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________________ मृच्छकटिक ! का प्रेम उसके दाम्पत्य-जीवन की उसका स्नेह दिखाई पड़ता है और करता है । ( ४२६ ) [ मृच्छकटिक मधुरता को क्षीण नहीं करता । पुत्र के प्रति भी.. मृत्यु दण्ड पाने पर पुत्र दर्शन की ही अभिलाषा चारुदत्त कलाप्रिय व्यक्ति है। वह रेमिल के संगीत की प्रशंसा करता है तथा सेंध लगाने की कला को देख चोरी की चिन्ता छोड़कर उसकी प्रशंसा करता है। इस प्रकार चारुदत्त दानी, उदार, गम्भीर, धार्मिक, सहृदय, प्रेमी, परोपकारी एवं शरणागतवत्सल व्यक्ति के रूप में उपस्थित होता है । वसन्तसेना - वसन्तसेना 'मृच्छकटिक' प्रकरण की नायिका एवं उज्जयिनी की प्रसिद्ध वेश्या है । वह ऐसी वेश्या युवती के रूप में चित्रित है जो अपने दृढ़ संकल्प एवं चारित्रिक शालीनता के कारण कुलवधू बन जाती है। प्रो० जागीरदार के अनुसार वह 'जीवन के आनन्द' का प्रतीक है। उसका प्रेम अदमनीय एवं उत्तरदायित्व की भावना से युक्त है । 'वह तथ्य ही कि वह गणिका से कुल स्त्री बनने का अथक प्रयास करती रही है और प्राणों को संकट में डाल कर भी वह पद प्राप्त कर लिया है, इस बात का प्रमाण है कि वसन्तसेना केवल मात्र 'जीवन का आनन्द' नहीं है । वह, अपितु, 'आनन्दखोजी जीवन का संयम एवं साहस है ।" वसन्तसेना में जीवनभोग की लालसा है, लेकिन वह वरणीय पात्र की पात्रता की भावना से अनुप्राणित है, मर्यादित है।' महाकवि शूद्रक पृ० २८६ । उसने अपने चरित्र की दृढ़ता, उदारता, त्याग एवं विशुद्ध प्रेम के कारण गणिकात्व के कालुष्य को प्रच्छालित कर भारतीय गृहिणी का पद प्राप्त कर लिया है। उसके पास अपार सम्पत्ति है पर वह दरिद्र चारुदत्त के प्रति आसक्त है । वह धन से प्रेम न कर गुण के प्रति आकृष्ट होती है । उसके अपार वैभव को देख कर विदूषक मैत्रेय आश्चर्यचकित हो जाता है, और उसकी अष्ट अट्टालिकाओं को देखकर कह उठता है कि 'यह गणिका का गृह है या कुबेर का भवन है ।' बैभवशालिनी बसन्तसेना का दरिद्र एवं गुणशाली चारुदत्त के प्रति आकृष्ट होना उसके हृदय के सच्चे अनुराग एवं पवित्रता का बोतक है। वरण करती है वह राज के साले कार के अपूर्व वैभव का त्याग कर पादत का और कहां तक कि बबन माता द्वारा बार के प्रति प्रेम केशरने के अनुरोध विकार करती है बड़ -उसके द्वारा प्रेषित दश सहल के मूल्य के स्वर्णाभूषणों को ग्रहण नहीं करती वह गावा को स्पष्टों में कह देती है कि यदि महति रहने देना बड़ी है अकार का न करे। जोर्णोदान में कार स्वयं प्रलोभन देने बाबा का विकार करती है तथा उसके हाथों मरता श्रेयस्कर समझ कर का प्रणय निवेदन स्वीकार नहीं करती । चारुदत्त के प्रति उसका प्रेम इतना सच्चा है कि एवं के कार द्वारा मला मोटे जाने पर उसी का स्मरण कर 'नमो गज्ज । वह चारुदत्त के प्रति अपने आकर्षण को अपना गौरव मानती है और अपनी माँ से कहती है कि दरिद्र व्यक्ति के प्रति आसक्त गणिका संजीव नहीं मानी जाती । बिट उसके प्रति अपना विचार व्यक्त करते हुए है कि यद्यपि वह arun है किन्तु उसका प्रेमिल व्यवहः र वेश्याओं में दिखाई नहीं पड़ता। उसके हृदय
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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