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________________ महिमभट्ट] [महिभभट्ट रचना की है-'ज्योतिषपटल' एवं 'गणितसारसंग्रह'। ये जैनधर्मी राजा अमोघवर्ष ( राष्ट्रकूट वंश ) के आश्रित थे। इनका 'ज्योतिषपटल' नामक ग्रन्थ अधूरा ही प्राप्त हुवा है जिसमें ग्रह, नक्षत्र तथा ताराओं के स्थान, गति, स्थिति एवं संस्था का विवेचन है । 'गणितसारसंग्रह' नौ प्रकरणों में विभक्त है जिसके प्रत्येक प्रकरण के नाम इस प्रकार हैं-संशाधिकार, परिकर्मव्यवहार, कलासवर्ण व्यवहार, प्रकीर्ण व्यवहार, पैराशिक व्यवहार, मिश्रक व्यवहार, क्षेत्रगणित व्यवहार, खातव्यवहार एवं छायाव्यवहार । इस अन्य के प्रारम्भ में गणित की प्रशंसा की गयी है। कामतन्त्रे अर्थशास्त्रेच गान्धर्व नाटकेऽपि वा। सूपशास्त्रे तथा वैद्ये वास्तुविद्यादिवस्तुषु । छन्दोलखारकाग्येषु तव्याकरणादिषु । कलागुणेषु सर्वेषु प्रस्तुतं गणितं परम् ॥ सूर्यादिग्रहचारेषु ग्रहणे ग्रहसंयुती । त्रिप्रश्ने चन्द्रवृत्ती च सर्वत्राङ्गीकृतं हि तत् ।। (भारतीय ज्योतिष पृ० १२८ से उपधृत)। ____ आधारग्रंथ-१. भारतीय ज्योतिष-डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री। २. भारतीय ज्योतिष का इतिहास-डॉ० गोरसप्रसाद । महिमभट्ट-काव्यशास्त्र के महान् आचार्य । इन्होंने 'व्यक्तिविवेक' नामक युगप्रवत्तक ग्रंथ की रचना की है जिसमें व्यंजना या ध्वनि का खनन कर उसके सभी भेदों का अन्तर्भाव अनुमान में किया गया है [दे० व्यक्तिविवेक]। महिमभट्ट की उपाधि राजानक थी और ये काश्मीर-निवासी थे। इनका समय ग्यारहवीं शताब्दी का मध्य है । इनके पिता का नाम 'श्रीधैर्य एवं गुरु का नाम 'श्यामल' था। महिमभट्ट ने अपने अन्य में कुन्तक का उल्लेख किया है और अलंकारसर्वस्वकार स्य्यक ने 'व्यक्तिविवेक' की व्याख्या लिसी है। इससे इनका समय ग्यारहवीं शताब्दी का मध्य ही निश्चित होता है। महिमभट्ट नैयायिक हैं। इन्होंने न्याय की पद्धति से ध्वनि का बन कर उसके सभी भेदों को अनुमान में गतार्य किया है और ध्वनिकार द्वारा प्रस्तुत किये गए उदाहरणों में अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ दोषान्वेषण कर उन्हें अनुमान का उदाहरण सिद्ध किया है। महिम ने 'ध्वन्यालोक' में प्रस्तुत किये गए ध्वनि के लक्षण में दस दोष हूंढ़ निकाले हैं जिसमें इनका प्रोड़ पाण्डित्य झलकता है। ध्वनि के चालीस उदाहरणों को अनुमान का प्रकार मान कर महिम ने ध्वनिकार की धज्जियां उडा दी हैं। इनके समान ध्वनिसिद्धान्त का विरोषी कोई नहीं हुआ । यदि मम्मट ने काव्यप्रकाश में महिमभट्ट के विचारों का खण्डन कर ध्वनिसिद्धान्त एवं व्यंजना की स्थापना नहीं की होती तो ध्वनिसिद्धान्त पर बहुत बड़ा धक्का लगता। महिम का प्रोट पाण्डिय एवं सूक्ष्मविवेचन संस्कृत काव्यशास्त्र में अद्वितीय है। इन्होंने तीन शक्तियों के स्थान पर एक मात्र 'अभिधा' को ही शक्ति माना है और बताया है कि एकाधिक शक्तियों का रहना संभव नहीं है। इनके अनुसार शब्द की एकमात्र शक्ति अभिधा है और अर्थ की शक्ति है लिंगता या अनुमिति । - इस प्रकार ( इनके अनुसार) मयं दो ही प्रकार का होता है-वाच्य और अनुमिति । महिम ने शंकुक की भांति रस को भी अनुमेय माना है। अनुमेया के वस्तु, अलंकार एवं रसादि रूप तीन भेद होते हैं। बस्तु एवं अलंकार तो वाच्य भी
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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