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________________ पाणिनि ] ( २७७ ) [पाणिनि जीवनवृत्त तमसावृत है। प्राचीन ग्रन्थों में इनके कई नाम उपलब्ध होते हैं-पाणिन, पाणिनि, दाक्षीपुत्र, शालङ्कि, शालातुरीय तथा आहिक । इन नामों के अतिरिक्त पाणिनेय तथा पणिपुत्र नामक अन्य दो नाम भी प्राप्त होते हैं। पुरुषोत्तमदेव कृत 'त्रिकाण्डशेष' नामक कोष-ग्रन्थ में सभी नाम उल्लिखित हैं-पाणिनिस्त्वाहिको दाक्षीपुत्रः शालङ्किपाणिनी । शालोतरीयः......। सालातुरीयको दाक्षीपुत्रः पाणिनिराहिकः । वैजयन्ती पृ० ९५ दाक्षीपुत्रः पाणिनेयो येदेनं व्याहृतं भुवि-पाणिनीयशिक्षा-यजुष् पाठ पृ० ३८ । __कात्यायन एवं पतन्जलि ने पाणिनि नाम का ही प्रयोग किया है। पतजलि की एक कारिका में पाणिनि के लिए दाक्षीपुत्र का भी प्रयोग है। दाक्षीपुत्रस्य पाणिनेः, महाभाष्य १।१ । २० पाणिन नाम का उझेख 'काशिका' एवं 'चान्द्र. वृत्ति' में प्राप्त होता है-पाणिनोपज्ञमकालकं व्याकरणम् । पाणिनो भक्तिरस्य पाणिनीयः, काशिका ४।३।३९ दाक्षीपुत्र नाम का उल्लेख 'महाभाष्य' समुद्रगुप्तकृत 'कृष्णचरित' एवं श्लोकात्मक 'पाणिनीयशिक्षा' में है। शालातुरीय नाम का निर्देश भामहकृत 'काव्यालङ्कार', 'काशिका विवरणपन्जिका', 'न्यास' तथा 'गुणरत्नमहोदधि' में प्राप्त होता है। शालातुरीयस्तत्रभवान् पाणिनिः । गुणरलमहोदधि पृ० १ । वंश एवं स्थान-५० शिवदत्त शर्मा ने 'महाभाष्य' की भूमिका में पाणिनि के पिता का नाम शलङ्क एवं उनका पितृव्यपदेशज नाम शालङ्गि स्वीकार किया है। शालातुर अटक के निकट एक ग्राम था जो लाहुर कहा जाता है, पाणिनि को वहीं का रहने वाल बताया जाता है। वेबर के अनुसार पाणिनि उदीच्य देश के निवासी थे क्योंकि शालंकियों का सम्बन्ध वाहीक देश से था । श्यूआङ् चुआङ् के अनुसार पाणिनि गान्धार देश के निवासी थे। इनका निवासस्थान शालातुर गान्धार देश ( अफगानिस्तान ) में ही स्थित था जिसके कारण ये शालातुरीय कहे जाते थे। मां का नाम दामी होने के कारण ये दाक्षीपुत्र कहे जाते हैं। कुछ विद्वान् इन्हें कौशाम्बी या प्रयाग का निवासी मानने के पक्ष में हैं किन्तु अधिकांश मत शालातुर का ही पोषक है। पाणिनि के गुरु का नाम वर्ष तथा उनके ( वर्ष के ) भाई का नाम उपवर्ष, पाणिनि के भाई का नाम पिंगल एवं उनके शिष्य का नाम कौत्स मिलता है। 'स्कन्दपुराण' के अनुसार पाणिनि ने गो पर्वत पर तपस्या की जिससे उन्हें वैयाकरणों में महत्त्व प्राप्त हुआ। गोपवंतमिति स्थानं शम्भोः प्रख्यायितं पुरा । यत्र पाणिनिनालेभे वैयाकरणिकाग्रता ॥ अरुणाचल माहात्म्य, उत्तरार्ध २०६८। मृत्यु-'पञ्चतन्त्र' के एक श्लोक में पाणिनि, जैमिनि तथा पिङ्गल के मृत्यु-कारण पर विचार किया गया है जिससे ज्ञात होता है कि पाणिनि सिंह द्वारा मारे गए थे। पन्चतन्त्र, मित्रसंप्राप्ति श्लोक ३६ । एक किंवदन्ती के अनुसार इनकी मृत्यु त्रयोदशी को हुई, अतः अभी भी वैयाकरण उक्त दिवस को अनध्याय करते हैं। पाणिनि के ग्रन्थ'महाभाष्य प्रदीपिका' से ज्ञात होता है कि पाणिनि ने 'अष्टाध्यायी' के अतिरिक्त 'धातुपाठ', 'गणपाठ', उणादिसूत्र, 'लिङ्गानुशासन' की रचना की है। कहा जाता है कि पाणिनि ने 'अष्टाध्यायी' के सूत्रार्थपरिज्ञान के लिए वृत्ति लिखी थी, किन्तु वह अनुपलब्ध है; पर उसका उल्लेख 'महाभाष्य' एवं 'काशिका' में है । शिक्षासूत्र-पाणिनि ने. शब्दोच्चारण
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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