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________________ वात्स्यायन कामसूत्र] ( ४९५ ) [वात्स्यायन कामसूत्र में एक ही नाम वाले व्यक्ति कहे गए हैं, पर ये नाम भ्रमवश एक शाथ जुट गए हैं। 'नीतिसार' के रचयिता कामन्दक को चाणक्य का प्रधान शिष्य मानते हुए उसे वात्स्यापन से अभिन्न माना गया है। सुबन्धुरचित 'वासवदत्ता' में कामसूत्रकार का नाम मल्लनाग दिया हुआ है। कामसूत्र के टीकाकार ( जयमंगला) यशोधर भी वात्स्यायन का वास्तविक नाम मल्लनाग स्वीकार करते हैं तथा बहुत से विद्वान् न्यायभाष्यकर्ता वात्स्यायन को कामसूत्र के प्रणेता वात्स्यायन से अभिन्न मानते हैं। इसी प्रकार वात्स्यायन के स्थितिकाल के विषय में भी मतभेद दिखाई पड़ता है। म० म० हरप्रसाद शास्त्री के अनुसार वात्स्यायन का समय ई० पू० प्रथम शताब्दी है, पर शेष इतिहासकारों ने इनका आविर्भाव तीसरी या चौथी शती में माना है। पं० सूर्यनारायण व्यास (प्रसिद्ध ज्योतिर्विद ) ने इनका स्थितिकाल कालिदास के पश्चात् ई०पू० प्रथम शताब्दी माना है। इस प्रकार वात्स्यायन के नामकरण तथा उनके आविर्भावकाल दोनों के ही सम्बन्ध में विविध मतवाद प्रचलित हैं जिनका निराकरण अभी तक न हो सका है । 'कामसूत्र' का विभाजन अधिकरण, अध्याय तथा प्रकरण में किया गया है। इसके प्रथम अधिकरण का नाम 'साधारण' है तथा इसके अन्तर्गत ग्रन्थ-विषयक सामान्य विषयों का परिचय दिया गया है। इस अधिकरण में अध्यायों की संख्या पांच है तथा पांच प्रकरण हैं--शास्त्रसंग्रह, त्रिवर्गप्रविपत्ति, विद्यासमुद्देश, नागरकवृत्त तथा नायक सहाय-दूतीकर्म विमर्श प्रकरण। प्रथम प्रकरण का प्रतिपाव विषय धर्म, अर्थ तथा काम की प्राप्ति है। इसमें कहा गया है कि मनुष्य श्रुति, स्मृति आदि विभिन्न विद्याओं के साथ अनिवार्य रूप से कामशास्त्र का भी अध्ययन करे । कामसूत्रकार के अनुसार मनुष्य विद्या का अध्ययन कर · अर्थोपार्जन में प्रवृत्त हो तत्पश्चात् विवाह करके गार्हस्थ्य जीवन व्यतीत करे । किसी दूती या दूत को सहायता से उसे किसी नायिका से सम्पर्क स्थापित कर प्रेम-सम्बन्ध बढ़ाना चाहिए, तदुपरान्त उसी से विवाह करना चाहिए जिससे कि गार्हस्थ्य जीवन सदा के लिए सुखी बने। द्वितीय अधिकरण की अभिधा साम्प्रयोगिक है जिसका अर्थ है सम्भोग । इस अधिकरण में दस अध्याय एवं सत्रह प्रकरण हैं जिनमें नाना प्रकार से स्त्री-पुरुष के सम्भोग का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि जब तक मनुष्य सम्भोगकला का सम्यक् ज्ञान नहीं प्राप्त करता तब तक उसे वास्तविक आनन्द नहीं मिलता। तृतीय अधिकरण को कन्या साम्प्रयुक्त कहा गया है। इसमें पांच अध्याय तथा नौ प्रकरण हैं। इस प्रकरण में विवाह के योग्य कन्या का वर्णन किया गया है। कामसूत्रकार ने विवाह को धार्मिक बन्धन माना है। चतुर्थ अधिकरण को भार्याधिकरण' कहते हैं। इसमें दो अध्याय तथा आठ अधिकरण हैं तथा भार्या के दो प्रकार ( विवाह होने के पश्चात् कन्या को भार्या कहते हैं ) वर्णित हैं एकचारिणी तथा सपत्नी। इस अधिकरण में दोनों भार्याओं के प्रति पति का तथा पति के प्रति उनके कर्तव्य का वर्णन है। पांचवें अधिकरण को संज्ञा 'पारदारिक' है। इस प्रकरण में अध्यायों की संख्या छह तथा प्रकरणों की संख्या दस है। इसका विषय परस्त्री तथा परपुरुष के प्रेम का वर्णन है। किन परिस्थितियों में प्रेम उत्पन्न होता है, बढ़ता एवं
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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