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________________ विद्याधर] ( ५०६ ) [विद्यानाप अनेक श्लोक संस्कृत आलंकारिकों द्वारा उद्धृत किये गए हैं। मुकुलभट्ट ने 'अभिधावृत्तिमातृका' में 'दृष्टि हे प्रतिवेशिनि क्षणमिहाप्यस्मद्गृहे दास्यसि' तथा मम्मट ने 'काव्यप्रकाश' में (चतुषं उल्लास अर्थमूलक वस्तु प्रतिपाद्य ध्वनि के उदाहरण में ) 'धन्यासि या कथयसि' को उद्धृत किया है। मुकुलभट्ट का समय ९२५ ई. के आसपास है, अतः विज्जिका का अनुमानित समय ७१० से १५० ई. के बीच माना जा सकता है। इनकी रचनाएँ शृङ्गारप्रधान हैं। कवेरभिप्रायमशन्दगोचरं स्फुरन्तमाद्रेषु पदेषु केवलम् । वदभिरङ्गः कृतरोमविक्रियजनस्य तूष्णीं भवतोऽयमन्जलिः ॥ यहां सहृदय भावुक का वर्णन है। वास्तविक कवि अपने भावों को अभिधा द्वारा प्रकट न कर व्यंजना की सहायता से व्यक्त करता है । शब्दों से भावों की अभिव्यक्ति नहीं होती, किन्तु रससिक्त मनोरम पदों के द्वारा भाव प्रकट होता है। ऐसे महाकवि के काव्य का ममंश वह होता है जो रसभरी पदावली का अर्थ समझ कर शब्दों द्वारा प्रकट नहीं करता पर चुप रहकर रोमांचित अङ्गों के द्वारा कवि के गूढ भाव को व्यक्त कर देता है। विद्याधर-काव्यशास्त्र के आचार्य। इन्होंने 'एकावली' नामक काव्यशास्त्रीय अन्य की रचना की है जिसमें काव्य के दांगों का वर्णन है। इनका समय ९३ वीं शताब्दी का अन्त या १४ वीं शताब्दी का आरम्भ है। एकावली' पर मल्लिनाथ (१४ वीं शताब्दी का अन्त ) ने 'तरला' नामक टीका लिखी है। इस ग्रन्थ के समस्त उदाहरण स्वयं विद्याधर द्वारा रचित हैं और वे उस्कलनरेश नरसिंह की प्रशस्ति में लिखे गए हैं। 'एकावली' में आठ उन्मेष हैं और अन्य तीन भागों में रचित है-कारिका, वृत्ति एवं उदाहरण। तीनों ही भाग के रचयिता विद्याधर हैं। इसके प्रथम उन्मेष में काव्य के स्वरूप, द्वितीय में वृत्तिविचार, तृतीय में ध्वनि एवं चतुर्थ में गुणीभूतव्यङ्गय का वर्णन है। पंचम उन्मेष में गुण एवं रीति, षष्ठ में दोष, सप्तम में शब्दालंकार एवं अष्टम में अर्थालंकार वर्णित हैं। इस ग्रन्थ पर 'ध्वन्यालोक', 'काव्यप्रकाश' एवं 'अलंकारसर्वस्व' का पूर्ण प्रभाव है। अलंकार-विवेचन पर हय्यक का ऋण अधिक है और परिणाम, उल्लेख, विचित्र एवं विकल्प अलंकारों के लक्षण 'अलंकारसर्वस्व' से ही उद्धृत कर दिये गए हैं। विद्याधर ने अलंकारों का वर्गीकरण भी किया है जो रुय्यक से प्रभावित है । लेखक ने पुस्तकरचना के उद्देश्य को इस प्रकार प्रकट किया है-एष विद्याधरस्तेषु कांतासंमितलक्षणम् । करोमि नरसिंहस्य चाटुश्लोकानुदाहः रन् ॥ एकावली १६४६ । विद्याधर ने 'केलिरहस्य' नामक कामशास्त्रीय ग्रन्थ की भी रचना की है । 'एकावली' का प्रकाशन श्रीत्रिवेदी रचित भूमिका एवं टिप्पणी के साथ बम्बे संस्कृत सीरीज से हुआ है। आधारग्रन्थ-१. एकावली-श्री त्रिवेदी द्वारा सम्पादित प्रति । २. संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास-डॉ. पा. वा. काणे । ३. अलंकारानुशीलन-राजवंश सहाय 'हीरा'। विद्यानाथ-काव्यशास्त्र के आचार्य। इन्होंने 'प्रतापरुद्रयशोभूषण' या 'प्रतापरुद्रीय' नामक काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की है। विद्यानाथ (मान्ध्र प्रदेश के.)
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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