SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भर्तृहरि] (३३२) [भाट ससंभमेनतपातितानला निमीलिताक्षीवभियामरावती ॥ दे० संस्कृत सुकवि-समीक्षापं. बलदेव उपाध्याय । भर्तृहरि-शतकत्रय-शृङ्गारशतक', 'नीतिशतक' एवं 'वैराग्यशतक' के रचयिता। महाकवि भर्तृहरि का जीवन और आविर्भावकाल अभी तक अज्ञात है । दन्तकथाएं उन्हें राजा एवं विक्रमादित्य का ज्येष्ठ भ्राता मानती हैं । पर कतिपय विद्वानों का मत है कि उनके ग्रन्थों में राजसी भाव का पुट नहीं; अतः उन्हें राजा नहीं माना जा सकता। अधिकांश विद्वानों ने इत्सिग (चीनी यात्री) के कथन में आस्था रखते हुए उन्हें महावैयाकरण भर्तृहरि से ( वाक्यपदीय के रचयिता) अभिन्न माना है। पर भारतीय विद्वान उन्हें वैयाकरण भर्तृहरि से अभिन्न नहीं मानते । इनका समय सप्तम शताब्दी है। इनके ग्रन्यों से मात होता है कि इन्हें ऐसी प्रियतमा से निराशा हुई थी जिसे ये बहुत प्यार करते थे। 'नीतिशतक' के प्रारम्भिक श्लोक में भी निराश प्रेम की झलक मिलती है। यां चिन्तयामि सतवं मयि सा विरक्ता साऽप्यन्नमिच्छतिजनो सजनोऽग्यसक्तः । अस्मत् कृते च परितुष्यति काचिदन्या धिक् तां च तं च मदनं च इवां च मां च ॥ किंवदन्ती के अनुसार प्रेम में धोखा खाने पर इन्होंने वैराग्य ग्रहण कर लिया था। इनके तीनों ही शतक संस्कृत कविता का उत्कृष्टतम रूप उपस्थित करते हैं। इनके काव्य के प्रत्येक पद्य मुख्यतः अपने में पूर्ण हैं तथा उसमें एक की, चाहे वह शृङ्गार, नीति या वैराग्य हो, पूर्ण अभिव्यक्ति होती है। संस्कृत भाषा का सूत्रात्मक रूप इनमें चरम सीमा तक पहुंच गया है। इनके अनेक पद्य व्यक्तिगत अनुभूति से अनुप्राणित हैं तथा उनमें आत्म-दर्शन का तत्व पूर्णरूप से दिखाई पड़ता है। बाधारमन्थ-संस्कृत साहित्य का इतिहास-डॉ० ए० बी० कीथ (हिन्दी अनुवाद)। भर्तहरि-प्रतिरबैयाकरण एवं 'वाक्यपदीय' नामक ग्रन्थ के रचयिता [२० वाक्यपदीय ]। पं० युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका समय वि०पू० ४०० वर्ष है। पुण्यराज के अनुसार इनके गुरु का नाम वसुरात था। ये 'शतकत्रय' के रचयिता भर्तृहरि से भिन्न हैं । इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की सूची इस प्रकार है-'महा. भाष्यदीपिका', 'वाक्यपदीय', 'भागवृत्ति' (अष्टाध्यायी की वृत्ति ) 'मीमांसासूत्रवृत्ति' तथा 'अन्नधातुमीमांसा'। भल्लट-संस्कृत गीतिकाव्य के अत्यन्त प्रौढ़ कवि भहट हैं जिनकी एकमात्र रचना भाटशतक' है। इनके पदों के उतरण 'ध्वन्यालोक', 'अभिनवभारती', 'काव्यप्रकाश' तथा 'मोचित्यविचारचर्चा' आदि ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं जिससे इनका समय नवम शताब्दी से पूर्व ज्ञात होता है। ये काश्मीरक कवि थे। 'भल्लटशतक' में मुक्तक पच संग्रहीत है तथा उसमें अन्योक्ति का प्राधान्य है। एक उदाहरण देखें-विशाल शाल्मल्या नयन सुभगं बीक्य कुसुमं शुकस्यासीद् बुद्धिः फलमपि भवेदस्य सदृशम् । इति ध्वात्वोपास्तं फलमपि च देवात् परिणतं विपाके तूलोन्तः सपदि मरुता सोध्यपहतः ॥
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy