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शाकटायन ]
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[शाकल्य
प्रकाश' एवं 'काव्यप्रकाश' का अधिक हाथ है । 'भावप्रकाशन' नाट्यशास्त्र एवं रस का अत्यन्त उपादेय एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें स्थायीभाव, संचारी, अनुभाव, नायिका आदि के विषय में अनेक नवीन तथ्य प्रस्तुत किये गए हैं तथा वासुकि, नारद एवं व्यास प्रभृति आचार्यों के मत का उल्लेख किया गया है।
आधारग्रन्थ-भारतीय साहित्य शास्त्र भाग १,-आ० बलदेव उपाध्याय ।
शाकटायन-संस्कृत के प्राचीन वैयाकरण जो पाणिनि के पूर्ववर्ती थे तथा इनका समय ३००० वि० पू० माना गया है। अष्टाध्यायी में इनका तीन बार उल्लेख किया गया है। लङ्ः शाकटायनस्यैव । अष्टाध्यायी ३।४।१११ । व्योलंघुप्रयत्नतरः शाकटायनस्य । ८।३।१८ त्रिप्रभृतिषु शाकटायनस्य । ८।४।५० । वाजसनेय प्रातिशाख्य तथा ऋक् प्रातिशाख्य में भी इनकी चर्चा है एवं निरुक्त' में भी इनके मत उद्धृत हैं। तत्र नामान्याख्यातजानीति शाकटायनो नैरुक्तसमयश्च ॥ १।१२। पतन्जलि ने भी स्पष्टतः इन्हें व्याकरण शास्त्र का प्रणेता माना है तथा इनके पिता का नाम 'शकट' दिया है। व्याकरणो शकटस्य च तोकम् । महाभाष्य ३।३।१। पं. गोपीनाथ भट्ट ने शाकटायन नामधारी दो व्यक्तियों का उल्लेख किया है (निरुक्त १।१२)। उनमें एक वाघ्रयश्व. वंश्य हैं एवं दूसरे काण्यवंश्य । मोमांसक जी काण्ववंशीय शाकटायन को ही वैयाकरण मानते हैं। इनका व्याकरण विषयक ग्रन्थ अत्यन्त महत्वपूर्ण था। तथा वे बहुज थे। इनके नाम पर विविध विषयों के ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं-'देवतग्रन्थ', 'निरुक्त', 'कोष', 'ऋक्तन्त्र', 'लघुऋक्तन्त्र', 'सामतन्त्र', 'पन्चपादी', 'उणादिसूत्र' तथा 'श्राद्धकल्प' । उपर्युक्त नामावली में से कितने ग्रन्थ शाकटायन द्वारा विरचित हैं इसका निश्चित ज्ञान नहीं है। मीमांसक जी के अनुसार प्रथम दो ग्रन्थ ही चैयाकरण शाकटायन द्वारा प्रणीत हैं तथा शेष ग्रन्थों का रचयिता सन्दिग्ध है। 'बृहद्देवता' में शाकटायन के देवतासम्बन्धी मतों के उद्धरण प्राप्त होते हैं, जिनसे विदित होता है कि इन्होंने निश्चित रूप से एतद्विषयक कोई ग्रन्थ लिखा होगा। इनके ध्याकरण-विषयक उद्धरणों से ज्ञात होता है कि इन्होंने लोकिक तथा वैदिक दोनों प्रकार के पदों का व्याख्यान किया था।
आधारग्रन्थ-१. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास, पं० युधिष्ठिर मीमांसक।
शाकल्य-पाणिनि के पूर्ववर्ती वैयाकरण जिनका समय ( मीमांसक जी के अनुसार ) ३१०० वि० पू० है । अष्टाध्यायी में. शाकटायन का मत चार स्थानों पर उद्धृत है-सम्बुद्धी शाकल्यस्येतावना, १११।१६, [ अष्टाध्यायी ६।१।१२७, ८।३।१९, ८।४।५१ ] । शौनक तथा कात्यायन के.प्रातिशाख्यों में भी शाकल्य के मतों का निर्देश किया गया है। संस्कृत में शाकल्य नामधारी चार व्यक्तियों का उल्लेख है-स्थविर. शाकल्य, विदग्धशाकल्य, वेदमित्र ( देवमित्र ) तथा शाकल्य । मीमांसक जी के अनुसार वैयाकरण शाकल्य एवं ऋग्वेद के पदकार वेदमित्र शाकल्य दोनों एक ही व्यक्ति हैं । इसका कारण यह है कि ऋक्पदपाठ में व्यवहृत कतिपय नियमों को पाणिनि ने शाकल्य के ही नाम से अष्टाध्यायी में उद्धृत कर दिया है। प्रातिशाख्यों में उद्धृत मतों से ज्ञात होता है कि शाकल्य ने लोकिक तथा वैदिक दोनों ही प्रकार के शब्दों का अन्वाख्यान किया है। इनका एक अन्य ग्रन्थ 'शाकल्यचरण' भी माना जाता है।