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________________ मयूरसन्देश] ( ३६३ ) [महिसेन अनुसार दोषरहित, सगुण शब्दार्थ ही काव्य है। मम्मट ने दस गुणों के स्थान पर तीन गुणों-माधुर्य, ओज एवं प्रसाद की स्थापना की और अनेक अनावश्यक मलखारों को अमान्य ठहराकर छह शब्दालंकार, ६० अर्यालङ्कार एवं सङ्कर-संसृष्टि (मिश्रालंकार ) की महत्ता स्वीकार की। आधारग्रन्थ-१-संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास-पा० वा. काणे । २-काव्य. प्रकाश ( हिन्दी भाष्य )-आ० विश्वेश्वर । मयूरसन्देश-इस सन्देश-काव्य के रचयिता का नाम उदय कवि है। इनका समय विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी है। इनके सम्बन्ध में अन्य विवरण कुछ भी प्राप्त नहीं होता। इन्होंने ध्वन्यालोक लोचन के ऊपर 'कौमुदी' नामक एक टीका भी लिखी थी जो प्रथम उद्योत पर ही प्राप्त होती है। इसके अन्त में निम्नांकित श्लोक प्राप्त होता है-इत्थं मोहतमोनिमीलित दृशां ध्वन्यर्थमार्गे यता व्याख्याभासमहोष्मल. ज्वरजुषां प्रेक्षावर्ता प्रीतये । उत्तुजादुदयक्षमाभूत उदेयुष्याममुष्यामयं कौमुद्यामि. ह लोचनस्य विवृतावुद्योत आद्यो गतः ॥ इस श्लोक से पता चलता है कि उदय नामक राजा (भमाभृत् ) ही इस पुस्तक का लेखक होगा। 'मयूरसन्देश' रचना मेघदूत के अनुकरण पर हुई है। यह काव्य भी पूर्व एवं उत्तर भागों में विभाजित है और दोनों में क्रमशः १०७ एवं ९२ श्लोक हैं। इसका प्रथम श्लोक मालिनी छन्द में है सिमें गणेश जी की वन्दना की गई है और शेष सभी श्लोक मन्दाक्रान्ता वृत्त में लिखे गये हैं। इसमें विद्याधरों द्वारा हरे गए किसी राजा ने अपनी प्रेयसी के पास मयूर से सन्देश दिया है। एक बार जब मालावार नरेश के परिवार का कोई व्यक्ति अपनी रानी भारचेमन्तिका के साथ विहार कर रहा था विद्याधरों ने उसे शिव समझ लिया। इसपर राजा उनके भ्रम पर हंस पड़ा। विद्याधरों ने उसे एक माह के लिये अपनी पत्नी से दूर रहने का शाप दे दिया और राजा की प्रार्थना पर उसे स्यानन्दूर (त्रिवेन्द्रम ) में रहने की अनुमति प्राप्त हुई। वर्षाऋतु के आने पर राजा ने एक मोर को देखा और उसके द्वारा अपनी पत्नी के पास सन्देश भेजा। इसकी भाषा कवित्वपूर्ण तथा शैली प्रभावमयी है। कवि ने केरल की राजनैतिक एवं भौगोलिक स्थिति पर पूर्ण प्रकाश गला है । विरही राजकुमार का अपनी प्रेयसी के अङ्गों के उपमानों को देखकर जीवन व्यतीत करने का वर्णन देखिये-अम्भोदाम्भोम्हशशिसुधा शैलशैवालवती व्योमश्रीमत्पुलिनकदलीकाण्डबालप्रवालैः। स्वगात्र. श्रीग्रहणसुभगंभावुकैश्चित्तरम्यस्तैस्तर्भावः कथमपि कुरङ्गाक्षि कालं क्षिपामि ॥ आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देश काव्य-डॉ. रामकुमार आचार्य। मल्लिसेन-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य। इनका आविर्भावकाल १०४३ ई० हैं। इनके पिता जैनधर्मावलम्बी थे जिनका नाम जिनसेनदूरि था। ये दक्षिण भारत के धारवाड़ जिले में स्थित तगद तालुका नामक प्राम के निवासी थे। प्राकृत तथा संस्कृत दोनों ही भाषाओं के ये प्रकाण्ड पण्डित थे। इन्होंने 'आयसद्भाव' नामक ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्य की रचना १९५ आर्या छन्दों में
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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