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________________ पुराण] ( २८३ ) [पुराण रीति-नीति तथा राजनीति का भी उपबृंहण किया गया है । पुराण शब्द की व्युत्पत्तिअति प्राचीन वैयाकरणों-पाणिनि, यास्क आदि ने पुराण की व्युत्पत्ति प्रस्तुत की है। पाणिनि के अनुसार 'पुरा + नी+ड' इन तीनों के मिलने से पुराण शब्द निष्पन्न होता है । 'पुरा अव्ययपूर्वक णीम् प्रापणे धातु से 'ड' प्रत्यय करने के बाद टिलोप और णत्व कार्य करने पर पुराण शब्द सिद्ध होता है।' पुराण तत्त्व-मीमांसा पृ० ३८ । पाणिनि ने पुरातन शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार ही है-'पुराभवम्' ( प्राचीन काल में होने वाला ) इस अर्थ में 'सायं चिरं प्राह-प्रागेऽव्ययेभ्यष्ट्युट्युली तुट च' (पाणिनि सूत्र ४।३।२३ ) इस सूत्र से 'पुरा' शब्द से 'ट्यु' प्रत्यय करने तथा 'तुट्' के आगमन होने पर पुरातन शब्द निष्पन्न होता है, परन्तु पाणिनि ने ही अपने दो सूत्रों- 'पूर्वकालैक सवंजरतपुराण नव केवलाः समानाधिकरणेन' (२०११४९) तथा पुराण प्रोक्तेषु ब्राह्मण कल्येषु ( ४।३।१०५)-में पुराण शब्द का प्रयोग किया है जिससे तुडागम का अभावनिपातनात् सिद्ध होता है। तात्पर्य यह है कि पाणिनि की प्रक्रिया के अनुसार 'पुरा' शब्द से 'ट्यु' प्रत्य अवश्य होता है परन्तु नियमप्राप्त 'तुट' का आगम नहीं होता। पुराण-विमर्श पृ० १ । पुराण शब्द अत्यन्त प्राचीन है। इसका उल्लेख ऋग्वेद के अनेक स्थलों पर किया गया है जिसका अर्थ विशेषणरूप में हैप्राचीन या पूर्वकाल में होने वाला। महर्षि यास्क ने निरुक्त में पुराण शब्द का निर्वचन करते हुए बताया कि जो प्राचीन होकर भी नवीन हो उसे पुराण करते हैंपुराणं कस्मात् २ पुनानवं भवति ३।१९।२४ । गीता में भगवान् भी पुराण पुरुष कहे गए हैं-'कविपुराणमनुशासितारम् ।' स्वयं पुराणों ने भी पुराण शब्द की व्युत्पत्ति दी है। वायुपुराण के अनुसार जो प्राचीन काल में जीवित हों उसे पुराण कहते हैं। पद्मपुराण में ( ५२२१५३ ) प्राचीनता की कामना करने वाले को पुराण कहा गया है। यस्मात् पुरा ह्यनतीदं पुराणं तेन तत् स्मृतम् । निरुक्तमस्य यो वेद सर्व पापैः प्रमुच्यते ।। वायुपुराण १।२०३। प्राचीन संस्कृत वाङ्मय में पुराण शब्द के अनेक पर्याय उपलब्ध होते हैं-प्रतन, प्रत्न, पुरातन, चिरन्तन आदि । पर 'पुराण' शब्द भागवतादि पुराणों के लिए रूढ़ हो गया है। भारतीय वाङ्मय में 'पुराण-इतिहास' शब्द पुराणों के लिए कालान्तर में प्रचलित हो गया और पुराण इतिहास का द्योतक हुआ। इतिहास के साथ पुराण का घनिष्ठ सम्बन्ध होने से प्राचीन संस्कृत साहित्य में भी दोनों का मिश्रित रूप प्रयुक्त हुआ है। छान्दोग्य उपनिषद् में इतिहास-पुराण को पन्चम वेद कहा गया है तथा यास्क के अनुसार ऋग्वेद में भी त्रिविध ब्रह्म के अन्तर्गत 'इतिहास-मिश्र' मन्त्र आये हैं । ऋग्वेदं भगवोऽध्येमि यजुर्वेदं सामवेदमाथर्वणमितिहासपुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम् । छान्दोग्य ७१॥ त्रितं कूपेऽवहितमेतत् सूक्तं प्रतिबभौ । तत्र ब्रह्मेतिहास-मिश्रमृमिश्रगाथामिश्रं भवति ॥ निरुक्त ४।६। इतिहास-पुराण यह संयुक्त नाम उपनिषद् युग तक आकर प्रसिद्धि प्राप्त कर गया था। यास्क के निरुक्त' में भी ऋचाओं के स्पष्टीकरण के समय ब्राह्मणग्रन्थों की कथाएँ तिहास के नाम से उधृत है एवं उन्हें 'इति
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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