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________________ ( ४०६ ) [ मुद्राराक्षस ar की कौन कहे, षड्यन्त्रकारियों का ही नाश हो गया । किस प्रकार शकटदास, चन्दनदास एवं जीवसिद्धि के ऊपर आपत्तियों का पहाड़ लाद दिया है, इसकी चर्चा भी दूत करता है । इसी बीच सिद्धार्थक शकटदास के साथ प्रवेश करता है और शकटदास को सुरक्षित पाकर राक्षस उल्लसित हो जाता है। अपने मित्र को बचाने के लिए वह शकटदास को पारितोषिक प्रदान करता है। ( अपने आभूषण देता है ) । सिद्धार्थक राक्षस की मुद्रा भी देता है। दोनों चले जाते हैं और विराधगुप्त उसे सूचना देता है कि सम्प्रति चाणक्य- चन्द्रगुप्त में विरोध चल रहा है । राक्षस भेद नीति का आश्रय लेते हुए अपने एक वैतालिक को यह शिक्षा देकर नियुक्त करता है। कि जब-जब चन्द्रगुप्त की आज्ञा की चाणक्य अवहेलना करे, तब वह चन्द्रगुप्त की प्रशस्ति का गान कर उसे उत्तेजित करे । मुद्राराक्षस ] ~M तृतीय अङ्क में चाणक्य की कूटनीति का योग्यतम रूपं है । इस अङ्क के प्रारम्भ में कंचुकी के कथन से ज्ञात होता है महोत्सव मनाने की आज्ञा का चाणक्य ने निषेध कर इसका पता चलता है तो वह चाणक्य को बुलाता है है । वह चाणक्य पर धृष्टता एवं कृतघ्नता का आक्षेप कलह का स्वांग रच कर उसके मन्त्री पद को प्रमुख पात्रों के अतिरिक्त सभी किसी को ज्ञात मात्र है । प्रदर्शित किया गया कि राजा के कौमुदी दिया है । चन्द्रगुप्त को जब और उसका तिरस्कार करता करता है और चाणक्य कपट त्याग कर, नहीं होता क्रुद्ध होकर चला जाता है । कि यह चाणक्य की चाल फलवती होती हैं। इस अंक मन में यह विश्वास जमाना चन्द्रगुप्त से नहीं । चाणक्य के कि राक्षस चन्द्रगुप्त के साथ निकट जाते हैं। इसी चतुर्थ अंक में चाणक्य की पूर्वनियोजित योजनाएँ में मलयकेतु का कपटी मित्र भागुरायण मलयकेतु के चाहता है कि राक्षस की शत्रुता चाणक्य के साथ है, चन्द्रगुप्त के साथ से हट जाने पर बहुत सम्भव है, मिल जाय। इसी प्रकार की बातें करते हुए दोनों राक्षस के समय करभक नामक व्यक्ति पाटलिपुत्र से आकर राक्षस को चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त के मतभेद की सूचना देता है, जिससे हर्षित होकर राक्षस कहता है 'सखे शकटदास, हस्ततलगतो में चन्द्रगुप्तो भविष्यति । इसका अभिप्राय भागुरायण मलयकेतु को यह समझौता है कि अब राक्षस का अभीष्ट सिद्ध हो गया है, और वह चन्द्रगुप्त का मन्त्री बन जायगा । मलयकेतु के मन में भी राक्षस के प्रति विरोध का भाव घर कर जाता है । तदनन्तर राक्षस तथा मलयकेतु पाटलिपुत्र पर आक्रमण करने की योजना बनाते हैं और एतदर्थं जीवसिद्धि क्षपणक से राक्षस प्रस्थान का मुहूर्त पूछता है । पचम अक की घटनाएँ ( कथानक के ) चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाती हैं। राक्षस का कपटमित्र, सिद्धार्थक मंच पर प्रवेश करता है। सिद्धार्थक कहता है कि वह - चाणक्य द्वारा शकटदास से लिखाये गये कूटलेस को लेकर पाटलिपुत्र जाने को प्रस्तुत है । क्षपणक उसे भागुरायण से मुद्रा प्राप्त करने की राय देता है, पर वह उसे नहीं मानता। तत्पश्चात् क्षपणक भानुरायण के पास मुद्रा लेने के लिए- जाता है
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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