________________
शंकरानन्द चम्पू]
( ५८५ )
[श्रीधर
विद्वान् ने 'कल्लोल' नामक टीका इसके १४ आश्वासों पर लिखी है। रचना का समय १७ वीं शताब्दी के आसपास है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण डी० सी० मद्रास १२२२९ में प्राप्त होता है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में वासुदेव की स्तुति की गयी है-'आनन्दे चिति सत्यनन्ययुजि च स्वस्मिन्नविद्याकृत-प्रारम्भादसतो निवृत्तमनसामस्मादबुद्धात्मनाम् । एतत्तथ्यमिव स्वसंगततया तन्वन् जगद्यस्स्वरा-डात्मे. वात्मविदां विभाति स सदा वो वासुदेवोऽवतान् ॥'
आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी।
शंकगनन्द चम्पू-इस चम्पूकाव्य के प्रणेता का नाम है गुरु स्वयम्भूनाथ राम । इनके जीवन एवं समय के संबन्ध में कुछ भी विवरण प्राप्त नहीं होता। यह अन्य पांच उच्छवास में विभक्त है जिसके अन्तिम कतिपय पृष्ठ नष्ट हो गए हैं। कवि ने 'महाभारत' के अनुकरण पर किरातार्जुनीय की कथा का वर्णन किया है। इनकी रचनाशैली पर पूर्ववर्ती कवियों की छाया देखी जाती है किन्तु ग्रन्थ उत्तम श्रेणी का है। यह रचना अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण डी. सी. मद्रास १२३७७ में प्राप्त होता है। प्रारम्भ में कवि गणेश की वन्दना की है तथा कथा का प्रारम्भ कैलाशपर्वत के रमणीय वर्णन से किया गया है-'मारुह्य यत्र हरवाहमहोक्षमोहाद्-गण्डोपलं गमनवीथिषु नेतुकामः । आस्फालनोत्तरल हस्ततलस्सहास-मालोक्यते । समम्बिकया कुमारः॥'
आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-3t० छविनाथ त्रिपाठी।
श्रीधर-ज्योतिषशास्त्र एवं बीजगणित के ममंश विद्वानों में श्रीधर का नाम लिया जाता है। इनका समय दशक शताब्दी का अन्तिम चरण है, पर कुछ विद्वान् इनका आविर्भाव-काल ७५० ई. मानते हैं। ये कर्णाटक प्रान्त के रहने वाले थे। इनके पिता का नाम बलदेव शर्मा एवं माता का नाम अव्वोका था। पहले ये शैव थे किन्तु आगे चलकर जैनधर्मावलम्बी बन गए। इन्होंने ज्योतिषशास्त्र विषयक तीन ग्रन्थों'गणितसार', 'ज्योतिज्ञानविधि' एवं 'जातकतिलक'-की रचना की है जिनमें प्रथम दो अन्य संस्कृत में एवं अन्तिम कन्नड़ भाषा में हैं। 'गणितसार' के वणित विषय हैंबभिन्नगुणक, भागहार, वर्ग, वर्गमूल, घनमूल, भिन्न, समच्छेद, भागजाति, प्रभागजातिभागानुबन्ध; भागमातृजाति, त्रैराशिक, सप्तराशिक, नवराशिक, भाण्डप्रतिभाण्ड, मिश्रकव्यवहार, भाव्यव्यवहारसूत्र, एकपत्रीकरणसूत्र, सुवर्णगणित, प्रक्षेपकगणित, समक्रमविक्रमसूत्र, श्रेणीव्यवहार, क्षेत्रव्यवहार, खातव्यवहार, चितिव्यवहार, कोहव्यवहार, राशिव्यवहार एवं छायाव्यवहार । 'ज्योतिर्शानविधि' में ज्योतिषशास्त्र के सामान्य सिद्धान्तों का वर्णन है। इसमें संवत्सरों के नाम, नक्षत्र, योगनाम, करणनाम एवं इनके शुभाशुभत्व, मासशेष, मासाधिपतिशेष, दिनशेष, दिनाधिपतिशेष आदि विषय वर्णित हैं।
बाधारमन्य-भारतीय ज्योतिष-डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री।