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________________ भट्टनायक ] ( ३२२ ) [ भट्ट तोत योग्य बना देता है । काव्य से जो अर्थ अभिधा द्वारा उपस्थित होता है वह एक विशेष नायक और विशेष नायिका की प्रेमकथा आदि के रूप में व्यक्तिविशेष से सम्बद्ध होता है । इस रूप में सामाजिक के लिए उसका कोई उपयोग नहीं होता है । शब्द का 'भावकत्व' व्यापार इस कथा में परिष्कार कर उसमें से व्यक्तिविशेष के सम्बन्ध को हटाकर उसका 'साधारणीकरण' कर देता है । उस 'साधारणीकरण के बाद सामाजिक का उस कथा के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है । अपनी रुचि या संस्कार के अनुरूप सामाजिक उस कथा का एक पात्र स्वयं बन जाता है । इस प्रकार असली नायकनायिका आदि की जो स्थिति उस कथा में थी, 'साधारणीकरण' व्यापार के द्वारा सामाजिक को लगभग वही स्थान मिल जाता है। यह शब्द का 'वाचकत्व' नामक दूसरे व्यापार का प्रभाव हुआ' । हिन्दी काव्यप्रकाश - आ० विश्वेश्वर पृ० १०६ (द्वितीय संस्करण) । भावकत्व व्यापार से ही साधारणीकरण होता है. जिसके द्वारा विभाव एवं स्थायी साधारणीकृत हो जाते हैं । अर्थात् दुष्यन्त एवं शकुन्तला अपने व्यक्तिगत गुण का त्याग कर सामान्य नायक-नायिका के रूप में उपस्थित होते हैं। भोजकत्व नामक तृतीय व्यापार के द्वारा रस का साक्षात्कार होता है । इसी को भट्टनायक सुक्तिवाद कहते हैं। भट्टनायक ने काव्यशास्त्र में 'भावकत्व' एवं 'भोजकत्व' नामक दो अन्य शब्दशक्तियों की उद्भावना कर सामाजिक की रसस्थिति का निरूपण किया है । भोजकत्व की स्थिति, रस के भोग करने की होती है। इस स्थिति में दर्शक के हृदय के राजस एवं तामस भाव सर्वथा तिरोहित हो जाते हैं और ( उन्हें दबाकर ) सतोगुण का उद्रेक हो जाता है। भट्टनायक ध्वनि विरोधी आचार्य हैं जिन्होंने 'हृदयदर्पण' की रचना ध्वनि के खण्डन के लिए ही की थी ।' 'ध्वन्यालोकलोचन' में भट्टनायक के मत अनेक स्थानों पर बिखरे हुए हैं, उनसे पता चलता है कि ध्वनिसिद्धान्त का सम्मान अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ किया गया था। भट्टनायक काश्मीरक थे । 'हृदयदर्पण' का उल्लेख महिमभट्ट के 'व्यक्तिविवेक' में भी है जिसमें लेखक का कहना है कि सहसा यश की प्राप्ति के लिए उनकी बुद्धि बिना 'दर्पण' को देखे ही 'ध्वन्यालोक' के खण्डन में प्रवृत्त हुई है। [ सहसायशोभियतुं समुद्यतादृष्टदपंणा मम धीः । स्वालंकार विकल्पप्रकल्पने बेति कथमिवावयम् ॥ १॥४ ॥ ] आधारग्रंथ - १. संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास- डॉ० पा० वा० काणे । २. • भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १ - आ० बलदेव उपाध्याय । ३. हिन्दी काव्यप्रकाश - यास्याता आ० विश्वेश्वर । भट्ट तौत - भट्टतोत अभिनवगुप्ताचायं के गुरु थे । इन्होंने 'काव्य कौतुक ' नामक काव्यशास्त्रविषयक ग्रन्थ में शान्तरस को सर्वश्रेष्ठ रस सिद्ध किया है । 'काव्यकोतुक' के ऊपर अभिनव ने 'विवरण' नामक टीका लिखी थी जिसका विवरण 'अभिनवभारती' में है । 'काव्यकोतुक' उपलब्ध नहीं है किन्तु इसके मत 'अभिनव - भारती', 'औचित्यविचारचर्चा ( क्षेमेन्द्र कृत ), हेमचन्द्र कृत 'काव्यानुशासन' एवं माणिक्यचन्द्र कृत 'काव्यप्रकाश' की संकेत टीका में बिखरे हुए दिखाई पड़ते हैं । 'अभिनवभारती' के अनेक स्थलों में अभिनवगुप्त ने भट्टतोत के मत को उपाध्यायाः या
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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