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________________ म. म. पं. मथुरा प्रसाद दीक्षित ] ( ३७५ ) [मार्कण्डेयपुराण वणित होने के कारण नाटकीय कम एवं वर्णनात्मक अधिक है जो नाटक की अपेक्षा काव्य के अधिक निकट है । नाटककार का उद्देश्य रङ्गमंच पर युद्ध को नहीं दिखाना ही रहा है । किन्तु इसमें वह कृतकार्य नहीं हो सका है। भवभूति के संवाद अत्यन्त परिष्कृत एवं विभिन्न भावों को अभिव्यक्त करने में पर्याप्त समर्थ हैं। इनमें नाटकीय संविधान के साथ-ही-साथ काव्य-कौशल भी प्रदर्शित किया गया है। कहीं-कहीं संवाद मावश्यकता से अधिक लम्बे भी हैं। कवि ने वीर एवं अद्भुत रसों की योजना अत्यन्त मार्मिकता से की है। इनके अतिरिक्त करुण एवं शृङ्गार रस की भी व्यंजना हुई है। पात्रों के चरित्र-चित्रण की दृष्टि से भी नाटक उत्तम है। कवि ने अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ मानव-जीवन का चित्रण किया है। सप्तम अंक में पुष्पक विमानारूढ़ राम द्वारा विभिन्न प्रदेशों का वर्णन प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से मनोरम है। महामहोपाध्याय पं० मथुरा प्रसाद दीक्षित-आप संस्कृत के आधुनिक विद्वानों में प्रसिद्ध हैं। आप का जन्म १८७८ ई० में हरदोई जिले के भावनगर में हुआ है। संस्कृत में रचित ग्रन्थों की संख्या २४ है जिनमें ६ नाटक हैं। ग्रन्थों के नाम-'कुण्डगोलकनिर्णय', 'अभिधानराजेन्द्रकोष', 'पाली-प्राकृतव्याकरण', प्राकृतप्रदीप', 'मातृदर्शन', 'पाणिनीय सिद्धान्तकौमुदी', 'कवितारहस्य', केलिकुतूहल' तथा 'रोगीमृत्युदर्पण'। नाटकों के नाम हैं-'वीरप्रताप', 'शंकरविजय', 'पृथ्वीराज', 'भक्तसुदर्शन', 'गान्धीविजयनाटकम्' तथा 'भारतविजयनाटकम्' । अन्तिम ग्रन्थ बीसवीं शताब्दी का श्रेष्ठ नाटक माना जाता है। मार्कण्डेयपुराण-पौराणिक क्रम से ७ वा पुराण । मार्कण्डेय ऋषि के नाम से अभिहित होने के कारण इसे 'मार्कण्डेयपुराण' कहा जाता है। "शिवपुराण' में कहा गया है कि जिस पुराण में महामुनि मार्कणेय ने वक्ता होकर कथा की थी, और जो पौराणिक क्रम से सातवां पुराण है, उसे 'मार्कण्डेयपुराण' कहते हैं। इस पुराण में १ सहस्र श्लोक एवं १३८ अध्याय हैं। 'नारदपुराण' की विषय-सूची के अनुसार इसके ३१ वें अध्याय के बाद इक्ष्वाकुचरित, तुलसीचरित, रामकथा, कुशवंश, सोमवंश, पुरुरवा, नहुष तथा ययाति का वृत्तान्त, श्रीकृष्ण की लीलाएं, द्वारिकाचरित, सारख्या कथा, प्रपन्चसत्त्व तथा मार्कण्डेय का चरित पणित है। इस पुराण में अमि, सूर्य तथा प्रसिद्ध वैदिक देवताओं की अनेक स्थानों में स्तुति की गयी है, और उनके सम्बन्ध में अनेक आख्यान प्रस्तुत किए गये हैं। इसके कतिपय अंशों का 'महाभारत' के साथ अत्यन्त निकट का सम्बन्ध है। इसका प्रारम्भ 'महाभारत' के कया-विषयक चार प्रश्नों से ही होता है, जिनका उत्तर महाभारत में भी नहीं है । प्रथम प्रश्न द्रोपदी के पन्चपतित्व से सम्बद्ध है एवं अन्तिम प्रश्न में उसके पुत्रों का युवावस्था में मर जाने का कारण पूछा गया है। इन प्रश्नों का उत्तर मार्कण्डेय ने स्वयं न देकर चार पक्षियों द्वारा दिलवाया है। इस पुराण में अनेक आख्यानों के अतिरिक्त गृहस्थधर्म, श्राद, दैनिकचर्या, नित्यक्रम, व्रत एवं उत्सव के सम्बन्ध में भी विचार प्रकट किये गए हैं, तथा आठ अध्यायों में ( ३६-४३) योग का विस्तारपूर्वक वर्णन है।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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