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________________ ( ५७७) [शूद्रक ___ आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देश काव्य-डॉ रामकुमार आचार्य। शुक्र-भारत के प्राचीन राजशास्त्र-प्रणेता। इन्होंने 'शुक्रनीति' नामक राजशास्त्रसम्बन्धी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की है। भारतीय साहित्य में शुक्र दैत्यगुरु के नाम से अभिहित किये जाते हैं । 'महाभारत' के शान्तिपर्व में शुक्र (उशना-ऋषि) को राजशास्त्र की एक प्रमुख धारा का प्रवर्तक माना गया है तथा अर्थशास्त्र (कौटिल्य कृत ) में भी ये महान् राजशास्त्री के रूप में उल्लिखित हैं। पर इस समय जो 'शुक्रनीति' नामक ग्रन्थ उपलब्ध है वह उतना प्राचीन नहीं है । इस ग्रन्थ के लेखक का सम्बन्ध उशना या शुक्र से नहीं है। ये शुक्र नामधारी कोई अन्य लेखक हैं। विद्वानों ने इनको गुप्तकाल का राजशास्त्रवेत्ता स्वीकार किया है। 'शुक्रनीति' में वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है-राज्य का स्वरूप, देवीसिद्धान्त, राजा का स्वरूप, राजा के कत्र्तव्य, राजा की नियुक्ति के सिद्धान्त पैत्रिक अधिकार, ज्येष्ठता, शारीरिक परिपूर्णता, चारित्रिक योग्यता, प्रजा की अनुमति, राज्याभिषेक का सिद्धान्त, मन्त्रिपरिषद् की आवश्यकता, मन्त्रिपरिषद् की सदस्यसंख्या तथा उनकी योग्यताएं, राजकर्मचारियों की नियुक्ति के सिद्धान्त, पदच्युति का सिद्धान्त, राज की आय के साधन, कोश-संग्रह के सिद्धान्त, न्यायव्यवस्था, न्यायालयों का संगठन, राष्ट्र एवं उसकी विभिन्न बस्तियां, कुम्भ, पल्ली, ग्राम, ग्राम के अधिकारी, पान्थशाला, सैन्यबल, सेना-संगठन, सेना के अङ्ग, युद्ध, युद्ध के प्रकार, दैविकयुद्ध, आसुरयुद्ध, मानवयुद्ध, शस्त्रयुद्ध, बाहुयुद्ध, धर्मयुद्ध, धर्मयुद्ध के नियम आदि । शुक्रनीति (विद्योतिनी हिन्दी टीका के साथ ) का प्रकाशन चौखम्बा विद्याभवन से हो चुका है। आधारग्रन्थ-भारत के राजशास्त्र प्रणेता-डॉ० श्यामलाल पाण्डेय ।। शूद्रक-संस्कृत के नाट्यकारों में शूद्रक विशिष्ट महत्त्व के अधिकारी हैं। इन्होंने 'मृच्छकटिक' नामक महान् यथार्थवादी एवं रोमांटिक नाटक की रचना की है। यह अपने ढंग का संस्कृत का अकेला नाटक है। मृच्छकटिक एवं उसके रचयिता के संबंध में प्राक्तन तथा अद्यतन विद्वानों ने अनेक प्रकार के मत व्यक्त किये हैं। इसकी रचना कब हुई एवं कौन इसका रचयिता है, यह प्रश्न अभी भी विवाद का विषय बना हुआ है। कुछ विद्वान् मृच्छकटिक को ही संस्कृत का प्रथम नाटक मानते हैं और इसकी रचना कालिदास से भी पूर्व स्वीकार करते हैं। किन्तु यह मत मृच्छकटिक की भाषा, प्राकृत-प्रयोग, शैली एवं नाटकीय-संविधान की दृष्टि से खण्डित हो चुका है और इसका निर्माण-काल कालिदास के बाद माना गया है। परम्परा से मृच्छकटिक प्रकरण के प्रणेता शूद्रक माने जाते रहे हैं। इसकी प्रस्तावना में बताया गया है कि इसके रचयिता द्विजश्रेष्ठ शूद्रक थे जो ऋग्वेद, सामवेद, हस्तिविद्या आदि में पारंगत थे। उन्होंने सौ वर्ष १० दिन तक जीवित रहने के बाद अपने पुत्र को राज देकर चिता में प्रवेश कर अपना अन्त कर दिया था। 'ऋग्वेदं सामवेदं गणितमथकलां वैशिकी हस्तिशिक्षा ज्ञात्वा सर्वप्रसादात् व्यपगततिमिरे चक्षुषी चोपलभ्य । राजानं वीक्ष्य पुत्रं परमसमुदयेनाश्वमेधेन चेष्टवा-लब्ध्वा चायुः शतान्दं दशदिनसहितं शूद्र कोऽग्नि प्रविष्टः ॥ ४ ॥' पुनः उसमें कहा गया है कि शुद्रक संग्राम ३७ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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