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________________ रत्नावली ] ( ४५५ ) [रत्नावली निचयैरचिषामादधानः सान्द्रोद्यानद्रुमाग्रग्लपनपिशुनितात्यन्त तीवाभितापः । कुर्वन् क्रीडामहीधं सजलजलधरश्यामलं धूमपातैरेष प्लोषातयोषिज्जन इह सहसैवोत्थितोऽन्तः पुरेऽग्निः ॥" ४१४ । “अरे, अन्तःपुर में अचानक अग्नि लग गई है, जिससे भयभीत होकर स्त्रियां आत्तंनाद कर रही हैं। अग्नि की लपटों के फैल जाने से राजप्रासादों के शिखर स्वर्णकान्ति के सदृश हो गये हैं, उद्यान के घने वृक्षों को सुलसाकर अग्नि ने अपने तीव्र ताप को प्रकट कर दिया है . तथा अग्नि से उठे हुए धुएं के कारण क्रीड़ा पर्वत सजल मेघ के सदृश काला हो गया है।" ऐन्द्रजालिक के चमत्कारों से अद्भुत रस की तथा वसुभूति द्वारा रत्नावली के डूबने का समाचार सुनकर वासवदत्ता के रो पड़ने में करुण रस की व्यंजना हुई है। कवि ने श्रृंगार के उभय रूपों-संयोग तथा वियोग-का सुन्दर दृश्य उपस्थित किया है। सामरिका और उदयन के प्रेम को पूर्वानुराग के रूप में चित्रित किया गया है, जो वियोग शृङ्गार के ही अन्तर्गत आयेगा। __'रत्नावली' में नाट्य-रचना-कोशल का पूर्ण परिपाक हुआ है। इसमें कवि ने शृङ्गार रस की मार्मिक अभिव्यक्ति की है । इस नाटिका में रंगमंच पर अभिनीत होने वाली सभी विशेषताएं हैं। इसमें कवि ने अपनी प्रतिभा के द्वारा ऐसी घटनाओं का नियोजन किया है जो न केवल चमत्कारिणी हैं, अपितु स्वाभाविक भी हैं तथा कथावस्तु के विकास में तीव्रता लाने वाली हैं। सारी घटनाओं के नाटकीय ढङ्ग से घटित होने के कारण इसका कथानक कौतूहलपूर्ण है। द्वितीय अङ्क में सारिका द्वारा सागरिका एवं सुसंगता के बार्तालाप की पुनरावृत्ति राजा के हृदय में सागरिका के प्रति प्रेमोद्रेक में सहायक बनती है। कवि की यह कल्पना अत्यन्त प्रभावपूर्ण एवं कथा को गति देनेवाली है। वेष-विपर्यय वाला दृश्य अत्यन्त हृदयग्राही है। सागरिका द्वारा वासवदत्ता का वस्त्र धारण कर अभिसरण करना तथा उस घटना का रहस्य वादवदत्ता को प्राप्त हो जाने के वर्णन में हर्ष की कल्पनाशक्ति के उच्चतम रूप का परिचय प्राप्त होता है। इसी प्रकार ऐन्द्रजालिक की घटना तथा राजकीय बन्दर के भागने की कल्पना में हर्ष की प्रतिभा ने नाटिका में अद्भुत सौन्दर्य की सृष्टि की है। काव्यत्व-चारता तो इस नाटक की अपनी विशेषता है। कवि ने सरस, मृदुल तथा कोमल शब्दों के द्वारा समस्त कृति को आकर्षक बनाया है। स्थानस्थान पर तो काव्य की मधुरिमा अवलोकनीय है, जहां कवि ने रमणीय पदावली का निदर्शन कर चित्र को अधिक सघन एवं मोहक बनाया है। इसमें कहीं भी दुरुह शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है, और न कठिन समासबन्ध ही हैं। इसके सभी पात्र प्राणवन्त एवं आकर्षक हैं। कवि ने विषय के अनुरूप इसकी नायिका रत्नावली को मुग्धा के रूप में चित्रित किया है । शृङ्गार रस की पुष्टि के निमित्त वसन्त, सन्ध्या आदि के मधुर चित्र उपस्थित किये गए हैं। वैदर्भी रीति का सर्वत्र प्रयोग करने के कारण नाटिका में माधुर्य गुण ओत-प्रोत है। चरित्र-चित्रण-रत्नावली में प्रधान पात्र तीन है-राजा उदयन, रत्नावली एवं वासवदत्ता । गौण पात्रों में योगन्धरायण, विदूषक आदि आते हैं। राजा उदयन-इस
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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