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मेक्डोनेल ]
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{ मेघदूत
श्लेष वचनों से भी हास्य की सृष्टि की है। मैत्रेय ( विदूषक ) एवं शकार दो पात्रों के द्वारा हास्य उत्पन्न होता है । जुआड़ी संवाहक के चरित्र में भी हास्य का पुट दिया गया है। चारुदत्त की दरिद्रता के चित्रण में करुण रस की व्यंजना हुई है। शकार द्वारा वसन्तसेना के गला घोंटने पर विट के विलाप में भी करुण रस की सृष्टि हुई है तथा धूता के चितारोहण एवं चारुदत्त के मृत्युदण्ड मिलने पर मैत्रेय तथा उसके पुत्र के रुदन में करुण रस दिखाई पड़ता है।
आधारग्रन्थ--१. मृच्छकटिक-( हिन्दी अनुवाद ) चौखम्बा। २. महाकवि शूद्रकडॉ. रमाशंकर तिवारी ।३. संस्कृत-काव्यकार-टॉ० हरिदत्त शास्त्री । ४. संस्कृत-नाटकसमीक्षा-डॉ. इन्द्रपाल सिंह 'इन्द्र'। ५. संस्कृत नाटक ( हिन्दी अनुवाद ) कीथ । ६. ड्रामा इन संस्कृत लिटरेचर-डॉ० जागीरदार। ७. दी लिट्ल क्ले कार्ट-(भूमिका) ए. डब्ल्यू. राइडर । ८. शूद्रक-पं० चन्द्र बली पाण्डेय । ९. इन्ट्रोडक्शन टु द स्टडी ऑफ मृच्छकटिक-श्री जी० वी० देवस्थली । १०. संस्कृत ड्रामा-श्री इन्दुशेखर । ११. प्रिफेस टु मृच्छकटिक-जी० के० भट्ट ।
मेक्डोनेल-इनका पूरा नाम डॉ० आर्थर एंथनी मेक्डोनेल था और जन्म ११ मई १८५४ ई० में मुजफ्फरपुर में हुआ था। इनके पिता अलेक्जण्डर मेक्डोनेल भारतीय सेना के एक उच्चपदस्थ अधिकारी थे। इनकी शिक्षा गोटिङ्गन ( जर्मनी ) में हुई थी। इन्होंने तुलनात्मक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से जर्मन, संस्कृत एवं चीनी भाषाओं का अध्ययन किया था। ये प्रसिद्ध वैयाकरण मोनियर विलियम्स, बेनफी (भाषाशास्त्री) रॉट एवं मैक्समूलर के शिष्य थे। इनका जन्म भारत में हुआ था किन्तु इन्हें विदेशों में ही शिक्षा प्राप्त हुई थी। १९०७ ई० में इन्होंने छह-सात मास के लिए भारत की यात्रा की थी और इसी यात्राकाल में भारतीय हस्तलिखित पोथियों पर अनुसंधान भी किया था। एम० ए० करने के पश्चात् इन्होंने ऋग्वेद की कात्यायन कृत सर्वानुक्रमणी का पाठ शोधकर उस पर प्रबन्ध लिखा, जिसके ऊपर इन्हें लिपजिग विश्वविद्यालय से पी० एच० डी० की उपाधि प्राप्त हुई। तत्पश्चात् इनकी नियुक्ति संस्कृत प्राध्यापक के रूप में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई। इनके ग्रन्थों की नामावली-१. ऋग्वेद सर्वानुक्रमणिका का 'वेदार्थदीपिका' सहित सम्पादन; १८९६ । २. वैदिक रीडर; १८९७। ३. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर; १९००। ४. टिप्पणी सहित बृहद्देवता का संपादन १९०४ । ५. वैदिक ग्रामर; १९१० । ६. वैदिक इण्डेक्स ( कीथ के सहयोग से)।
मेघदूत-महाकवि कालिदास विरचित विश्व-विश्रुत गीतिकाव्य या खण्ड. काव्य जिसमें एक विरही यक्ष द्वारा अपनी प्रिया के पास बादल से संदेश प्रेषित किया गया है। वियोगविधुरा कान्ता के पास मेघ द्वारा प्रेम-संदेश भेजना कवि की मौलिक कल्पना का परिचायक है। पुस्तक पूर्व एवं उत्तर मेष के रूप में दो भागों में विभाजित है तथा श्लोकों की संख्या ( ६३ + ५२ ) ११५ है । 'मेघदूत' में गीतिकाव्य एवं खण्डकाव्य दोनों के ही तत्व हैं; अतः विद्वानों ने इसे गीति-प्रधान खण्डकाव्य कहा है। इसमें विरही यक्ष की व्यक्तिगत सुख-दुःख की भावनाओं का प्राधान्य है एवं खण्डकाव्य के लिए अपेक्षित कथावस्तु की क्षीणता दिखाई पड़ती है। इसे 'व्यक्ति