SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 590
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शुद्रक] ( ५७९ ) [ शुक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं किन्तु आगे चल कर इनका व्यक्तित्व लोककथाओं के घटाटोप में आच्छन्न हो गया । मृच्छकटिक शूद्रक की रचना नहीं है, किसी दूसरे कवि ने रच कर इसे शूद्रक के नाम से प्रचलित कर दिया है। भास-रचित 'दरिद्रचारुदत्त' के आधार पर किसी कवि ने इसमें आवश्यक परिवर्तन एवं कुछ कल्पनाओं का समावेश कर इसका रूप निर्मित किया था । गोपालदारक आयंक एवं पालक की कथा इसी कवि की देन है जिसका स्रोत उसे गुणाढ्य कृत बृहत्कथा में अथवा तत्कालीन प्रचलित अन्य लोककथाओं में प्राप्त हुआ होगा । किसी कारणवश उसने अपना नाम न देकर शुद्रक को इसके लेखक के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। प्रस्तावना में शूद्रक के परिचय वाले अंश में परोक्षभूते लिट् के द्वारा शूद्रक का वर्णन है तथा इन श्लोकों में ऐतिह्यसूचक 'किल' शब्द भी प्रयुक्त है । इस सम्बध में यह प्रश्न उठता है कि ऐसे कौन से कारण थे जिन्होंने लेखक को अपना नाम नहीं देने को बाध्य किया था । इस सम्बन्ध में दो कारणों की कल्पना की गयी है जो समीचीन भी हैं। प्रथम तो यह कि मूल नाटक के लेखक भास थे अत: इसे अपने नाम पर प्रचलित करने में लेखक हिचकिचा गया होगा, फलतः उसने शूद्रक का नाम देकर छुट्टी पा ली होगी । द्वितीय कारण यह है कि इस नाटक में जिन नवीन राजनीतिक, सामाजिक कल्पनाओं का समावेश किया गया है उनसे तत्कालीन समाज एवं राजयगं पर कशाघात किया गया है और उनकी खिल्ली उड़ाई गयी है । इसमें नाटककार ने क्रान्तिकारी विचारों को चरमसीमा पर पहुंचा दिया है । यहाँ ब्राह्मण चोर, जुआरी एवं चापलूस के रूप में चित्रित किए गए हैं और क्षत्रियों को क्रूर एवं दुराचारी दिखलाया गया है । राजा क्रूर और दुराचारी है तथा नीच जाति को रखेलियों को प्रश्रय देता है और नीच जाति के लोग ही राज्य के उच्चपदस्य पदाधिकारी हैं । न्याय केवल राजा की इच्छा पर आश्रित रहता है । अतः इन्हीं क्रान्तिकारी विचारों के समावेश के कारण राजदण्ड के भय से कवि ने अपना नाम नहीं दिया । पं० चन्द्रबली पाण्डेय ने इस समस्या के समाधान के लिए नवीन कल्पना की है, किन्तु उनकी स्थापनाएँ विश्वसनीय नहीं हैं। उनका कथन इस प्रकार है - " अधिक तो कह नहीं सकता, पर जी जानता है कि यदि भास को राजा शुद्रक का राजकवि मान लिया जाय तो 'चारुदत्त' और 'मृच्छकटिक' की उलझन भी बहुत कुछ सुलझ जाय x x x x x x x भाव यह कि प्रभूत प्रमाण इस पक्ष में है कि भास को राजा शुद्रक का राजकवि माना जाय और खुलकर कह दिया जाय कि वास्तव में उसी की प्रेरणा से कवि भास 'चारुदत्त' की रचना में लीन किन्तु, दैवदुर्विपाक कहिए कि बीच ही में चल बसे । निदान शुद्रक को आप ही अपनी कामना पूरी करनी पड़ी और फलतः 'चारुदत्त' झट 'मृच्छकटिक' में परिणत हो गया" शूद्रक पृ० ६०-६१ | नवीनतम खोजों के आधार पर डॉ० रामशंकर तिवारी ने अपने तीन निष्कर्ष दिये हैं थे। i क - 'मृच्छकटिक' के रचयिता शुद्रक ने दक्षिण भारत में राजसत्ता का उपभोग उस अवधि में किया होगा जो गुप्त साम्राज्य के पतन ( ५०० ईसवी) से आरम्भ होती है और थानेश्वर के महाराज हर्षवर्धन के उदय काल ( ६०६ ईसवी) में समाप्त
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy