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________________ रुद्रभट्ट ] ( ४७९ ) [ रुद्रभट्ट परिच्छेद, कारकचक्र, विधिरूपनिरूपण, उदाहरणलक्षण- टीका, उपाधिपूर्वपक्षग्रन्थ- टीका, केवलान्वयि - टीका, पक्षतापूर्व ग्रन्थ- टीका, न्यायसिद्धान्तमुक्तावली टीका, व्याध्यनुगम- टीका, कारकाद्यर्थं निर्णय टीका, सव्यभिचार - सिद्धान्त - टीका, भावप्रकाशिका, अनुमति टीका, अनुमिति टीका, कारकवाद, तत्वचिन्तामणिदीधिति टीका आदि । इनके द्वारा रचित तीन काव्य ग्रन्थ भी हैं— भावविलासकाव्य, भ्रमरदूत एवं विकदूत । भ्रमरदूत में राम द्वारा किसी भ्रमर से सीता के पास सन्देश भेजने का वर्णन है । इसमें २३२ श्लोक हैं और समग्र ग्रन्थ मन्दाक्रान्ता वृत्त में ही लिखा गया है । 'पिकदूत' नामक सन्देशकाव्य में राधा ने पिक के द्वारा श्रीकृष्ण के पास सन्देश भेजा है । यह काव्य अत्यन्त छोटा है और इसमें कुल ३१ श्लोक हैं । कोकिल को दूत बनाने के कारण पर राधा मुख से वर्णन सुनिये - सर्वास्वेव सभासु कोकिल भगवान् वक्ता यतस्त्वद्वचः । श्रुत्वा सर्वनृणां मनोऽपि रमते त्वं चापि लोकप्रियः ।। ४ । इसमें राधा एवं श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेम का अत्यन्त सुन्दर रूप प्रदर्शित किया गया है । के आधारग्रन्थ संस्कृत के सन्देश- काव्य - डॉ० रामकुमार आचार्य । रूद्रभट्ट:- काव्यशास्त्र के आचार्यं । इन्होंने 'शृङ्गारतिलक' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया है जिसमें रस एवं नायक-नायिका भेद का विवेचन है । इनका समय डॉ० एस के. डे के अनुसार दसवीं शताब्दी है । 'श्रृङ्गारतिलक' का सर्वप्रथम उद्धरण हेमचन्द्रकृत काव्यानुशासन' में प्राप्त होता है। हेमचन्द्र का समय १०८८-११७२ ई० माना जाता है, अतः रुद्धट का समय दसवीं शताब्दी के आसपास ही है । बहुत दिनों तक रुद्रट एवं रुद्रभट्ट को एक ही व्यक्ति माना जाता रहा है किन्तु अब निश्चित हो गया है कि दोनों भिन्न-भिन्न व्यक्ति थे । वेबर, बुहलर, औफट एवं पिशल ने दोनों को अभिन्न माना है । पर रुद्रटकृत 'काव्यालंकार' एवं 'शृंगारतिलक' के अध्ययन के उपरान्त दोनों का पार्थक्य स्पष्ट हो चुका है । शृङ्गारतिलक' की अनेक हस्तलिखित प्रतियों में इसका लेखक रुद्र या रुद्रट कहा गया है और कहीं-कहीं ग्रन्थ का नाम 'शृंगारतिलकाक्यकाव्यालंकार' भी प्राप्त होता है । 'भावप्रकाशन' एवं 'रसार्णवसुधाकर' नामक ग्रन्थों मेंद्र के नाम से ही 'शृंगारतिलक' के मत उद्धृत हैं और अनेक सुभाषित ग्रन्थों में भी दोनों लेखकों के सम्बन्ध में भ्रान्तियां फैली हुई हैं । शृङ्गारतिलक में तीन परिच्छेद हैं और मुख्यतः इसमें शृङ्गार रस का विस्तृत विवेचन है । प्रथम परिच्छेद में नौ रस, भाव एवं नायिका भेद का वर्णन है । द्वितीय परिच्छेद में विप्रलम्भ शृंगार एवं तृतीय में शृङ्गारेतर आठ रस तथा वृत्तियों का निरूपण है । 'शृङ्गारतिलक' में सर्वप्रथम काव्य की दृष्टि से रस को निरूपण किया गया है और चन्द्रमा के बिना रात्रि, पति के बिना नारी एवं दान के बिना लक्ष्मी को भीति रस के बिना वाणी को अशोभन माना गया है— प्रायो नाट्यं प्रतिप्रोक्ता भरताद्य रसस्थितिः । यथामति मयाप्येषा काव्यंप्रति निगद्यते ॥ १।४ यामिनीवेन्दुना मुक्ता नारीव रमणं विना । लक्ष्मीरिव ऋते त्यागान्नो वाणी भाति नीरसा ॥ १।६ । 'शृङ्गारतिलक' एवं रुद्रटकृत 'काव्यालंकार' के अध्ययन के उपरान्त विद्वानों ने निम्नांकित अन्तर प्रस्तुत किये हैं क—रुद्रट के 'काव्यालंकार' के चार अध्यायों के वर्णित विषय 'शृङ्गारतिलक' से
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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