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________________ मीमांसादर्शन ] ( ३९९) [ मीमांसादर्शन इसकी भाषा सरल है-भ्रातः पतिर्मे शिव एव नान्यः स्वसुस्तवावेक्ष्य मुदा समेत्य । निवर्तनीयः खलु मे विवाहः त्वमेव मां बन्धुमती विधेहि ॥ .. आधारग्रन्थ-चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी। मीमांसादर्शन-महर्षि जैमिनि द्वारा प्रवत्तित भारतीयदर्शन का एक सम्प्रदाय जिसमें वैदिक कर्मकाण्ड की पुष्टि की जाती है। इस सिद्धान्त का मूल ग्रन्थ 'जैमिनीसूत्र' है । जैमिनी का समय वि०पू० ३०० वर्ष है। उन्होंने प्राचीन एवं समसामयिक पाठ आचार्यों का नामोल्लेख किया है, जिससे.पता चलता है कि उनके पूर्व भी मीमांसाशास्त्र का विवेचन होता रहा था। वे आचार्य हैं-आत्रेय, बाश्मरथ्य, कार्णाजिनि, वादरि ऐतिशायन, कामुकायन, लाबुकायन एवं आलेखन । मीमांसा सूत्रों की संख्या २६४४ है। इसमें बारह अध्याय हैं तथा मुख्यतः धर्म के ही विषय में विचार किया गया है। 'जैमिनिसूत्र' पर शबरस्वामी ने विशद भाष्य लिखा है, जो 'शाबरभाष्य' के नाम से प्रसिद्ध है। उनका समय २००ई० है। कालान्तर में मीमांसा के तीन विशिष्ट मत हो गए जो भाट्टमत, गुरुमत तथा मुरारिमत के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके प्रवर्तक हैं-क्रमशः कुमारिल, प्रभाकर तथा मुरारिमिश्र । कुमारिल का समय ६०० ई० है। उन्होंने 'शाबरभाष्य' पर तीन महत्वपूर्ण वृत्तिग्रन्थों की रचना की है, वे हैं-'श्लोक वात्तिक', 'तन्त्रवात्तिक' तथा 'टुप्टीका' । कुमारिल के सुप्रसिद्ध शिष्य हैं-मण्डनमिश्र । उनके ग्रन्थों के नाम हैं-'विधिविवेक', 'भावनाविवेक', 'विभ्रमविवेक', 'मीमांसासूत्रानुक्रमणी'। भाट्ट सम्प्रदाय के अन्य आचार्यों में पार्थसारथि मिश्र, माधवाचार्य तथा खण्डदेव मिश्र के नाम अधिक विख्यात हैं। पार्थसारथि मिश्र ने चार ग्रन्थों की रचना की है-'तरत्न', 'न्यायरत्नमाला', 'न्यायरत्नाकर' तथा 'शास्त्रदीपिका' । माधवाचार्य प्रसिद्ध वेदव्याख्याता हैं धिन्होंने 'न्यायरत्नमाला' नामक अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ लिखा है। खण्डदेव मिश्र नव्यमत के उद्भावक हैं। उन्होंने तीन पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थों की रचना की है-'भाट्टकौस्तुभ', 'भाट्टदीपिका' एवं 'भाट्टरहस्य' । गुरुमत के प्रवर्तक प्रभाकर मिश्र ने 'शाबरभाष्य' के ऊपर दो टोकाएं लिखी हैं-बृहती' 'एवं लध्वी'। इस मत के प्रसिद्ध आचार्य हैं शालिकनाथ जो प्रभाकरभट्ट के पट्ट शिष्य थे। उन्होंने तीन पब्जिकाओं का प्रणयन किया है-'ऋतुविमला', 'दीपशिखा' तथा प्रकरणपन्जिका । इस सम्प्र. दाय के अन्य आचार्यों में भवनाथ या भवदेव ने 'नयविवेक' तथा नन्दीश्वर ने 'प्रभाकरविजय' नामक ग्रन्थों की रचना की। मुरारि मत के उभावक मुरारिमित्र हैं, जिनके सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं है । गंगेश उपाध्याय एवं उनके पुत्र वर्धमान उपाध्याय के गंथों में उनका मत उल्लिखित है। 'मीमांसा' का शाब्दिक अर्थ है "किसी वस्तु के यथार्थ स्वरूप का निर्णय वेद के दो भागों-कर्मकाण्ड एवं शानकाण्ड-के आधार पर इसके दो विभाग किये गए हैं -पूर्वमीमांसा एवं उत्तरमीमांसा। पूर्वमीमांसा में । कर्मकाण की व्याख्या है तो उत्तरमीमांसा में ज्ञानकाण्ड की। प्रमाण-विचार-मीमासा का मुख्य उद्देश्य वेदों का प्रामाण्य सिद्ध करता है।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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