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________________ माक्य उपनिषद् ] ( ३९० ) [ माध्यन्दिनि किया है । इसी प्रकार प्रथम सर्ग में नारद का आकाश से अवतरण भी वर्णनकला की चारुता का परिचायक है । आधारग्रन्थ – १. संस्कृत साहित्य का इतिहास - कीथ ( हिन्दी अनुवाद ) । २. संस्कृत साहित्य का इतिहास - आ० बलदेव उपाध्याय । ३. संस्कृत सुकवि समीक्षा - आ० बलदेव उपाध्याय । ४. संस्कृत कवि दर्शन - डॉ० भोलाशंकर व्यास । ५. संस्कृत के महाकवि और काव्य- डॉ० रामजी उपाध्याय । ६. संस्कृत काव्यकरण- डॉ० हरिदत्त शास्त्री । ७. महाकवि माघ - डॉ० मनमोहनलाल जगन्नाथ शर्मा । ८. संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास – गैरोला । ९. शिशुपालवध - संस्कृत हिन्दी टीका, चौखम्बा प्रकाशन । माण्डूक्य उपनिषद् - यह अल्पाकार उपनिषद् है जिसमें कुल १२ खण्ड या वाक्य हैं । इसका सम्पूर्ण अंश गद्यात्मक है, जिन्हें मन्त्र भी कहा जाता है । इस उपनिषद् में ऊँकार की मार्मिक व्याख्या की गयी है। ओंकार में तीन मात्रायें हैं, तथा चतुर्थ अंश 'अ' मात्र होता है। इसके अनुरूप हो चैतन्य की चार अवस्थायें हैंजागरित, स्वप्न, सुषुप्ति एवं अव्यवहार्यं दशा । इन्हीं का आधिपत्य धारण कर आत्मा भी चार प्रकार का है - वैश्वानर, तैजस, प्राज्ञ तथा प्रपंचोपशमरूपी शिव । इसमें भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों से अतीत सभी भाव ऊँकार स्वरूप बताये गए हैं। इसका सम्बन्ध 'अथर्ववेद' से है। इसमें यह बतलाया गया है कि 'के' ही बात्मा या परमात्मा है - 'ओंकार आत्मैव' १२ । इस पर शंकराचार्य के दादागुरु गौडपादाचार्य ने 'माण्डूक्यकारिका' नामक भाष्य लिखा है । मातृवेष्ट - ये महायानी बौद्धकवि हैं। इनके जीवन के सम्बन्ध में किसी प्रकार की जानकारी प्राप्त नहीं होती। ये महाराजा कनिष्क के समकालीन थे, और इन्होंने बौद्धधर्म के मान्य सिद्धान्तों का विवरण उनके दरबार में भेजा था। का यह विवरण इस समय 'कनिकलेख' के नाम से तिब्बती भाषा में इसमें कवि ने मुख्यतः बुद्ध के आदेशानुसार जीवन' व्यतीत करने की शिक्षा दी है। इनके अन्य दो ग्रन्थ हैं— 'चार सौ पद्यों का स्तुतिकाव्य' तथा 'अध्यर्धशतक' । प्रथम ग्रन्थका अनुवाद तिब्बती भाषा में सुरक्षित है; जिसका संस्कृत नाम है - 'वर्णाहं वर्ण स्तोत्र' ( पूजनीय की स्तुति ) इसमें तथागत की स्तुति बारह परिच्छेदों में की गयी है । सम्पूर्ण ग्रन्थ अनुष्टुप् छन्द में रचित है। द्वितीय ग्रन्थ 'अध्यर्धशतक' में १५० अनुष्टुप् छन्दों में बुद्धदेव की प्रार्थना की गयी है । कवि ने इसे १३ विभागों में विभक्त किया है। इनके काव्य की भाषा सरल, सरस एवं अकृत्रिम है तथा शैली प्रभावोत्पादक एवं हृदयग्राही । अव्यापारितसाधुस्त्वं त्वमकारणवत्सलः । असंस्तुतसखश्च स्वं त्वमसम्बन्ध-बान्धवः ॥ ११ ॥ इस श्लोक में तथागत की अपूर्वता प्रदर्शित की गयी है । इनके ८५ पद्यों प्राप्त होता है । माध्यन्दिनि — ये संस्कृत के प्राकृपाणिनि वैयाकरण हैं जिनका समय ( पं० युधिष्ठिर मीमांसक, के अनुसार ) ३००० वि० पू० है । 'काशिका' की उधृत एक कारिका से ज्ञात होता है कि माध्यन्दिनि ने एक व्याकरणशास्त्र का प्रवर्तन किया था। ( काशिका, ९|१|१४ ) इनके पिता का नाम मध्यन्दिन था - मध्यन्दिनस्यापत्यं
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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