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जोशी । २१. संस्कृत साहित्य का इतिहास - कीथ ( हिन्दी अनुवाद) अनु० डॉ० मंगलदेव शास्त्री । २२. संस्कृत ग्रामर - र - मोनियर विलियम । २३. ग्रामेटिक डेसप्राकृत स्फुकुंन ( मूल ग्रंथ - जर्मन भाषा में ) - ले० पिशेल । अंगरेजी अनुवादक - डॉ० सुभद्र झा, हिन्दी अनुवादक - डॉ० हेमचन्द जोशी । २४. इन्ट्रोडक्शन टू प्राकृत - ९० सी० उन्नर । २५. प्राकृत प्रकाश डॉ० सरयू प्रसाद अग्रवाल ।
व्यास - वेदव्यास का नाम अनेक दार्शनिक एवं साहित्यिक ग्रन्थों के प्रणेता के रूप में विख्यात हैं । ये वेदों के विभागकर्त्ता, महाभारत, ब्रह्मसूत्र, भागवत तथा अन्य अनेक पुराणों के कर्त्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। प्राचीन विश्वास के अनुसार प्रत्येक द्वापर युग में आकर वेदव्यास वेदों का विभाजन करते हैं। इस प्रकार इस मन्वन्तर के अट्ठाईस व्यासों के होने का विवरण प्राप्त होता है। वत्तंमान वैवस्वत मन्वन्तर के अट्ठाईस द्वापर बीत चुके हैं। 'विष्णुपुराण' में अट्ठाईस व्यासों का नामोल्लेख किया गया है - ३ | ३|१०-३१। द्वापरे द्वापरे विष्णुर्व्यासरूपी महामुने । वेदमेकं सुबहुधा कुरुते जगते हितः ॥ वीर्य तेजो बलं चाल्पं मनुष्याणामवेक्ष्य च । हिताय सर्वभूतानां वेदभेदं करोति सः ॥ विष्णुपुराण ३।३।५-६ । अट्ठाईसवें व्यास का नाम कृष्णद्वैपायन व्यास है । इन्होंने ही महाभारत एवं अठारह पुराणों का प्रणयन किया है । व्यास नामधारी व्यक्ति के संबंध में अनेक पाश्चात्य विद्वानों का कहना है कि यह किसी का अभिधान न होकर प्रतीकात्मक, कल्पनात्मक या छद्म नाम है । मैक्डोनल भी इसी विचार के समर्थक हैं, पर भारतीय विद्वान् इस मत से सहमत नहीं हैं । प्राचीन ग्रन्थों में व्यास का नाम कई स्थानों पर आदर के साथ लिया गया है । 'अहिर्बुध्न्यसंहिता' में व्यास वेद- व्याख्याता तथा वेदवर्गयिता के रूप में उल्लिखित हैं। इसमें बताया गया है कि वाक् के पुत्र वाच्यायन या अपान्तरतमा नामक एक वेदज्ञ थे हिरण्यगर्भ के समकालीन थे। इन तीनों व्यक्तियों ने विष्णु के ( ऋग्यजुसाम), सांख्यशास्त्र एवं योगशास्त्र का विभाग किया था। है कि व्यास नाम कपिल एवं हिरण्यगर्भ की तरह एक व्यक्तिवाचक संज्ञा थी । अतः इसे भाववाचक न मानकर अभिधानवाचक मानना चाहिए | अहिर्बुध्न्य संहिता में व्यास का नाम अपान्तरतमा भी प्राप्त होता है और इसकी संगति महाभारत से बैठ जाती है । महाभारत में अपान्तरतमा नामक वेदाचार्य ऋषि का उल्लेख है, जिन्होंने प्राचीनकाल में एकबार वेद की शाखाओं का नियमन किया था । महाभारत के कई प्रसंगों में अपान्तरतमा नाम को व्यास से अभिन्न मान कर वर्णित किया गया है । कतिपय विद्वान् व्यास को उपाधिसूचक नाम मानते हैं। विभिन्न पुराणों के प्रवचनकर्त्ता व्यास कहे गये हैं और ब्रह्मा से लेकर कृष्णद्वैपायन व्यास तक २७ से लेकर ३२ व्यक्ति इस उपाधि से युक्त बताये गए हैं। यदि पुराण ग्रन्थों की बातें सत्य मान ली जायें तो 'जय' काव्य के रचयिता तथा कौरव पाण्डव के समकालीन व्यास नामक व्यक्ति ३२ वीं परम्परा के अन्तिम व्यक्ति सिद्ध होते हैं । इस प्रकार व्यास नाम का वैविध्य इसे भारतीय साहित्य की तरह प्राचीन सिद्ध करता है । म० म० पं० गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी का कहना है कि 'व्यास या वेदव्यास, किसी व्यक्ति-विशेष का
जो कपिल एवं आदेश से त्रयी
इससे सिद्ध होता
३६ सं० सा०
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