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________________ मुद्राराक्षस] ( ४१२) [मुद्राराक्षस चाणक्य को नायक स्वीकार करने में आपत्ति के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता।' संस्कृत कवि-दर्शन-डॉ० भोलाशंकर व्यास, पृ० ३७० । अतः चाणक्य ही इसका नायक सिद्ध होता है। विशाखदत्त ने प्राचीन परपाटी की अवहेलना करते हुए भी ऐसे व्यक्ति को नायक बनाया है; जो सर्वशोद्भव न होकर एक ऐसा ब्राह्मण है, जिसमें भारत का सम्राट बनाने की शक्ति है। चाणक्य-'मुद्राराक्षस' का नायक चाणक्य अत्यन्त प्रभावशाली तथा शक्तिशाली है। वह एक सफल मन्त्री तथा महान् कूटनीतिज्ञ भी है। उसकी कूटनीतिज्ञता से चन्द्रगुप्त का साम्राज्य स्थायित्व प्राप्त करता है तथा राक्षस भी उसका वशवर्ती हो जाता है । नाटक की समस्त घटनाएं उसी के इशारे पर चलती हैं। वह इस नाटक के घटना-चक्र का एकमात्र नियन्ता होते हुए भी निष्काम कर्म करता है। वह जो कुछ भी करता है, अपने लिए नहीं, अपितु चन्द्रगुप्त के लिए और मौर्यसाम्राज्य की दृढमूलता एवं सम्पन्नता के लिए । “अर्थशास्त्र और सम्भवतः प्राचीन ऐतिह्य और प्राचीन कथा-परम्परा का चाणक्य भले ही एक महत्वाकांक्षी, महाक्रोधी महानीतिज्ञ ब्राह्मण रहा हो किन्तु मुद्राराक्षस के चाणक्य में एक और विशेषता है और वह है उसकी 'निरीहता, निःस्वार्थमयता और लोकसंग्रह' की महाभावना।" मुद्राराक्षस-भूमिका, चौखम्बा समालोचना पृ० २१। वह निरीह, वीतराग एवं लोकोत्तर राजनीतिज्ञ है। चाणक्य मौर्य-साम्राज्य का मंत्री होते हुए भी भौतिक सुख से दूर है। वह बुद्धि-कोशल की साक्षात् प्रतिमा है तथा किसी भी रहस्य को तत्क्षण समझ जाता है। चन्द्रगुप्त के प्रति उसके कृत्रिम कलह को देखकर, जब वैतालिक चन्द्रगुप्त को उत्तेजित करने के लिए उसकी स्तुति-पाठ करते हैं, तो वह भांप जाता है कि यह राक्षस की चाल है । वह अपने कर्तव्य के प्रति सदा जागरूक रहता हैआम्ज्ञातम् । राक्षसस्यायं प्रयोगः । आः दुरात्मन् ! राक्षसहतक! दृश्यसे जागति खलु कौटिल्यः-अंक ३ । वह विषम स्थिति में भी विचलित नहीं होता और अपनी अपूर्व मेधा के द्वारा शत्रु के सारे षड्यन्त्र को व्यर्थ कर देता है। चन्द्रगुप्त के वर्ष के लिए की गई राक्षस को सारी योजनाएँ निष्कल हो जाती हैं। कवि ने उसके व्यक्तिगत जीवन का जो चित्र अंकित किया है उससे उसकी महानता सिद्धार है। वह असाधारण व्यक्ति है। उपलशकलमेत भेदकं गोमयानां वाहतानां बहिषां स्तोम एषः । शरणमपि समिद्भिः शुष्यमाणाभिराभिविनमितपटलान्तं दृश्यते जीर्णकुख्यम् ॥ ३॥१५ । 'एक ओर तो सूखे कण्डों को तोड़ने के लिए पत्थर का टुकड़ा पड़ा है, दूसरी ओर ब्रह्मचारियों के इकट्ठे किये कुशों की ढेर लगी है, चारों ओर छप्पर पर सुखाई जाने वाली समिधाओं से घर शुका जा रहा है और दीवारें गिरतीपड़ती किसी प्रकार खड़ी हैं।' चाणक्य धैर्यवान् तथा अपने पौरुष पर अदम्य विश्वास रखने वाला है, जिससे सफलता तथा विजयश्री सदा उसके करतलगत रहती हैं। वह भाग्यवादी न होकर पौरुषवादी है-देवमविद्वांसः प्रमाणयन्ति । उसे अपनी बुद्धि पर दृढ़ विश्वास है। वह किसी की परवाह नहीं करता, सारे संकटों पर विजय प्राप्त करने के लिए
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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