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________________ मृच्छकटिक ] ( ४२२ ) [ मृच्छकटिक. अंक में वसन्तसेना का चारुदत्त के गृह में आना तथा चारुदत्त का उसकी ओर आकर्षण 'आरम्भावस्था' है। वसन्तसेना का चारुदत्त के गृह में अपने आभूषण रखकर जाने से लेकर पंचम अंक पर्यन्त तक की घटना 'यत्न' है। इस बीच दो प्रयत्न दिखाई पड़ते हैं-वसन्तसेना का आभूषण छोड़कर जाना तथा धूता के आभूषण को वसन्तसेना के पास चारुदत्त द्वारा भिजवाया जाना। छठे अंक से लेकर दसवें अंक तक की घटनाएं 'प्राप्त्याशा' के रूप में उपस्थित होती हैं। इन घटनाओं में फल प्राप्ति की आशा अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में दोलायमान रहती है। बौद्ध भिक्षु के साथ वसन्तसेना का सहसा आगमन 'नियताप्ति' है और वसन्तसेना तथा चारुदत्त का विवाह 'फलागम' । पंचसन्धियों का विधान भी उपयुक्त है। प्रथम अंक के प्रारम्भ से वसन्तसेना के इस कथन में 'चतुरो मधुश्चायमुपन्यासः' (स्वगत कथन ) 'मुखसन्धि' दिखाई पड़ती है। 'प्रतिमुखसन्धि' प्रथम अंक में ही वसन्तसेना के इस कथन से प्रारम्भ होती है - 'आर्यः यद्येवमहमायंस्य अनुग्राह्या' और पंचम अंक के अन्त तक दिखाई पड़ती है। छठे अंक के प्रारम्भ से लेकर दसवें अंक तक, चाण्डाल के हाथ से खड्ग छूट जाने एवं बसन्तसेना के इस कथन में-'आर्याः ! एषा अहं मन्दनागिनी यस्थाः कारणादेप व्यापयते'--'गर्भसन्धि' है। अन्तिम अंक में चाण्डाल की उक्त-स्वरितं का पुनरेषा' एवं कार के कथन में-'आश्चर्यः प्रत्युज्जीवितोऽस्मि' तक 'अवमर्श सन्धि' चलती है। इसी अंक में 'नेपथ्ये कलकल:' से लेकर अन्त तक 'निर्वहण सन्धि' दिखाई पड़ती है। इस प्रकार 'मृच्छकटिक' का वस्तु-विधान अत्यन्त सुन्दर सपा शास्त्रीय स्वरूप का निर्वाह करने वाला है। इसमें कथावस्तु के तीन सूत्र दिखाई पड़ते हैं जो परस्पर गुंफित है-१-वसन्तसेना एवं चारुदत्त का प्रणय-प्रसंग, २..--शविलक तथा मदनिका की प्रेम-कथा, ३-राजनैतिक क्रान्ति । __जिसके अनुसार अत्याचारी राजा पालक का विनाश एवं गोपाल-पुत्र आर्यक का राज्याभिषेक होता है। इनमें बसन्तसेना और चारुदत्त की प्रणय कथा आधिकारिक कथा है और शेष दोनों कथायें प्रासंगिक हैं। इनमें नाटक की आधिकारिक या मुख्य ...कया की मपनी विशिष्टताएं हैं। इसकी पहली विशेषता यह है कि यह प्रेम नायक की . बोर से प्रारम्भ न होकर नायिका की ओर से होता है। बसन्तसेना चारुदत्त के प्रेम को प्राप्त करने के लिए अधिक क्रियाशील एवं सचेष्ट है, जब कि नायक निस्क्रिय दिखाई परता है। इसकी दूसरी विशेषता यह कि मध्य में आकर प्रेम पूर्णता को प्राप्त करता है तथा पुनः इसमें अप्रत्याशित रूप से नया मोड़ पाता है और प्रेम में बाधाएं उपस्थित हो जाती हैं। किन्तु बन्द होते-होते नायिका का प्रेम पूर्ण हो जाता है। बिलक और मदनिकों की प्रणय-कथा मुख्य कथा को गति देने वाली है, क्योंकि शक्लिक हो राजनैतिक क्रान्ति का एक प्रधान मंगहै। कथा को फल की ओर ले जाने में उसका महत्वपूर्ण योग दिखाई पड़ता है। राजनैतिक क्राधि की घटना के सम्बन्ध में कतिपय विद्वानों का मन्तव्य है कि यह स्वतन्त्र कला है. और इसको पुस्तक से निकाल दिया जाय तो आधिकारिक कथा को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचेगी। इसीलिए, संभवतः, भास ने अपने नाटक में इस कथा को स्थान नहीं दिया है । प्रो. राइटर का
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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