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________________ यजुर्वेद ] ( ४३८ ) [ यजुर्वेद उसकी समस्त शाखाएं उपलब्ध नहीं होती । महाभाष्यकार पतन्जलि के अनुसार इसकी सौ शाखायें थीं। इस समय इसकी दो शाखाएँ प्रसिद्ध हैं - 'कृष्णयजुर्वेद' एवं शुक्ल यजुर्वेद । इनमें भी प्रतिपाद्य विषय की प्रधानता के कारण 'शुक्लयजुर्वेद' अधिक महस्वशाली है । 'शुक्लयजुर्वेद' की मन्त्रसंहिता को 'वाजसनेयीसंहिता' कहते हैं, जिसमें ४० अध्याय हैं तथा अन्तिम १५ अध्याय 'खिल' होने के कारण परवर्ती रचना के रूप में स्वीकार किये जाते हैं । इसके ( शुक्लयजुर्वेद ) प्रारम्भिक दो अध्यायों दर्श एवं पोर्णमास यज्ञों से सम्बद्ध मन्त्र वर्णित हैं तथा तृतीय अध्याय में अग्निहोत्र और चातुर्मास्य यज्ञों के लिए उपयोगी मन्त्र संगृहीत हैं । चतुथं से अष्टम अध्याय तक सोमयागों का वर्णन है । इनमें सवन ( प्रातः, मध्याह्न एवं सायंकाल के यज्ञ ), एकाह ( एक दिन समाप्त होने वाला यज्ञ ) तथा राजसूय का वर्णन है। राजसूय के अन्तर्गत द्यूतक्रीडा, अस्त्रक्रीडा, आदि नाना प्रकार की राज्योचित क्रीडाएं वर्णित हैं । ग्यारह से १८ अध्याय तक 'अनिचयन' या यज्ञीय होमाग्नि के लिए वैदिका -निर्माण का गया है । १९ से २१ अध्यायों में सोत्रामणि यज्ञ की विधि का वर्णन है तथा २२ से २५ तक अश्वमेध का विधान किया गया है । २६ से २९ तक 'खिलमन्त्र' (परिशिष्ट ) संकलित हैं और तीसवें अध्याय में पुरुषमेध वर्णित है । ३१ वें अध्याय में 'पुरुषसूक्त' है जिसमें ॠग्वेद' से ६ मन्त्र अधिक हैं । ३२ एवं ३३ में बध्याय में 'शिवसंकल्प' का विवेचन किया गया है । ३५ वें अध्याय में पितृमेध तथा ३६ से १: तक प्रवयाग वर्णित है। इसके अन्तिम अध्याय में 'ईशावास्य उपनिषद्' है। 'शुक्लयजुर्वेद' की दो संहिताएँ हैं - माध्यन्दिन एवं काण्व । मद्रास से प्रकाशित काव्यसंहिता में ४० अध्याय, ३२६ अनुवाक् तथा २०६६ मन्त्र हैं । माध्यन्दिन संहिता के मन्त्रों की संख्या १९७५ है । वर्णन किया कृष्णयजुर्वेद - चरणव्यूह के अनुसार 'कृष्णयजुर्वेद' की ८५ शाखाएँ हैं जिनमें केवल चार ही उपलब्ध हैं- तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ तथा कपिष्ठल कठशाखा । तैत्तिरीय संहिता- - इस शास्त्र के सभी संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, श्रीतसूत्र और गृह्यसूत्र उपलब्ध हैं । तैत्तिरीय संहिता में ७ काण्ड हैं तथा वे ४४ प्रपाठक एवं ६३१ अनुवाक् में विभक्त हैं। इसमें पौरोडाश, याजमान, वाजपेय, राजसूय आदि नाना प्रकार के यज्ञों का विधान है। मैत्रायणीसंहिता - इसमें गद्य एवं पद्य दोनों का मिश्रण है। इसके चार खण्ड हैं। प्रथम काण्ड में ११ प्रपाठक हैं जिनमें दर्शपूर्णमास, अध्वर, आधान, पुनराधान, चातुर्मास्य एवं वाजपेय यज्ञ वर्णित हैं । द्वितीय राजसूय एवं अमिचिति का विस्तारपूर्वक तथा अभिचिति, अध्वरविधि, सोत्रामणी एवं अश्वमेध का वर्णन किया गया है। चतुर्थ काण्ड को खिलकाण्ड कहते हैं जिसमें काण्ड में १३ काण्ड हैं तथा काम्य ईष्टि, वर्णन है। तृतीय काण्ड में १६ प्रपाठक हैं १४ प्रपाठक हैं तथा पूर्व वर्णित सभी यज्ञों से सम्बद्ध सामग्रियों का विवेचन है । सम्पूर्ण मैत्रायणी संहिता में २१४४ मन्त्र हैं जिनमें १७०१ ऋचाएँ 'ऋग्वेद' की हैं । कठसंहिता पाँच खण्डों में विभक्त है जिन्हें क्रमशः इठिमिका, मध्यमिका, ओरिमिका, माज्यानुवादया तथा अश्वमेधानुवचन कहा जाता है । इसमें ४० स्थानक, १३ अनु
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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