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________________ विरूपाक्ष वसन्तोत्सव चम्पू ] ( ५०८ ) [ विशाखदत्त राजा रहा है । राजा मृगांकवर्मन की स्थिति से अवगत नहीं था । द्वितीय अंक में कुंतल राजकुमारी कुवलयमाला का विवाह मृगांकवर्मन् से करना चाहती है । राजा ने एक दिन मृगांकवर्मन् को वास्तविक स्थिति में क्रीड़ा करते तथा प्रणय लेख पढ़ते हुए देखा और उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गया। तीसरे अंक में विदूषक के साथ मृगांकावली से मिला एवं उसके साथ प्रेमालाप करते हुए उस पर आसक्त हो गया । चतुर्थं अंक में महारानी ने मृगांकवर्मन् को अपने प्रेम का प्रतिद्वन्द्वी समझ कर उसे स्त्री वेश में सुसज्जित कर उसका विवाह राजा के साथ करा दिया। महारानी को अपनी असफलता पर बहुत बड़ा आघात पहुंचता है और वह बाध्य होकर कुवलयमाला का विवाह राजा विद्याधर के साथ करा देती है । विरूपाक्ष वसन्तोत्सव चम्पू- इसके रचयिता अहोबल हैं [ इनके जीवन सम्बन्धी विवरण के लिए दे० यतिराजविजय चम्पू ] । यह ग्रन्थ भी खण्डितरूप में ही प्राप्त है ओर श्री आर० एस० पंचमुखी द्वारा सम्पादित होकर मद्रास से प्रकाशित है । ग्रन्थ के अन्तिम परिच्छेद के अनुसार इसकी रचना पामुडिपट्टन के प्रधान के आग्रह पर हुई थी । यह चम्पूकाव्य चार काण्डों में विभक्त है । इसमें कवि ने बिरूपास महादेव के वसन्तोत्सव का वर्णन किया है । प्रथमतः विद्यारण्य यति का वर्णन किया गया है जो विजयनगर राज्य के स्थापक थे। इसके बाद काश्मीर के भूपाल एवं प्रधान पुरुष राशिदेशाधिपति का वर्णन है । कवि माधव नवरात्र में सम्पन्न होनेवाले विरूपाक्ष महादेव के वसन्तोत्सव का वर्णन करता है । प्रारम्भिक तीन काण्डों में रथयात्रा तथा चतुर्थकाण्ड में मृगया महोत्सव वर्णित है । कवि ने अवान्तर कथा के रूप में एक लोभी तथा कृपण ब्राह्मण की रोचक कथा का वर्णन किया है । स्थानस्थान पर बाणभट्ट की शैली का अनुकरण किया गया है पर इसमें स्वाभाविकता एवं सरलता के भी दर्शन होते हैं। नगरों का वर्णन प्रत्यक्षदर्शी के रूप में किया गया है। व्यंग्यात्मकता एवं वस्तुओं का सूक्ष्म वर्णन कवि की अपनी विशेषता है । आधारग्रन्थ-- चम्पूकाव्य का छबिनाथ त्रिपाठी । आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन -- डॉ० उद्धरण 'नाट्यदर्पण' । इस नाटक में कवि विशाखदत्त - संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार और कवि । इनकी एकमात्र प्रसिद्ध रचना 'मुद्राराक्षस' उपलब्ध है तथा अन्य कृतियों की भी सूचनाएं प्राप्त होती हैं, जिनमें 'देवीचन्द्रगुप्तम्' नामक नाटक प्रमुख है। इस नाटक के तथा 'शृङ्गारप्रकाश' नामक काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं ने ध्रुवस्वामिनी एवं चन्द्रगुप्त के प्रणय प्रसंग का वर्णन किया है तथा चन्द्रगुप्त के बड़े भाई रामगुप्त की कायरता की कहानी कही है। 'मुद्राराक्षस' में संघर्षमय राजनीतिक जीवन का कथा कही गयी है और चन्द्रगुप्त, चाणक्य एवं मलयकेतु के मन्त्री राक्षस के चरित्र को इसका वण्यं विषय बनाया गया है। अन्य संस्कृत लेखकों की भांति विशाखदत्त के जीवन का पूर्ण विवरण प्राप्त नहीं होता । विशाखदत्त एवं विशाखदेव । इन्होंने 'मुद्राराक्षस' की थोड़ा बहुत जो कुछ भी कहा है वही इनके विवरण का इनके दो नाम मिलते हैंप्रस्तावना में अपने विषय में प्रामाणिक आधार है । इससे
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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