SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 625
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्मत ग] ( ६१४ ) [संस्कृत गद्य स प्रजापति । सुवर्णमात्मन्नपश्यत् तत् प्राजनयत् । तदेकमभवत्, तबलामभवत्, तन्मह. दभवत्, तजेष्ठमभवत्; तद् ब्रह्माभवम् तत् तपोऽभवत् तत्सत्यमभवत् तेन प्रजायत । अथर्व १५ काण्ड १ सूक्त शिलालेखों में संस्कृत गद्य का रूप अत्यन्त प्रौढ़ एवं अलंकृत एवं समासबहुल है। रुद्रदामन का जूनागढ़ का शिलालेख तथा समुद्रगुप्त का प्रयास का शिलालेख प्रौढ़ गय का रूप उपस्थित करता है । "प्रमाणमानोन्मान-स्वरगतिवणं. सारसत्वादिभिः परमलक्षणण्यजनैरुपेतकांतमूर्तिना स्वयमधिगत-महाक्षत्रपनाम्ना नरेन्द्रकन्या स्वयंवरानेकमाल्यप्राप्तदाम्ना महाक्षत्रपेण रुद्रदाम्ना सेतुं सुदर्शनतरं कारितम् ।" गिरनार का शिलालेख । शास्त्रीय गद्य-समस्त भारतीय दर्शनग्रन्थों का लेखन गद्य में ही हुआ है, यद्यपि कतिपय अपवाद भी हैं । इन ग्रन्थों में लेखक का ध्यान भावाभिव्यक्ति एवं अभिव्यक्ति पर अधिक रहा है । शब्द शुष्क भले ही हों, पर उनमें अभिप्रेत अर्थ की पूर्ण अभिव्यक्ति होनी चाहिए। कुछ ऐसे भी दर्शनकार हैं जिन्होंने अलंकृत एवं साहित्यिक शैली के गब व्यवहृत किये हैं । पतंजलि, शवरस्वामी, शंकराचार्य एवं जयन्तभट्ट के ग्रंथों में शास्त्रीय गद्य चरमसीमा पर पहुंच गया है। इन्होंने व्याकरण एवं दर्शन जैसे जटिल, गम्भीर एवं दुरूह विषय का सरल, बोधगम्य एवं प्रांजल शैली में विवेषन किया है। पतंजलि ने कथोपकथन की शैली में बोलचाल की भाषा का प्रयोग कर महाभाष्य की रचना की है। इनके वाक्य अत्यन्त छोटे एवं पद असमस्त हैं। ऐसा लगता है. आचार्य सम्मुख बैठे छात्रवर्ग को व्याकरण पढ़ा रहे हैं के पुनः कार्याभावानिवृत्ती तावत् तेषां यत्नः क्रियते । तद् यथा घटेन कार्य करिष्यन् कुम्भकारकुलं गत्वाह कुरु घटं कार्यमनेन करिष्यमीति । न तद्वच्छन्दान् प्रयुयुक्षमाणो वैयाकरणकुलं गत्वाह-कुरु शब्दान् प्रयोक्ष्य इति ।" पस्पशाह्निक। शबरस्वामी ने 'मीमांसासूत्र' पर सरल भाषा में भाष्य लिखा है और शंकराचार्य का वेदान्त-भाष्य का गद्य सारगर्भ, प्रौढ़ एवं प्रान्जल है । जयन्तभट्ट ने 'न्यायमन्जरी' नामक न्यायदर्शन का प्रामाणिक ग्रन्थ लिखा है। इन्होंने न्याय ऐसे जटिल विषय को सरस, व्यंग्य युक्त एवं चटुल उक्तियों के द्वारा हृदयंगम बनाया है। संस्कृत गद्य का वास्तविक विकास आख्यायिका एवं गद्य काव्यों से होता है। गुप्तकालीन तथा अन्य उपलब्ध शताधिक अभिलेखों में साहित्यिक गद्य का रूप दिखाई पड़ता है जिससे संस्कृत गद्य की प्राचीनता सिद्ध होती है। बाणभट्ट ने 'हर्षचरित' में भट्टारक हरिश्चन्द्र नामक सिद्धहस्त गद्य लेखक का उल्लेख किया है तथा अन्य लेखकों के ग्रन्थों में भी ऐसे शैलीकारों की नामावली दी गयी है जो अद्यावधि अज्ञात हैं। जल्हण ने वररुति-रचित 'चारुमती', रोमिहसोमिल्ललिखित 'शूद्रककथा' तथा धनपाल ने श्री पालितकृत 'तरंगावतीकथा', 'सातकर्णीहरण' तथा 'नमोवन्तीकथा' आदि प्राचीन ग्रन्थों का वर्णन किया है। इन ग्रन्थों के नामोल्लेख से ज्ञात होता है कि सुबन्धु, दण्डी एवं बाणभट्ट से पूर्व अनेक महान् गद्य-लेखक हो चुके थे। सुबन्धु, दण्डी और बाण संस्कृत गद्यकाव्य के महान् दीपस्तम्भ हैं। सुबन्धुकृत 'वासवदत्ता' प्रथम साहित्यिक कृति है जिसमें उदयन एवं वासवदत्ता की प्रणयकथा वर्णित है । इनका आविर्भाव ६ ठी
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy