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________________ वैदिक साहित्य] ( ५४८ ) [वैदिक साहित्य अनुसार ऋग्वेद दस महलों में विभक्त है जिनमें १०१७ सूक्त हैं और प्रत्येक सूक्त में कई मन्त्र हैं । मन्त्रों की संख्या १०५८० है । [ दे० ऋग्वेद | .. यजुर्वेद-यजुष् शब्द का अर्थ है पूजा और यज्ञ। इसमें बाध्वयं कर्म के लिए प्रयुक्त याजुष संगृहीत हैं । यह दो भागों में विभक्त है-कृष्ण एवं शुक्ल यजुर्वेद । ग्वेद के बहुत से मन्त्र यजुर्वेद में संग्रहीत हैं [ दे० यजुर्वेद] । सामवेद-सामवेद में सामगानों का संग्रह है जो उद्गाता नामक ऋत्विज के द्वारा उच्चस्वर में गाये जाते थे । इसमें १८७५ ऋचाएं हैं जिनमें १०७१ ऋचायें तो ऋग्वेद की ही हैं, शेष १०५ मन्त्र नवीन हैं। अथर्ववेद-इसमें अभिचार या मारण, मोहन, उच्चाटन मन्त्रों का संग्रह है। यह बीस काण्डों में विभक्त है। इसमें भी ऋग्वेद के बारह सौ मन्त्र हैं। ब्राह्मण-ब्राह्मण ग्रन्थों की रचना गद्य में हुई है। प्रत्येक वेद के पृथक्-पृथक बाह्मण हैं। इनका प्रधान विषय है कर्मकाण्ड । इनमें यज्ञीय कर्मों तथा मन्त्रों के यससम्बन्धी विनियोग वणित हैं तथा अनेकानेक लौकिक एवं आध्यात्मिक पाख्यानों का कथन किया गया है [दे० ब्राह्मण] । आरण्यक-ये ब्राह्मण ग्रन्थों के ही परिशिष्ट हैं। इनमें दर्शन सम्बन्धी विचार भरे पर हैं । दे० आरण्यक]। __ उपनिषद-वेदों के अन्तिम भाग को उपनिषद् कहा जाता है। इनका प्रतिपाद्य है ब्रह्मविद्या । उपनिषदों की संख्या १०८ है पर उनमें ११ प्रमुख हैं-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्ड, माण्डषय, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक एवं श्वेताश्वतर [दे० उपनिषद ]. ___ वेदांग-वेदांगों की संख्या ६ है-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष । वेदों की भाषा की शुद्धता एवं उच्चारण को सुरक्षित रखने के लिए शिक्षाअन्यों की रचना हुई है। कल्प के चार विभाग है-श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र तथा शुल्बसूत्र । प्रत्येक वेद के अलग-अलग कल्पसूत्र हैं। श्रौतसूत्रों में विविध यज्ञों का विधान तथा गृह्यसूत्रों में सामाजिक संस्कारों-विवाह, उपनयन एवं पाठ-का वर्णन है । धर्मसूत्रों में चारो वर्णों एवं आश्रमों के कर्तव्य-कर्म का विवेचन एवं शुल्ब सूत्रों में वेदिकामापन-विधि का वर्णन है [ दे. वेदांग] । ___ व्याकरण-सम्प्रति वैदिक व्याकरण उपलब्ध नहीं है । पाणिनि-ध्याकरण में ही वेदों का व्याकरण प्रस्तुत किया गया है। निरुक्त-निरुक्त में वैदिक शब्दों की व्युत्पत्ति दी गयी है। निघष्ट्र की टीका का नाम निरुक्त है और निघण्टु में चुने हुए वैदिक शब्द हैं | दे. निरुक्त ] । छन्द-वेदों की रचना छन्दोबद्ध है। इनमें कई प्रकार के छन्दों का प्रयोग है। जिनका विश्लेषण प्रातिशाख्यों तथा पिंगल कृत 'छन्दःसूत्र' में किया गया है [२० छन्द || ज्योतिष-यज्ञ-सम्पादन के लिए कालज्ञान की आवश्यकता को देखते हुए ज्योतिषप्रन्थों की रचना हुई है। इनमें दिन, रात, ऋतु, माह, वर्ष, नक्षत्र आदि का सम्यक्
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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