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________________ ( ३८५) [माष मंखक-ये काश्मीरी कवि थे। इन्होंने 'श्रीकण्ठचरित' नामक महाकाव्य की रचना की है जिसमें २५ सर्ग हैं। ये 'अलंकारसर्वस्व' के रचयिता रुय्यक के शिष्य तथा काश्मीर नरेश जयसिंह (समय ११२९-५० ई.) के सभा-पण्डित थे। 'श्रीकण्ठचरित' में भगवान् शंकर एवं त्रिपुरासुर के युद्ध का वर्णन है। इसमें कथानक अल्प है पर महाकाव्य के नियमों का निर्वाह करने के लिए सात मगों में दोला, पुष्पावचय, जलक्रीडा, सध्या, चन्द्रोदय, प्रसाधन, पानकेलि, क्रीडा एवं प्रभात का सविस्तर वर्णन है। इस महाकाव्य के २५ वें सर्ग में तत्कालीन काश्मीरक कवियों का वर्णन है। इन्होंने 'मङ्खकोश' नामक एक कोश-ग्रन्थ भी लिखा था जो अप्रकाशित है। इसमें काश्मीरी कवियों द्वारा व्यवहृत शब्दों का चयन है। 'श्रीकण्ठचरित' का प्रकाशन काव्यमाला से १८६७६० में हो चुका है। इस महाकाव्य के कतिपय स्थलों पर मालोचनात्मक उक्तियां भी प्रस्तुत की गयी हैं जिनमें मंखक की कवि एवं काव्य सम्बन्धी मान्यताएं निहित हैं। सूक्ती शुचावेव परे कवीनां सद्यः प्रमादस्खलितं लभन्ते । अधौतवस्त्रे चतुरं कथं वा विभाध्यते कज्जलबिन्दुपातः ॥ २९ । यहां बताया गया है कि रमणीय कथन में दोष की उसी प्रकार प्रतीति हो जाती है जिस प्रकार धुले हुए वस्त्र में धब्बे का ज्ञान हो जाता है। आधारग्रंथ-१. संस्कृत साहित्य का इतिहास-कीथ (हिन्दी अनुवाद)। २. संस्कृत साहित्य का इतिहास-पं० बलदेव उपाध्याय । माघ-इन्होंने 'शिशुपालवध' नामक युगप्रवत्तंक महाकाव्य की रचना की है। अपनी विशिष्ट शैली के कारण "शिशुपालवध' संस्कृत महाकाव्य की 'बृहत्त्रयी' में द्वितीय मान्य स्थान का अधिकारी रहा है। इनकी विद्वत्ता, महनीयता, प्रौढ़ता एवं उदात्त काव्यशैली के सम्बन्ध में संस्कृत ग्रन्थों में अनेक प्रकार की प्रशस्तियां प्राप्त होती हैं-१. नैतच्चित्रमहं मन्ये माघमासाद्य यन्मुहुः । प्रौढतातिप्रसियापि भारवेरवसीदति ॥ हरिहर (सुभाषितावली ९४ )। २. उपमा कालिदासस्य भारवेरयंगौरवम् । दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः ॥ अज्ञात । ३. विरक्तश्चद् दुरक्तिभ्यो निवृति वाऽथ वाग्छसि । व्यस्थ कथ्यते तथ्यं माघसेवा कुरुष्व तत् ।। सोमेश्वर कीर्तिकीमुदी १११३ । ४. कृत्स्नप्रबोधकृत वाणी भारवेरिव भारवेः । माधेनेव च मान कम्पः कस्य न जायते ॥ राजशेखर । ५. माधेन विनितीत्साहा न सहन्ते पदक्रमम् । स्मरन्तो भारवे. रेव कवयः कपयो यथा ॥ धनपाल तिलकमंजरी २८ । ६. नवसगंगति माघे नवशब्दो न विद्यते । माघ के जीवनचरित के सम्बन्ध में प्राचीन सामग्री प्राप्त नहीं होती । स्वयं कवि ने 'शिशुपालवध' के अन्त में अपने वंश का वर्णन पांच श्लोकों में किया है जिसके अनुसार इनके पितामह का नाम सुप्रभादेव था, और वे श्री वर्मल नामक किसी राजा के प्रधान मन्त्री थे। सुप्रभदेव के पुत्र का नाम दत्तक था; जो अत्यन्त गुणवान थे, और इन्हीं दत्तक के पुत्र माष हुए जिन्होंने 'शिशुपालवध' नामक महाकाव्य की रचना की । सर्वाधिकारी सुकृताधिकारः श्रीवमलास्यस्य बभूव राशः। असक्तष्टिविरवाः सदेव देवोपरः २५ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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