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________________ मुक्तक काव्य] ( ४०२ ) [ मुक्तक काव्य ईश्वर की सत्ता भी स्वीकार न करना इस दर्शन की अपनी विशेषता है । वैदिक धर्म के अनुशीलन के लिए मीमांसा एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में प्रतिष्ठित है। आधारग्रन्थ-१ इण्डियन फिलॉसफी-डॉ. राधाकृष्णन् । २. भारतीय-दर्शनपं० बलदेव उपाध्याय । ३. भारतीय-दर्शन-चटर्जी एवं दत्त ( हिन्दी अनुवाद )। ४. मीमांसा-दर्शन-पं० मंडन मिश्र । ५. मीमांसासूत्र ( हिन्दी अनुवाद )-श्रीराम शर्मा। ६. भारतीय-दर्शन की रूपरेखा-हिरियन्ना ( हिन्दी अनुवाद )। मुक्तक काव्य-संस्कृत में मुक्तक काव्य के तीन रूप दिखाई पड़ते हैं-शृङ्गारीमुक्तक, नीतिमुक्तक एवं स्तोत्रमुक्तक । [ अन्तिम प्रकार के लिए दे०-स्तोत्रमुक्तक । मुक्तक काव्य में प्रत्येक पद्य स्वतन्त्र रूप से चमत्कार उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं । इसमें पद्यों में पौर्वापर्य सम्बन्ध नहीं होता। संस्कृत में शृङ्गारी मुक्तक या शृङ्गारकाव्य की सशक्त एवं विशाल परम्परा दिखाई पड़ती है। इसका प्रारम्भ पाणिनि एवं पतन्जलि से भी पूर्व हुआ है। सुभाषित संग्रहों में पाणिनि के नाम से जो पद्य उपलब्ध होते हैं उनमें कई शृङ्गारप्रधान हैं। तन्वङ्गीनां स्तनौ दृष्ट्वा शिरः कम्पयते युवा । तयोरन्तरसंलग्नां दृष्टिमुत्पाटयन्निव ।। शृङ्गार मुक्तकों का विधिवत् प्रारम्भ महाकवि कालिदास से ही माना जा सकता है। उनका 'ऋतुसंहार' ही इस श्रेणी के काव्यों में पहली रचना है। 'शृङ्गारतिलक', 'पुष्पबाणतिलक' तथा 'राक्षसकाव्य' तीन अन्य रचनायें भी शृङ्गारी काव्य के अन्तर्गत आती हैं और उनके रचयिता भी कालिदास कहे जाते हैं। पर, वे कालिदास नामधारी कोई अन्य कवि हैं। 'मेघदूत' के रचयिता नहीं। 'घटकपर' नामक कवि ने भी 'शृङ्गारतिलक' की रचना की थी जिसमें २२ पद्य हैं। इसमें यमक की कलाबाजी प्रदर्शित की गयी है, अतः इसका भावपक्ष दब गया है। शृङ्गारी मुक्तक लिखनेवालों में भर्तृहरि का नाम गौरवपूर्ण है। उन्होंने 'शृङ्गारशतक' में स्त्रियों के बाह्य एवं आभ्यन्तर सौन्दर्य एवं भंगिमाओं का अत्यन्त मोहक चित्र खींचा है। 'अमरुकशतक' नामक ग्रन्थ के रचयिता महाकवि अमरुक इस श्रेणी के मूर्धन्य कवि हैं। शृगाररस के विविध पद्यों का अत्यन्त मार्मिक चित्र उपस्थित कर उन्होंने अकृत्रिम एवं प्रभावोत्पादक रंग भरने का प्रयास किया है। ग्यारहवीं शताब्दी में बिल्हण नामक काश्मीरी कवि ने 'चौरपंचाशिका' की रचना की जिसमें उन्होंने अपनी प्रणय-कथा कही है। संस्कृत शृङ्गार मुक्तक काव्य में दो सशक्त व्यक्तित्व गोवर्धनाचार्य एवं जयदेव का है। गोवर्धनाचार्य ने 'आर्यासप्तशती' में ७०० आर्याएं लिखी हैं। जयदेव के 'गीतगोविन्द' में सानुप्रासिक सौन्दर्य, कलितकोमलकान्त पदावली एवं संगीतात्मकता तीनों का सम्मिश्रण है। 'गीतगोविन्द' के अनुकरण पर अनेक काव्यों की रचना हुई जिनमें हरिशंकर एवं प्रभाकर दोनों ही 'गीतराघव' नामक पुस्तके ( एक ह नाम की ) लिखीं। श्रीहाचार्यकृत 'जानकीगीता', हरिनाथकृत 'रामविलास' आदि ग्रन्थ भी प्रसिद्ध हैं । परवर्ती कवियों ने नायिकाओं के नखशिख-वर्णन को अपना विषय बनाया। १८ वीं शताब्दी के विश्वेश्वर मे 'रोमावलीशतक' की रचना की।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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