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________________ वैशेषिक दर्शन ] ( ५५२ ) [वैशेषिक दर्शन कम व्यापक हो वह अपर और मध्यबालेको परापर कहते हैं। सत्ता पर सामान्य का, घटत्व अपर सामान्य का एवं द्रव्यत्व परापर सामान्य का उदाहरण है। विशेष—यह सामान्य के विपरीत होता है। उस द्रव्य को विशेष कहते हैं जो निरवयव होने के कारण नित्य होता है। ऐसे द्रव्यों में आकाश, दिक्, काल, आत्मा पौर मन पाते हैं। एक श्रेणी के समान गुणवाले व्यक्तियों के पारस्परिक भेद को सित करने वाला पदार्थ 'विशेष' ही है। समवाय-सम्बन्ध के दो प्रकार होते हैं-संयोग और समवाय । भिन्न-भिन्न वस्तुओं का थोड़ी देर के लिए परस्पर मिल जाना संयोग है। यह सम्बन्ध अनित्य होता है। जैसे,-नदी के जल के साथ नाव का सम्बन्ध । समवाय सम्बन्ध नित्य होता है। यह दो पदार्थों का वह सम्बन्ध होता है जिसके कारण एक दूसरे में समवेत रहता है' । जैसे,—कार्य कारण सबन्ध । अभाव-यह दो प्रकार का होता है-संसर्गाभाव तथा अन्योन्याभाव । किसी वस्तु का किसी वस्तु में न होना संसर्गाभाव है। दो पदार्थों में होने वाले संसर्ग के अभाव या निषेध को ही संसर्गाभाव कहते हैं। जैसे, बग्नि में ठंडक का अभाव । एक वस्तु का अन्य वस्तु न होना अन्योन्याभाव है, जैसे अग्नि का जल न होना। संसर्गाभाव तीन प्रकार का होता है प्रागभाव, ध्वंसाभाव तथा अत्यन्ताभाव । उत्पत्ति के पूर्व किसी वस्तु में किसी वस्तु के अभाव या कारण में कार्य के अभाव को प्रागभाव कहते हैं। जैसे, उत्पत्ति के पूर्व मिट्टी में घट का अभाव । उत्पत्ति के बाद कारण में कार्य का अभाव होना प्रध्वंसाभाव है। जैसे, फूटे हुए घड़े के टुकड़े में घड़े का अभाव । दो वस्तुओं में कालिक सम्बन्ध के अभाव को अस्यन्ताभाव कहते हैं। यह शाश्वत या अनादि बोर अनन्त होता है। सृष्टि तथा प्रलय-वैशेषिक मत को परमाणुवाद भी कहा जाता है । इसके अनुसार संसार के सभी द्रव्य चार प्रकार के परमाणुओं से निर्मित होते हैं। वे हैं-पृथ्वी, जल, तेज और वायु । वैशेषिकमत में आकाश, दिक्, काल, मन और आत्मा के परमाणु नहीं होते । वैशेषिक के परमाणुवाद का आधार आध्यात्मिक सिद्धान्त है। इसके अनुसार ईश्वर के द्वारा ही परमाणुओं की गति नियन्त्रित होती है तथा वह जीवों में अदृष्ट के अनुसार ही कर्मफल का भोग कराने के लिए परमाणुओं को क्रियाशील करता है। सृष्टि और प्रलय ईश्वर की इच्छा के अनुसार होते हैं। जब दो परमाणुओं का संयोग होता है तो उसे पणुक एवं तीन घणुकों का संयोग व्यणुक या त्रसरेणु कहा जाता है। ये सभी सूक्ष्म होने के कारण दृष्टिगोचर नहीं होते तथा अनुमान के द्वारा ही इनका ज्ञान होता है। सारा संसार इन्हीं परमाणुओं के संयोग से बना है। जीव अपने बुद्धि, ज्ञान तथा कम के द्वारा ही सुख-दुःख का भोग करता है। इससे यह सिद्ध होता है कि सुख-दुःख कम-फल के नियम पर भी अवलम्बित है, केवल प्राकृतिक नियमों पर नहीं। सृष्टि और प्रलय के कर्ता महेश्वर माने गए हैं। वे जब चाहते। तब सृष्टि होती है और उनकी इच्छा से ही प्रलय होता है। इसका प्रवाह अनन्त बार
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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