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________________ बाराह मा बराहपुराण ] ( ५०० ) [ वाराह या वराहपुराण हैं ( ८३२, ३३ ) । 'महाभारत' के बनपर्व में भी 'वायुपुराण' का स्पष्ट निर्देश हैएव ते सर्वमाख्यातमतीतानागतं मया । वायुप्रोक्तमनुस्मृत्य पुराणमृषिसंस्तुतम् ॥ १९११६ । इससे इस पुराण की प्राचीनता सिद्ध होती है । आधारग्रन्थ - १ - वायुपुराण ( हिन्दी अनुवाद ) - अनु० पं० रामप्रसाद त्रिपाठी । २ – दी वायुपुराण - ( अंगरेजी ) - डॉ० हाजरा ( इण्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टर्ली ) भाग १४।१९३८ । ३ – पुराणतत्वमीमांसा - श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी । ४पुराण - विमर्श - पं० बलदेव उपाध्याय । ५ - प्राचीन भारतीय साहित्य - विन्टर नित्स भाग १, खण्ड २ ६ – इतिहास पुराणानुशीलन - डॉ० रामशंकर भट्टाचायं । ७– वेदस्य पुराणगत सामग्री का अध्ययन - डा० रामशंकर भट्टाचार्य । वाराह या वराहपुराण - क्रमानुसार १२ वां पुराण। इस पुराण में भगवान विष्णु के वराह अवतार का वर्णन है, अतः उन्हीं के नाम पर इसका नामकरण किया गया है । विष्णु ने वराह का रूप धारण कर पाताललोक से पृथ्वी का उद्धार कर इस पुराण का प्रवचन किया था । यह वैष्णवपुराण है । 'नारद' और 'मत्स्यपुराण' के अनुसार इसकी श्लोक संख्या २४ सहस्र है, किन्तु कलकते की एशियाटिक सोसाइटी के प्रकाशित संस्करण में केवल १०७०० श्लोक हैं । इसके अध्यायों की संख्या २१७ है तथा गौड़ीय और दाक्षिणात्य नामक दो पाठ-भेद उपलब्ध होते हैं, जिनके अध्यायों की संख्या में भी अन्तर दिखाई पड़ता है। यहां तक कि एक ही विषय के वर्णन में इलोकों में भी अन्तर आ गया है। इसमें सृष्टि एवं राजवंशावलियों की संक्षिप्त चर्चा है, पर पुराणोक्त विषयों की पूर्ण संगति नहीं बैठ पाती। ऐसा लगता है कि यह पुराण विष्णु भक्तों के निमित्त प्रणीत स्तोत्रों एवं पूजा-विधियों का संग्रह है । यद्यपि यह वैष्णव पुराण है, तथापि इसमें शिव एवं दुर्गा से सम्बद्ध कई कथाएँ विभिन्न अध्यायों में वर्णित हैं । ९० से ९५ अध्याय तक किया गया इसमें मातृ-पूजा और देवियों की पूजा का भी वर्णन है तथा गणेश जन्म की कथा एवं गणेशस्तोत्र भी दिया गया है । 'वाराहपुराण' में श्राद्ध, प्रायश्चित, देव-प्रतिमा निर्माण विधि आदि का भी कई अध्यायों में वर्णन है तथा १५२ से १६८ तक १७ अध्याय लगाये कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा - माहात्म्य के वर्णन में गए हैं । मथुरा - माहात्म्य में मथुरा का भूगोल दिया हुआ है तथा उसकी उपयोगिता इसी दृष्टि से है। इसमें नचिकेता का उपाख्यान भी विस्तारपूर्वक वर्णित है जिसमें स्वर्ग और नरक का वर्णन है । विष्णु-सम्बन्धी विविध व्रतों के वर्णन में इसमें विशेष बल दिया गया है, तथा द्वादशी व्रत का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए विभिन्न मासों में होने वाली द्वादशी का कथन किया गया है। इस पुराण के कई सम्पूर्ण अध्याय गद्य में निबद्ध हैं ( ८१-८३, ८६-८७, ७४ ) तथा कतिपय अध्यायों में गद्य और पद्य दोनों का मिश्रण है । 'भविष्यपुराण' के दो वचनों को उधृत किये जाने के कारण यह उससे अर्वाचीन सिद्ध होता है । [ १७७।५१ ) इस पुराण में रामानुजाचार्य के मत का विशद रूप से वर्णन है । इन्हीं आधारों पर विद्वानों ने इसका समय नवम-दशम शती के लगभग निश्चित किया हैं । आधारग्रन्थ – १ – प्राचीन भारतीय साहित्य भाग १, खण्ड २ – विन्टर निरस ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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