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________________ वामनपुराण] ( ४९७ ) [वामनपुराण मनोरथः शङ्खदत्तश्चटकः सन्धिमांस्तथा। बभूवुः कवयस्तस्य वामनाद्याश्च मन्त्रिणः ।। ४।४९७ जयापीड़ का समय ७७९ से ८१३ ई० तक है । वामन का उल्लेख अनेक आलंकारिकों ने किया है जिससे उनके समय पर प्रकाश पड़ता है। राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में 'वामनीयाः' के नाम से इनके सम्प्रदाय के आलंकारिकों का उल्लेख है तथा अभिनवगुप्त ने एक श्लोक [ ध्वन्यालोक में उद्धृत-अनुरागवती सन्ध्या दिवसस्तत्-पुरःसरः। अहो देवगतिः कीदृक् तथापि न समागमः ।।] के सम्बन्ध में बताया है कि वामन के अनुसार इसमें आक्षेपालंकार है। इस प्रकार राजशेखर एवं अभिनव से वामन पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं । 'काव्यालंकारसूत्रवृत्ति' में ३१९ सूत्र एवं पांच अधिकरण हैं। स्वयं वामन ने स्वीकार किया है कि उन्होंने सूत्र एवं वृत्ति दोनों की रचना की है-प्रणम्य परमं ज्योतिमिनेन कविप्रिया । काव्यालंकारसूत्राणां स्वेषां वृत्तिविधीयते ।। मंगलश्लोक । इसमें गुण, रीति, दोष एवं अलंकार का विस्तृत विवेचन है। वामन ने गुण एवं अलंकार के भेद को स्पष्ट करते हुए काव्यशास्त्र के इतिहास में महत्त्वपूर्ण योग दिया है। इनके अनुसार गुण काव्य के नित्यधर्म हैं और अलंकार अनित्य । काव्य के शोभाकारक धर्म अलंकार एवं उसको अतिशायित करने वाले गुण हैं, सौन्दर्य ही अलंकार है। इन्होंने उपमा को मुख्य अलंकार के रूप में मान्यता दी है और काव्य में रस का महत्व स्वीकार किया है। आधारग्रन्थ-१. हिन्दी काव्यालंकारसूत्रवृत्ति-आ० विश्वेश्वर । २. भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १, २-आ० बलदेव उपाध्याय । वामनपुराण-पुराणों में क्रमानुसार चौदहवां पुराण । 'वामनपुराण' का सम्बन्ध भगवान् विष्णु के वामनावतार से है । 'मत्स्यपुराण' में कहा गया है कि जिस पुराण में त्रिविक्रम या वामन भगवान् की गाथा का ब्रह्मा द्वारा कीर्तन किया गया है और जिसमें भगवान् द्वारा तीन पगों से ब्रह्माण्ड को नाप लेने का वर्णन है, उसे 'वामनपुराण' कहते हैं। इसमें दस सहस्र श्लोक एवं ९२ अध्याय हैं तथा पूर्व और उत्तर भाग के नाम से दो विभाग किये गए हैं। इस पुराण में चार संहिताएं हैं-माहेश्वरीसंहिता, भागवतीसंहिता, सोरीसंहिता और गाणेश्वरीसंहिता। इसका प्रारम्भ वामनावतार से होता है तथा कई अध्यायों में विष्णु के अवतारों का वर्णन है। विष्णुपरक पुराण होते हुए भी इसमें साम्प्रदायिक संकीर्णता नहीं है, क्योंकि विष्णु की अवतार-गाथा के अतिरिक्त इसमें शिव-माहात्म्य, शैवतीर्थ, उमा-शिव-विवाह, गणेश का जन्म तथा कात्तिकेय की उत्पत्ति की कथा दी गयी है। 'वामनपुराण' में वर्णित शिवणवंतीचरित का 'कुमारसंभव' के साथ आश्चर्यजनक साम्य है। विद्वानों का कहना है कि कालिदास के कुमारसंभव से प्रभावित होने के कारण इसका समय कालिदासोत्तर युग है। वेंकटेश्वर प्रेस की प्रकाशित प्रति में नारदपुराणोक्त विषयों की पूर्ण संगति नहीं बैठती। पूर्वाद्ध के विषय तो पूर्णतः मिल जाते हैं किन्तु उत्तरार्द की माहेश्वरी, भागवती, सौरी और गाणेश्वरी नामक चार संहिताएं मुद्रित प्रति में प्राप्त नहीं होती। इन संहिताओं की श्लोक संख्या चार सहन है । वामन पुराण की विषय-सूची-कूमकल्प के वृत्तान्त का वर्णन, ब्रह्माजी के शिरच्छेद की कथा, कपाल. ३२ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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