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________________ संस्कृत शब्द कोश ] [ संस्कृत शब्द कोश ३ तथा उपनिषदकाण्ड भाग ४ के नाम विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। ग्रासमैन ने 'लेक्सिकन टु दि ॠग्वेद' नामक प्रसिद्ध कोश की रचना की है । ( ६३२ ) लोकिक संस्कृत कोश - लौकिक संस्कृत के अनेक महत्वपूर्ण कोश सम्प्रति प्राप्त नहीं होते। इन कोशों की शैली में भेद दिखाई पड़ता है। कुछ तो कोश पद्यबद्ध हैं तथा कुछ संज्ञाशब्दों एवं धातु शब्दों के संग्रह हैं। इन कोशों का भी क्रम श्लोकबद्ध है, कारादि क्रम से नहीं । इसमें समानार्थक तथा नानार्थक दो प्रकार के शब्द हैं । अमरकोश - संस्कृत का अत्यन्त लोकप्रिय कोश 'अमरकोश' है जिसे 'नामलिंगानुशासन' भी कहा जाता है। इसका रचनाकाल चौथी या पांचवीं शती के बीच है । इसके रचयिता अमरसिंह हैं। इस पर लिखी गयी टीकाओं की संख्या पचास के लगभग है, जिससे इसकी लोकप्रियता का पता चलता है। इन टीकाओं में 'प्रभा', 'माहेश्वरी', 'सुधा', 'रामाश्रयी', तथा 'नामचन्द्रिका' प्रसिद्ध हैं । 'अमरकोश' तीन काण्डों एवं दस-दस तथा पांच वर्गों में विभक्त है । यह कोश मुख्यतः पर्यायवाची कोश है । 'अमरकोश' के पश्चात् संस्कृत कोशों का निर्माण तीन पद्धतियों पर हुआ - नानार्थं कोश के रूप में, समानार्थक शब्दकोश तथा अंशतः पर्यायवाची कोश । 'अमरकोश' के कुछ समय बाद शाश्वत कृत 'अनेकार्थसमुच्चय' नामक कोश की रचना ८०० अनुष्टुप् छन्द में हुई थी। तत्पश्चात् ७ वीं शती में पुरुषोत्तमदेव ने 'त्रिकाण्ड कोश' तथा 'हारावली' नामक दो कोशों का निर्माण किया । वररुचि रचित एक कोश का हस्तलेख राजकीय हलायुध ने 'अभिधान रत्नमाला' विख्यात है। इसमें स्वर्ग, भूमि, इस पर 'अमरकोश' १३३७ ई० के साथ-ही-साथ पुस्तकालय, मद्रास में सुरक्षित है ।१० वीं शती में नामक कोश लिखा जो 'हलायुधकोश' के नाम से पाताल, सामान्य और अनेकार्थं पांच खण्ड तथा ९०० श्लोक हैं । का प्रभाव है । यादवप्रकाश नामक दाक्षिणात्य विद्वान् ने १०५५ से बच 'वैजयन्ती' नामक प्रसिद्ध कोश लिखा जो बृहदाकार होने के प्रामाणिक भी है। इसमें पर्यायवाची, नानार्थक, तथा अकारादि क्रम तीनों पद्धतियां अपनायी गयी हैं । कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र ने 'अभिधानचिन्तामणि' नामक प्रसिद्ध कोश-ग्रन्थ का प्रणयन किया जो ६ काण्डों में विभाजित है। इसका दूसरा नाम 'अभिधानचिन्तामणिनाममाला' भी है। यह पर्यायवाची कोश है । महेश्वर (११११ई०) ने दो कोशों की रचना की है- 'विश्वप्रकाश' तथा 'शब्दभेदप्रकाश' । १२ वीं शती में मखक कवि ने 'अमरकोश' के आधार पर 'अनेकार्थ' नामक कोश की रचना की थी । १२ वीं तथा १३ वीं शती के मध्य अजयपाल ने १००७ श्लोकों में 'नानार्थसंग्रह ' नामक कोशग्रन्थ लिखा । १२ वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में धनंजय ने 'नाममाला' नामक लघुकोश की रचना की और केशवस्वामी ने ( १२ वीं, १३ वीं शती) 'नानार्थार्णवसंक्षेप' तथा 'शब्दकल्पद्रुम' नामक कोश लिखा । १४ वीं शताब्दी के लगभग मेदिनिकर का 'नानाथं शब्दकोश' लिखा गया जो 'मेदिनिकोश' के नाम से प्रसिद्ध है । इस पर 'अमरकोश' का गहरा प्रभाव है । अन्य कोश-ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं--जिन प्रभसुरि - 'अपवगंनाममाला' ( १२ वीं शती), कल्याणमकृत
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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