SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाभारत ] ( ३६५ ) [ महाभारत विद्वानों की है । अत्यन्त प्राचीनकाल से इस देश में ऐसे आख्यान प्रचलित थे जिनमें कौरवों तथा पाण्डवों की वीरता का उल्लेख था । वैदिक ग्रन्थों में भी यत्रतत्र 'महाभारत' के पात्रों की कहानियाँ प्राप्त होती हैं तथा 'अथर्ववेद' में परीक्षित का आख्यान दिया हुआ है । वेदव्यास ने उन्हीं गाथाओं एवं आख्यानों को एकत्र कर काव्य का रूप दिया है जिसे हम 'महाभारत' कहते हैं। इसके विकास के तीन क्रमिक सोपान हैं—जय, भारत तथा महाभारत । 'महाभारत' के मङ्गलश्लोक में नारायण, नर एवं सरस्वती देवी की वन्दना करते हुए 'जय' नामक काव्य के पठन का विधान है । 'विद्वानों का कथन है कि यह जय काव्य ही 'महाभारत' का मूलरूप है । नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् | देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत् || 'महाभारत' में ही लिखा गया है कि यह 'जय' नामक इतिहास है— जयनामेतिहासोऽयम् | इसकी दूसरी स्थिति भारत नाम की है जिसमें केवल युद्ध का वर्णन था और उपाख्यानों का समावेश नहीं किया गया था । उस समय इसमें चौबीस हजार श्लोक थे तथा यही ग्रन्थ वैशम्पायन द्वारा राजा जनमेजय को सुनाया गया था । चतुर्विंशतिसाहस्रीं चक्रे भारतसंहिताम् । उपाख्यानैविना तावत् भारतं प्रोच्यते बुधैः ॥ 'महाभारत' नाम तृतीय अवस्था का द्योतक है जब कि 'भारत' में उपाख्यानों का समावेश हुआ । विक्रम से पांच सौ वर्ष पूर्व विरचित 'आश्वलायनगृह्यसूत्र' में भारत के साथ ही 'महाभारत' नाम का भी निर्देश है । इसके उपाख्यान कुछ तो ऐतिहासिक हैं तथा कुछ का सम्बन्ध प्राचीन राजाओं एवं ऋषि महर्षियों से है । 'हरिवंश' को लेकर 'महाभारत' के श्लोकों की संख्या एक लाख हो जाती है । इस समय 'महाभारत' के दो संस्करण प्राप्त होते हैं—उत्तरीय तथा दाक्षिणात्य । तीन रूप । इसके हैं । बम्बई वाले उत्तर भारत के संस्करण के पांच रूप हैं तथा दक्षिण भारत के दो संस्करण क्रमशः बम्बई एवं एशियाटिक सोसाइटी से प्रकाशित संस्करण में एक लाख तीन हजार पांच सौ पचास श्लोक हैं तथा कलकते वाले की श्लोक संख्या एक लाख सात हजार चार सौ अस्सी है। उत्तर भारत में गीता प्रेस, गोरखपुर का हिन्दी अनुवाद सहित संस्करण अधिक लोकप्रिय है । भण्डारकर रिसचं इन्स्टीट्यूट, पूना से प्रकाशित संस्करण अधिक वैज्ञानिक माना जाता है । 'महाभारत' का रचना काल अभी तक असंदिग्ध है । ४४५ ई० के एक शिलालेख में 'महाभारत' का नाम आया है- शतसाहस्रयां संहितायां वेदव्यासेनोक्तम् । इससे ज्ञात होता है कि इसके २०० वर्ष पूर्व अवस्य ही 'महाभारत' का अस्तित्व रहा होगा । कनिष्क के सभापण्डित अश्वघोष द्वारा 'बज्रसूची उपनिषद्' में 'हरिवंश' तथा 'महाभारत' के श्लोक उद्धृत हैं इससे ज्ञात होता है कि लक्षश्लोकात्मक 'महाभारत' कनिष्क के समय तक प्रचलित हो गया था। इन आधारों पर विद्वानों ने महाभारत को ई० पू० ६०० वर्ष से भी प्राचीन माना है । बुद्ध के पूर्व अवश्य ही 'महाभारत' का निर्माण हो चुका था। पर इसके रचनाकाल के सम्बन्ध में अभी तक कोई निश्चित विचार नहीं आ सका है । कतिपय आधुनिक विद्वान् बुद्ध का समय १९००
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy