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________________ महाभाष्य] ( ३७२ ) [महावीर-चरित हो। लोक में ध्वनि करने वाला बालक शब्दकारी कहा जाता है, अतः ध्वनि ही ___ यह ध्वनि स्फोट का दर्शक होती है । शब्द नित्य है और उस नित्य शब्द का ही मर्थ होता है । नित्य शब्द को ही स्फोट कहते हैं। स्फोट की न तो उत्पत्ति होती है और न नाश होता है। बोलते समय ध्वनि द्वारा वह नित्य स्फोटरूपी शब्द ही प्रकाशित होता है। महाभाष्यकार ने स्फोट तथा ध्वनि का दो स्वरूप माना और शब्दार्थ सम्बन्ध को नित्य स्वीकार किया। शब्द के दो भेद हैं -नित्य और कार्य । स्फोटस्वरूप शब्द नित्य होता है तथा ध्वनिस्वरूप शब्द कार्य। स्फोटवणं नित्य होते हैं, वे उत्पन्न नहीं होते। उनकी अभिव्यक्ति व्यंजक ध्वनि के ही द्वारा होती है। ___ आधारग्रन्थ-१. महाभाष्य-प्रदीपोद्योत-सम्पादक म० म० पं० गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी। २. महाभाष्य (हिन्दी अनुवाद ) दो खण्डों में-अनु०५० चारुदस शास्त्री। ३. महाभाष्य ( हिन्दी अनुवाद)-चौखम्बा प्रकाशन । ४. कत्यायन एण्ड पतन्जलि-कोलहान । ५. लेक्चर्स ऑन पतन्जलिज महाभाष्य-श्री पी० एस० पी० शास्त्री। ६. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १-५० युधिष्ठिर मीमांसक । ७. पतन्जलिकालीन भारत-डॉ० प्रभुदयाल अग्निहोत्री । ८. द फिलासफी ऑफ संस्कृत ग्रामर-श्री चक्रवर्ती। महाभाष्य के टीकाकार-'महाभाष्य' की अनेक टीकायें हुई हैं जिनमें कुछ तो नष्ट हो चुकी हैं, और जो शेष हैं, उनका भी विवरण प्राप्त नहीं होता। अनेक टीकाएँ हस्तलेख के रूप में वर्तमान हैं। प्रसिद्ध टीकाकारों का विवरण इस प्रकार है-१. भर्तृहरि-इनकी टीका उपलब्ध टीकाओं में सर्वाधिक प्राचीन है। इसका नाम है 'महाभाष्यदीपिका' [दे० भर्तृहरि ] । २. कैयट-'महाभाष्यप्रदीप' [दै० कयट ] 1३. ज्येष्ठकलक, मैत्रेयरक्षित-इनकी टोकाएँ अनुपलब्ध हैं। ५. पुरुषोतमदेव-बंगाल निवासी, टीका का नाम 'प्राणपणा', समय स० १२०० । ६. शेषनारायण-'सूक्तिरत्नाकर' नामक टीका, समय सं० १५०० से १५५० । ७. नीलकण्ठ वाजपेयी-भाषातत्वविवेक' समयसं० १५७५-१६२५ । ८. शेषविष्णु-'महाभाष्यप्रकाशिका', समय सं० १६००१६५० । ९. शिवरामेन्द्र सरस्वती-'महाभाष्यरत्नाकर' समय सं० १६०० के पश्चात् । १०. प्रयागवेमुटादि-विद्वन्मुखभूषण' । ११. तिरुमल्लयज्वा-'अनुपदा' समय सं० १६५० के आसपास । १२. नारायण (महाभाष्य विवरण) दे० संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १-पं० युधिष्ठिर मीमांसक । ___ महावीर-चरित-यह महाकवि भवभूति विरचित नाटक है जिसमें सात अंक हैं [दे. भवभूति] । इसमें रामायण के पूर्वाद्ध की कथा वर्णित है। अर्थात् कवि ने रामविवाह से लेकर रामराज्याभिषेक तक की कथा का वर्णन किया है। रामचन्द्र को साबान्त एक वीर पुरुष के रूप में प्रदर्शित करने के कारण इसकी अभिधा 'महावीरचरित' है। कवि का मुख्य उद्देश्य रामचन्द्र के चरित का वीरत्वप्रधान अंश चित्रित करना रहा है। 'महावीरस्य रामस्य चरितं यत्र अथवा महावीरस्य चरितं महावीरचरितम् तदपिकृत्य कृतं नाटकम् महावीरचरितम् ।' इसमें कवि ने मुख्य घटनाबों की
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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