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________________ अश्वघोष ] ( ३४ ) [अश्वघोष ख-सम्राट अशोक का राज्यकाल ई० पू० २६९ से २३२ ई० पू० है, यह तथ्य पूर्णतः इतिहास-सिद्ध है। 'बुद्धचरित' के अन्त में अशोक का उल्लेख होने के कारण यह निश्चित होता है कि अश्वघोष अशोक के परवर्ती थे। ग-चीनी परम्परा अश्वघोष को कनिष्क का दीक्षा-गुरु मानने के पक्ष में है। अश्वघोष कृत 'अभिधर्मपिटक' की विभाषा नाम्नी एक व्याख्या भी प्राप्त होती है जो कनिष्क के ही समय में रची गयी थी। घ-अश्वघोष रचित 'शारिपुत्रप्रकरण' के आधार पर प्रो० ल्यूडस ने इसका रचनाकाल हुविक का शासनकाल स्वीकार किया है । हुविष्क के राज्यकाल में अश्वघोष की विद्यमानता ऐतिहासिक दृष्टि से अप्रामाणिक है। इनका राज्यारोहणकाल कनिष्क की मृत्यु के बीस वर्ष के बाद है। हुविष्क के प्राप्त सिक्कों पर कहीं भी बुद्ध का नाम नहीं मिलता, किन्तु कनिष्क के सिक्कों पर बुद्ध की नाम अंकित है । कनिष्क बौद्धधर्मावलम्बी थे और हुविष्क ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। अतः अश्वघोष का उनके दरबार में विद्यमान होना सिद्ध नहीं होता। __ङ-कालिदास तथा अश्वघोष की रचनाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकलता है कि अश्वघोष कालिदास के परवर्ती थे। कालिदास की तिथि प्रथम शताब्दी ई० पू० स्वीकार करने से यह मानना पड़ता है कि दोनों की रचनाओं में जो साम्य परिलक्षित होता है उससे कालिदास का ऋण अश्वघोष पर सिद्ध होता है। ___ च-कनिष्क के सारनाथ वाले अभिलेख में किसी अश्वघोष नामक राजा का उल्लेख है । विद्वानों ने इसे महाकवि अश्वघोष का ही नाम स्वीकार किया है।। ___ छ-चीनी एवं तिब्बती इतिहासकारों ने अश्वघोष के कई उपनामों का उल्लेख किया है; और वे हैं-आर्यशूर, मातृचेष्ट आदि । बौद्धधर्म के विख्यात इतिहासकार तारानाथ भी (तिब्बती) मातृचेष्ट एवं अश्वघोष को अभिन्न मानते हैं। परन्तु यह तथ्य ठीक नहीं है। चीनी यात्री इत्सिंग के (६०५-६९५ ई० ) इस कथन से कि मातृचेष्ट कृत डेढ़ सौ स्तोत्रों की पुस्तक 'अयशतक' का अश्वघोष प्रभृति प्रसिद्ध विद्वान् भी अनुकरण करते हैं, यह तथ्य खण्डित हो जाता है। मातृचेष्ट का कनिष्क के नाम लिखा हुआ एक पत्र 'कणिक लेख' (जो पद्यात्मक पत्र है) तिब्बती भाषा में प्राप्त होता है, जिसमें लिखा है कि मातृचेष्ट वृद्धत्व के कारण कनिष्क (कणिक ) के पास आने में असमर्थ है। इस प्रकार कनिष्क एवं मातृचेष्ट की अभिन्नता खण्डित हो जाती है। __ अश्वघोष के जीवनसम्बन्धी अधिक विवरण प्राप्त नहीं होते। सौन्दरनन्द' नामक महाकाव्य के अन्तिम वाक्य से विदित होता है कि इनकी माता का नाम सुवर्णाक्षी तथा निवासस्थान का नाम साकेत था। वे महाकवि के अतिरिक्त 'भदन्त', 'आचार्य', तथा 'महावादी' आदि उपाधियों से भी विभूषित थे। "आर्यसुवर्णाक्षीपुत्रस्य साकेतस्य भिक्षोराचार्यस्य भदन्ताश्वघोषस्य महाकवेर्वादिनः कृतिरियम्"।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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