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________________ आयुर्वेद शास्त्र] [आयुर्वेद शास्त्र प्राचां वाचां विचारेण शब्द-व्यापारनिर्णयम् । करोमि कोविदानन्दं लक्ष्यलक्षणसंयुतम् ।। इस पर ग्रन्थकार ने स्वयं 'कादम्बिनी' नामक टीका भी लिखी थी। यह शब्दवृत्ति का उत्पन्न प्रौढ़ ग्रन्थ है। [दे० इन्ट्रोडक्शन टू त्रिवेणिका-बटुकनाथ शर्मा पृष्ठ ११ ] त्रिवेणिका-यह शब्दशक्तियों का अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ है। इसमें अभिधा को गंगा, लक्षणा को यमुना एवं व्यंजना को सरस्वती माना गया है। यह ग्रन्थ तीन परिच्छेदों में विभक्त है और प्रत्येक में एक-एक शक्ति का विवेचन है। इसमें अर्थज्ञान के तीन विभाग किये गए हैं-चारु, चारुतर एवं चारुतम । अभिधा से उत्पन्न अर्थ चारु, लक्षणा से चारुतर एवं व्यंजनाजन्य अर्थ चारुतम होता है । तृतीय ग्रन्थ 'अलंकारदीपिका' 'कुवलयानन्द' के आधार पर निर्मित है। इसमें तीन प्रकरण हैं और प्रथम में 'कुवलयानन्द' की कारिकाओं को सरल व्याख्या प्रस्तुत की गयी है। द्वितीय प्रकरण में 'कुवलयानन्द' के अन्त में वणित रसवत् आदि अलंकारों की तदनुरूप कारिकाएं निर्मित की गयी हैं। तृतीय प्रकरण में संसृष्टि एवं संकर अलंकार के पांचों भेद वणित हैं और लेखक ने इन पर अपनी कारिकायें प्रस्तुत की हैं। अलंकारों के सम्यक् बोध के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी है। इनके अतिरिक्त आशाधर ने 'प्रभापटल' एवं 'अद्वैतविवेक' नामक दो दर्शन ग्रन्थों की भी रचना की है। 'त्रिवेणिका' का प्रकाशन 'सरस्वती-भगवन-टेक्ट्स' ग्रन्थमाला, काशी से हो चुका है। आधारग्रन्थ-भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १-आ० बलदेव उपाध्याय । आयुर्वेद शास्त्र-जिस विद्या के द्वारा आयु का ज्ञान प्राप्त होता है उसे आयुर्वेद कहते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र का वाचक है। इस शास्त्र में आयु के लिए उपयोगी एवं अनुपयोगी बातों का वर्णन होता है। 'शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा के संयोग का नाम आयु है । नित्यप्रति चलने से, कभी एक क्षण भर के लिए भी न रुकने से इसे आयु कहते हैं। आयु का ज्ञान जिस शिल्प या विद्या से प्राप्त किया जाता है, वह आयुर्वेद है। यह आयुर्वेद मनुष्यों की भांति वृक्ष, पशु-पक्षी आदि के साथ सम्बन्धित है, इसलिए इनके विषय में भी संहितायें बनायी गयीं।' आयुर्वेद का बृहत् इतिहास पृ० १३ । भारतीय आयुर्वेद की प्राचीनता असंदिग्ध है। 'सुश्रुत संहिता' में कहा गया है कि परमात्मा ने सृष्टि के पूर्व ही आयुर्वेद की रचना कर दी थी-अनुत्पाद्यैवप्रज्ञा आयुवेदमेवाग्रेसृजत् । सूत्र १ । आयुर्वेद मेवाग्रेऽसृजत् ततो विश्वानि भूतानि । 'काश्यप संहिता' । 'चरक संहिता' में आयुर्वेद को शाश्वत कहा गया है-नह्यायुर्वेदस्य भूत्वोत्पतिरुपलभ्यते अन्यत्रावबोधोपदेशाभ्याम् । एतद्वै द्वयमधिकृत्योत्पत्तिमुपदिशन्त्येके । सोऽपमायुर्वेदः शाश्वतो निर्दिश्यते, अनादित्वात्, स्वभावसंसिद्धलक्षणत्वाद भावस्वभावनित्यत्वाच्च ।' चरक सू० अ० ३०।२७ काश्यप ने आयुर्वेद को पंचमवेद की संज्ञा दी है-ऋग्वेदयजुर्वेदसामवेदाथर्ववेदेभ्यः पञ्चमोऽयमायुर्वेदः।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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