से विभूषित है। "कालिदास का संगीत मधुर और कोमल है, माघ का गंभीर और धीर, भवभूति का कहीं प्रबल और उदात्त एवं श्रीहर्ष का संगीत एक कुशल गायक के अनवरत अभ्यास (रियाज) का संकेत करता है । दूसरी ओर विलासिता में सराबोर है।" संस्कृत कवि-दर्शन पृ० ३३-३४ । महाकाव्य-संस्कृत पद्य-साहित्य के अन्तर्गत महाकाव्यों की परम्परा अत्यन्त सबल, सशक्त एवं गरिमामयी है [ दे० संस्कृत महाकाव्य ] । संस्कृत के प्रसिद्ध महाकाव्य प्रणेता हैं-अश्वघोष ( बुद्धचरित, सौन्दरनन्द ), कालिदास (रघुवंश, कुमारसम्भव ), भारवि (किरातार्जुनीयम् ), कुमारदास (जानकीहरणम् ) भट्टि (भट्टिकाव्य), माष (शिशुपालवध ) तथा श्रीहर्ष ( नैषधचरित )। अन्य महाकाव्यकारों की भी देन कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। आधुनिक काल तक संस्कृत महाकाव्य लेखन की परम्परा किसी-न-किसी रूप में अक्षुण्ण है। काव्य के अन्य रूपों में खडकाव्य, गीतिकाव्य, सन्देशकाव्य, मुक्तक, स्तोत्र, उपदेशकाम्य तथा ऐतिहासिक काव्य आते हैं। ऐतिहासिक काव्यप्रणेताओं में पपगुप्तपरिमल ( नवसाहसांकचरित), विल्हण (विक्रमांकदेवचरित ), कल्हण ( राजतरंगिणी) तथा जयचन्द्रसूरि ( हम्मीर महाकाव्य ) के नाम प्रसिद्ध हैं [ दे० ऐतिहासिक महाकाव्य ] । खण्डकाव्य में महाकवि कालिदास रचित 'मेघदूत' का गौरवपूर्ण स्थान है [ दे० मेघदूत ] । इसके आधार पर संस्कृत में दूतकाव्य या सन्देशकाव्य लिखने की परम्परा का प्रवर्तन हुआ और अनेक ग्रन्थों की रचना हुई [दे० सन्देशकाव्य ] । संस्कृत में मुक्तककाव्य के कई रूप उपलब्ध होते हैं जिनमें शृङ्गार, नीति एवं वैराग्य. सम्बन्धी मुक्तकों की सशक्त परम्परा रही है। भर्तृहरि ने शृङ्गार, नीति एवं वैराग्य नामक तीन शतकों की रचना की है । अमरुक कवि कृत 'अमरुकशतक' तथा गोवर्धनाचार्य की 'आर्यासप्तशती' शृङ्गारी मुक्तकों की महत्वपूर्ण रचनाएं हैं। गीतिकाव्य के अन्तर्गत कवि जयदेव का 'गीतगोविन्द' अप्रतिम स्थान का अधिकारी है जिसमें शृङ्गार भक्ति एवं कलितकोमलकान्त पदावली का सम्यक् स्फुरण है। जयदेव के अनुकरण पर अनेक कवियों ने गीतकाव्यों की रचना की जिनमें 'अभिनव गीतगोविन्द', 'गीतराघव', 'गीतगङ्गाधर' तथा 'कृष्णगीता' आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । पण्डितराज जगन्नाथ कृत 'भामिनीविलास' गीतिकाव्य की महत्वपूर्ण रचना है।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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