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________________ पुष्पसूत्र | ( २९२ ) [ पृथ्वीराज विजय की भक्तिरूपी बीज से हुआ है । नाना प्रकार के छन्द ( विविध वृत्त ) इनके पल्लव हैं और अलंकार पुष्प गुच्छ । इसकी रचना 'कोमल चारु शब्द -निचय' से पूर्ण है तथा गद्य की भाषा 'अनुप्रासमयी समस्त पदावली' से युक्त है। पुस्तक का अन्त अहिंसा के प्रभाव-वर्णन से हुआ है और श्रोताओं को सभी जीवों पर दया प्रदर्शित करने की ओर मोड़ने का प्रयास है । यह बम्बई से प्रकाशित हुआ है । जातेयं कवितालता भगवतो भक्त्याख्यबीजेन मे, चंश्चत्कोमलचारुशब्दनिचयैः पद्यैः प्रकामोज्ज्वला । वृत्तैः पल्लविता ततः कुसुमितालंकारविच्छित्तिभिः सम्प्राप्ता वृषभेशकल्पसुतरुं व्यंग्यश्रिया वर्धते ॥ आधारग्रन्थ - चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी | पुलस्त्यस्मृति - इस स्मृति के रचयिता पुलस्त नामक धर्मशास्त्री हैं। इसका रचनाकाल डॉ० काणे के अनुसार, ४०० से ७०० ई० के मध्य है । वृद्ध याज्ञवल्क्य 'पुलस्त को धर्मशास्त्र का प्रवक्ता माना है । विश्वरूप ने शरीरशौच के सम्बन्ध में 'पुलस्त्यस्मृति' का एक श्लोक दिया है और 'मिताक्षरा' में भी इसके इलोक उद्धृत हैं । अपराक ने इस ग्रन्थ से उद्धरण दिये हैं और 'दानरत्नाकर' में भी मृगचमं दान के संबंध में 'पुलस्त्यस्मृति' के मत का उल्लेख करते हुए इसके श्लोकं उद्धृत किये गए हैं। इस ग्रन्थ में श्राद्ध में ब्राह्मण के लिए मुनि का भोजन, क्षत्रिय एवं वैश्य के लिए मांस तथा शूद्र के लिए मधु खाने की व्यवस्था की गयी है । आधारग्रन्थ —- धर्मशास्त्र का इतिहास- डॉ० पी० वी० काणे भाग - १ ( हिन्दी अनुवाद ) । पुष्पसूत्र - यह सामवेदीय प्रातिशाख्य है जिसके रचयिता पुष्प नामक ऋषि थे । इसमें दस प्रपाठक या अध्याय हैं तथा इसका संबंध गानसंहिता से है । इसमें स्तोम का विशेषरूप से वर्णन है तथा उन स्थलों और मन्त्रों का विवरण दिया गया है जिनमें स्तोम का विधान अथवा अपवाद होता है । इस पर उपाध्याय अजातशत्रु ने भाष्य लिखा है जो प्रकाशित हो चुका है । ( चौखम्बा संस्कृत सीरीज से उपाध्याय का भाष्य सहित १९२२ ई० में प्रकाशित ) " इसमें प्रधानतया बेयगान तथा प्रयुक्त सामों का ऊहन अन्य मन्त्रों पर कैसे किया जाता है, विवेचन है ।" वैदिक साहित्य और संस्कृति पृ० ३०७ । अरण्य गेयगान में विषय का विशद इस 1 पृथ्वीराज विजय - अन्तिम हिन्दू सम्राट् पृथ्वीराज की विजय का वर्णन करने वाला यह ऐतिहासिक महाकाव्य जयानक कवि की रचना है । सम्प्रति यह अपूर्ण रूप में उपलब्ध है जिसमें १२ सगं हैं। इन सर्गों में पृथ्वीराज के पूर्वजों का वर्णन तथा उनके ( पृथ्वीराज के ) विवाह का उल्लेख है । इसमें स्पष्टरूप से कवि का नाम कहीं भी नहीं मिलता, पर अन्तरंग अनुशीलन से ज्ञात होता है कि इसका रचयिता जयानक कवि था । इसकी एक टीका भी प्राप्त होती है. जिसका लेखक जोनराज है । जयानक काश्मीरक था और उसने संभवतः ११९२ ई० में इस महाकाव्य की रचना की थी । इसका महत्व ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक है। पृथ्वीराज के पूर्वपुरुषों एवं उनके आरम्भिक दिनों का इतिहास जानने का यह एक महत्त्वपूर्ण प्रामाणिक साधन है । इसमें
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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