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________________ मालती माधव] ( ३९५ ) [मालती माधव अथवा वणिक् । सापापधर्मकामार्थपरो धीरप्रशान्तकः ॥ नायिका कुलजा क्वापि, वेश्या क्वापि, द्वयं क्वचित् । तेन भेदास्रतयस्तस्य तत्र भेदस्तृतीयकः ॥ कितवधूतकारादिविटचेटकसंकुलः ॥ साहित्य-दर्पण ३।२२४-२२७ । . इसमें अंकों की संख्या पांच से दस तक होती है तथा कैशिकी वृत्ति प्रयुक्त होती है। इस प्रकरण का कथानक माधव एवं मालती के प्रणय-व्यापार पर आश्रित है। इसमें इसके साथ ही मकरन्द एवं मदयन्तिका का प्रणयाख्यान भी बड़ी कुशलता के साथ उपन्यस्त है। यह मुख्य कथा का उपकथानक कहा जा सकता है । कथा में कवि ने अनेक उत्तेजक एवं अकित तथा भयंकर एवं अतिमानवीय घटनामों का समावेश कर इस प्रकरण को अधिक आकर्षक बनाया गया है । मकरन्द द्वारा मालती का वेश बनाकर नन्दन को प्रताड़ित करने की घटना अत्यन्त आकर्षक एवं हास्यवद्धक भी है, जो भवभूति ऐसे गम्भीर कवि के लिए विरल मानी जा सकती है। आलोचकों ने इसमें कतिपय दोषों का भी अन्वेषण किया है। उदाहरण के लिए; उपकथानक एवं उसके नायक-नायिका को मुख्य कथा एवं उसके नायक-नायिकाओं पर छाये हुए प्रदर्शित किया गया है और माधव इनके समक्ष निस्तेज दिखाई पड़ता है। बुद्धिमती एवं चतुर मदयन्तिका के समक्ष लज्जाशील मालती हल्की दिखाई पड़ती है। मकरन्द के कार्य माधव की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली एवं महनीय हैं। मुख्य कथा का धरातल भी दुबल दिखाई पड़ता है क्योंकि सम्पूर्ण प्रकरण का कार्य-विधान कामन्दकी की नीति द्वारा संचालित होते हुए दिखाया गया है। कवि ने बहुत-सी अतिमानवीय तथा अप्राकृतिक घटनाओं का समावेश कर इसे अविश्वसनीय बना दिया है। कन्याहरण, भूतप्रेतों, श्मशान की घटना तथा कापालिकों की बीभत्स क्रियाओं का बाहुल्य दिखाकर घटनाओं की स्वाभाविकता को नष्ट कर दिया गया है । "लोगों ने यह भी आक्षेप किया है कि मालती का हरण भी कथानक से उद्भूत नहीं है अपितृ ऊपर से लाया गया प्रतीत होता है। पर यह आक्षेप युक्तिगत नहीं प्रतीत होता क्योंकि इसके अभाव में अंक ९ तथा १० के कुछ अंश का भी वैयर्थ्य हो जायेगा और पूरा इतिवृत्त भी पंगु प्रतीत होगा।" महाकवि भवभूति-डॉ० गङ्गासागर राय पृ० ७६ । आठवें अंक के बाद कथानक को आगे बढ़ाकर नाटककार ने अनुपातहीनता प्रदर्शित की है। मूल कथा राजा द्वारा माधव को क्षमा करने के पश्चात ही समाप्त हो जाती है। उसके बाद कपाल. कुण्डला द्वारा मालती-हरण की कथा का. नियोजन अस्वाभाविक विकास का द्योतक है । इस प्रकार कथानक में यद्यपि पर्याप्त मनोरंजन, औत्सुक्य और मौलिकता है किन्तु संयम, अनुपात और स्वाभाविकता का अभाव है। चरित्र-चित्रण के विचार से यह प्रकरण उस्कृष्ट रचना है। पात्रों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर अधिष्ठित किया गया है । तथा पात्रों ने कथावस्तु को अधिक प्रभावित किया है। कामन्दकी की योजनाओं की सफलता इस तथ्य का घोतक है। "एक बोर प्रेम की प्रतिमूर्ति माधव हे तो दूसरी ओर प्रेम के साथ ही शालीनता को समेटे मारुती है। मकरन्द बाद मित्र जो मित्र-कार्यो की सिद्धि में प्राणों के होम के लिए भी वत्सर
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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