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________________ मृच्छकटिक ] ( ४१७) [मृच्छकटिक द्वितीय अंक में वसन्तसेना की अनुरागजन्य विरह-वेदना दिखलाई गयी है। इस अंक में संवाहक नामक व्यक्ति का चित्रण किया गया है जो पहले पाटलिपुत्र का एक संभ्रान्त नागरिक था और समय के फेर से, दरिद्र होने के कारण, उज्जयिनी आकर संवाहक के रूप में चारुदत्त के यहां सेवक हो गया। चारुदत्त के निधन हो जाने से उसे बाध्य होकर हटना पड़ा और वह जुआड़ी बन गया। जूए में दस मुहर हार जाने से उसके चुकाने में असमर्थ होने के कारण वह छिपा फिरता है। उसका पीछा घूतकार और माथुर किया करते हैं। वह मन्दिर में छिप जाता है और वे दोनों एकान्त समक्ष कर वहीं जूमा खेलने लगते हैं। संवाहक भी वहां आकर सम्मिलित होता है, पर द्यूतकार द्वारा पकड़ लिया जाता है। वह भागकर बसन्तसेना के घर में छिप जाता है, और चूतकार तथा माथुर उसका पीछा करते हुए पहुंच जाते हैं। संवाहकको चारुदत्त का पुराना सेवक समझ कर वसन्तसेना उसे अपने यहां स्थान देती है और धूतकार को रुपए के बदले अपना हस्ताभरण भेज देती है, जिसे प्राप्त कर वे सन्तुष्ट होकर चले जाते हैं । संवाहक विरक्त होकर बौद्ध भिक्षु बन जाता है । तत्क्षण वसन्तसेना का चेट एक बिगडैल हाथी से एक भिक्षुक को बचाने के कारण चारुदत्त द्वारा प्रदत्त पुरस्कारस्वरूप एक प्रावारक लेकर प्रवेश करता है। वह चारुदत्त की उदारता की प्रशंसा करता है और वसन्तसेना उसके प्रावारक को लेकर प्रसन्न होती है । तृतीय अंक में शविलक, जो वसन्तसेना की दासी मदनिका का प्रेमी है, उसको दासता से मुक्ति दिलाने के लिए चारुदत्त के घर में सेंध मार कर वसन्तसेना के आभूषण को चुरा कर मदनिका को दे देता है। चारुदत्त जागने पर प्रसन्न एवं चिन्तित दिखाई पड़ता है। चोर के खाली हाथ न लौटने से उसे प्रसन्नता है, पर वसन्तसेना के न्यास को लौटाने की चिन्ता से वह दुःखित है। उसकी पत्नी धूता उसे अपनी रत्नावली लाकर देती है और मैत्रेय उसे लेकर वसन्तसेना को देने के लिए चला जाता है। चतुर्थ अंक में राजा के साले शकार की गाड़ी वसन्तसेना के पास उसे लेने के लिए आती है। बसन्तसेना की मां उसे जाने के लिए कहती है, पर वसन्तसेना नहीं जाती। शविलक वसन्तसेना के घर पर जाकर मदनिका को चोरी का वृत्तान्त सुनाता है। मदनिका वसन्तसेना के आभूषणों को देखकर उन्हें पहचान जाती है, और उन्हें अपनी स्वामिनी को लौटा देने के लिए कहती है। पहले तो शक्लिक उसके प्रस्ताव को अमान्य ठहरा देता है, किन्तु अन्ततः उसे मानने को तैयार हो जाता है। वसन्तसेना छिपकर दोनों प्रेमियों की बातचीत सुनती है और प्रसन्नतापूर्वक मदनिका को मुक्तकर शविलक के हवाले कर देती है। रास्ते में शक्लिक को राजा पालक द्वारा गोपालदारक को कैद किये जाने की घोषणा सुनाई पड़ती है। वह रेमिल के साथ मदनिका को भेज कर गोपालदारक को छुड़ाने के लिए चल देता है । शक्लिक के चले जाने के बाद धूता की रत्नावली लेकर मैत्रेय आता है और कहता है कि चारुदत्त भाषके गहनों को जुए में हार गया है, इसलिए उसने रत्नावली बदले में भिजवाई है। बसन्तसेना मन २७ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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