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________________ बाणभट्ट ] [ बाणभट्ट हो जाता है और सबों पर राजा और आरण्यका की प्रीति प्रकट हो जाती है । वासवदत्ता सारे रहस्य को जान कर क्रोधित हो उठती है । चतुर्थ अंक में प्रियदर्शिका ( आरण्यका) रानी वासवदत्ता द्वारा बन्दी बनाकर कारागार में डाल दी जाती है । इसी बीच रानी की माता का एक पत्र प्राप्त होता है कि उसके मौसा दृढ़वर्मा कलिंगनरेश के यहाँ बन्दी हैं । रानी दुःखित हो जाती है, पर राजा उसी समय आकर उसकी चिन्ता दूर कर देता है कि उसने कलिंग को नष्ट कर दृढ़वर्मा को छुड़ाने के लिए अपनी सेना भेज दी है। इसी बीच विजयसेन कलिंग को परास्त कर दृढ़वर्मा के कंचुकी के साथ प्रवेश करता है और कंचुकी राजा को बधाई देता है । वह राजकुमारी प्रियदर्शिका को न पाये जाने पर दुःख प्रकट करता है। तत्क्षण यह सूचना प्राप्त होती है कि आरण्यका ने विषपान कर लिया है । वह शीघ्र ही रानी द्वारा राजा के पास मँगवायी जाती है क्योंकि वह मन्त्रोपचार से विष का प्रभाव दूर कर देते हैं । मृतप्राय आरण्यका के उपस्थित होने पर कंचुकी उसे पहचान कर अपने स्वामी की पुत्री घोषित करता है । मन्त्रोपचार से वह स्वस्थ हो जाती है तथा रानी वासवदत्ता प्रसन्न होकर उसका हाथ राजा के हाथ में दे देती है। भरतवाक्य के पश्चात् नाटिका की समाप्ति हो जाती है । इस नाटिका में श्रृंगाररस की प्रधानता है। और इसका नायक उदयन धीरललित है । ( ३०० ) बाणभट्ट – महाकवि बाणभट्ट संस्कृत के सर्वश्रेष्ठ कथाकार एवं संस्कृत गद्य के सार्वभौम सम्राट् हैं । सुबन्धु द्वारा प्रवर्तित कृत्रिम गद्यशैली का प्रौढ़ एवं स्निग्ध रूप इनकी रचना में प्राप्त होता है। संस्कृत के सभी साहित्यकारों में एकमात्र बाण ही ऐसे कवि हैं, जिनके जीवन के सम्बन्ध में पर्याप्त रूप से प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध होती है । इन्होंने 'हर्षचरित' की प्रस्तावना एवं 'कादम्बरी' के प्रारम्भ में अपना परिचय दिया है । इनके पूर्वज सोननद के निकटस्थ प्रीतिकूट नामक नगर के निवासी थे । कतिपय विद्वानों के अनुसार यह स्थान बिहार प्रान्त के आरा जिले में 'पियरों' नामक ग्राम है तो कुछ कुछ विद्वान् गया जिले के 'देव' नामक स्थान के निकट पिट्रो नामक ग्राम को मानते हैं। बाण का कुल विद्वता एवं पाण्डित्य के लिये विख्यात था । ये वात्स्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनके प्राचीन पूर्वज का नाम कुबेर था, जो प्रसिद्ध कर्मकाण्डी एवं वेद के विद्वान थे। इनके यहां छात्र यजुर्वेद तथा सामवेद का पाठ किया करते थे । कुबेर के चार पुत्र हुए -अच्युत, ईशान, हर तथा पाशुपत। पाशुपत के पुत्र का नाम अर्थपति था और अर्थपति के ग्यारह पुत्र थे जिनमें चित्रभानु के पुत्र बाणभट्ट थे। इनकी माता का नाम राजदेवी था । बाल्यावस्था में ही इनकी माता का देहान्त हो चुका था और पिता द्वारा इनका पालन-पोषण हुआ । चौदह वर्ष की उम्र में इनके पिता की मृत्यु हुई और योग्य अभिभावक के संरक्षण के अभाव में ये अनेक प्रकार की शैशवोचित चपलताओं में फँस गए और देशाटन करने के लिए निकले । इन्होंने अनेक गुरुकुलों में विद्याध्ययन किया एवं कई राजकुलों को भी देखा । विद्वत्ता के प्रभाव से इन्हें महाराज हर्षवर्धन की सभा में स्थान
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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