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________________ मालविकाग्निमित्र] [ मालविकाग्निमित्र मालविकाग्निमित्र-यह कालिदास विरचित उनकी प्रथम नाट्यकृति है। इसमें विदर्भ नरेश की पुत्री मालविका तथा महाराज अमिमित्र की प्रणयकथा का वर्णन किया है। नान्दी पाठ में शिव की वन्दना करने के. पश्चात् नाटक का प्रारम्भ होता है । प्रस्तावना में सूत्रधार द्वारा यह कथन कराया गया है कि कोई भी रचना प्राचीन होने से उत्कृष्ट नहीं होती और न हर नई कविता बुरी होती है। सज्जन पुरुष प्रत्येक वस्तु को बुद्धि की तुला पर परीक्षित कर अच्छी वस्तु का प्रयोग करते हैं, पर भूखं तो दूसरे के ही ज्ञान पर आश्रित रहते हैं। पुराणमित्येव न साधु सर्वन चापि काव्यं नवमित्यवद्यम् । सन्तः परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः ।। १।२। इसका प्रारम्भ मिश्र विष्कम्भक से होता है.. जिसमें पूर्वघटित वृत्त के पश्चात् राजा अग्निमित्र को मंच पर प्रवेश कराया जाता है। वे विदूषक के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं । यज्ञसेन द्वारा माधवसेन पर आक्रमण कर देने से भयाक्रान्त होकर माधवसेन की बहिन मालविका विदिशा की ओर भाग कर प्राण बचाती है । मार्ग में बनवासियों द्वारा आक्रमण कर दिये जाने पर अत्यन्त. कठिनता के साथ वह गन्तव्य स्थान पर पहुंचती और वहां रानी धारिणी के आश्रय में रहती है। धारिणी के यहाँ वह परिचारिका बन कर नृत्यकला की शिक्षा ग्रहण करती है । एक दिन अमिमित्र मालविका का चित्र देखता है और उस पर अनुरक्त होकर उसको प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो जाता है । विदूषक द्वारा नृत्य का प्रबन्ध करने पर दोनों एक दूसरे को देखकर उल्लसित हो जाते हैं। दूसरे दिन जब मालविका धारिणी के लिए माला गूंथती है उसी समय अग्निमित्र, उसकी पत्नी इरावती तथा विदूषक साड़ी में छिपकर मालविका के रूप लावण्य को देखते हैं। अग्निमित्र को इरावती की विद्यमानता का भान नहीं होता और वे आगे बढ़ कर मालविका से मिलना चाहते हैं। उसी समय इरावती सामने आकर अपने पति के कार्य को अनुचित बताकर मालविका को कारागृह में डाल देखी है। कुछ क्षण के पश्चात् यह सूचना प्राप्त होती है कि विदूषक को सर्प ने डस दिया है; बतः उसकी चिकित्सा के लिए राजमहिषो की अगूठी में लगे हुए एक पाषाण की भावश्यकता पड़ेगी, क्योंकि उसमें सर्प-मुद्रा चिह्नित थी। विष-प्रकोप को शान्त करने के बहाने उसे लेकर तथा दिखाकर मालविका को कारामुक्त किया जाता है। इस प्रकार पुनः दोनों प्रेमी एक बार मिल जाते हैं। इरावती पुनः मालविका का तिरस्कार करती है। राजकुमारी वसुलक्ष्मी को बन्दरों द्वारा पीड़ित होने की सूचना पाकर राजा उसके सहायतार्थ चले जाते हैं और दोनों का मिलन अधिक देर तक नहीं हो पाता। कुछ देर के पश्चात् यह सूचना प्राप्त हुई कि मालविका के भ्राता माधवसेन के द्वारा यज्ञसेन पराजित हो गया और मालविका के राजकुमारी होने का रहस्य भी प्रकट हो गया। महारानी धारिणी की दो गायिकाएं भी मालविका को माधवसेन की बहिन बतलाती हैं । इसी बीच अग्निमित्र के पिता महाराज पुष्यमित्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न होता है। उनका पौत्र वसुमित्र सिन्धु तटवर्ती यवनों को परास्त कर घर आता है और इस अवसर पर उल्लास मनाया जाता है, तया महाराज अमिमित्र और मालविका प्रणय. सुख अनुभव करते हैं।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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